इसरो,नासा और फ्रांस के साथ भी कुछ परियोजनाओं पर मिलकर काम कर रहा है। ISRO (ISRO ready to increase India's prestige in the world) की 2030 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना भी है। इन प्रयासों से भारत अंतरिक्ष शोध में अग्रणी और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में स्थापित हो सकेगा।
इसरो अभी जिन परियोजनाओं पर काम कर रहा है, उनसे भारत की दुनिया में धाक बढ़ेगी। इसरो नासा और फ्रांस के साथ भी कुछ परियोजनाओं पर मिलकर काम कर रहा है। उसकी 2030 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना भी है। इन प्रयासों से भारत अंतरिक्ष शोध में अग्रणी और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में स्थापित हो सकेगा। आइए जानते हैं कौन- कौन सी योजनाओं पर हो रहा काम
यह भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन है, जिसका प्रक्षेपण इस वर्ष के अंत तक किया जाएगा। इसके बाद गगनयान-2 और 3 का प्रक्षेपण किया जाएगा। पहले मिशन में व्योममित्र रोबोट को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। फिर 3 दिवसीय मिशन के तहत 3 सदस्यीय दल को 400 किमी. की कक्षा में भेजा जाएगा। सब कुछ ठीक रहा तो भविष्य में लोग अंतरिक्ष यात्रा कर सकेंगे।
यह एक आर्बिटर मिशन है, जो शुक्र ग्रह का अध्ययन करेगा। इसे इसी वर्ष प्रक्षेपित करने की योजना है। इसमें पेलोड में एक उच्च- रिजाल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) और एक ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार लगा होगा। पेलोड एसएआर शुक्र के चारों ओर बादलों के कारण कम दृश्यता के बावजूद हर मौसम में उसकी सतह का निरीक्षण करेगा। वहीं रडार शुक्र ग्रह की भू-वैज्ञानिक, ज्वालामुखीय गतिविधि, सतह पर उत्सर्जन, हवा की गति, बादलों और दूसरे ग्रहों का भी अध्ययन करेगा।
एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट भी प्रक्षेपण के लिए तैयार है। यह भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी अभियान है, जो विषम परिस्थितियों में चमकीले खगोलीय एक्स-रे स्रोतों के रहस्यों को खोलेगा। इससे ब्लैक होल, न्यूट्रान सितारों, सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक और पल्सर पवन निहारिकाओं से मिले संकेतों का अध्ययन किया जाएगा। इससे वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के रहस्यमय संकेतों के बारे में स्पष्ट उत्तर मिलने की उम्मीद है। इस मिशन का कार्यकाल 5 वर्ष होगा।
यह इसरो और नासा का साझा वेधशाला मिशन है। दोनों ने इस उपग्रह की परिकल्पना 2014 में की थी। यह भू- पटल की छोटी-छोटी हलचलों से लेकर ज्वालामुखी विस्फोट तक होने वाले बदलावों का अध्ययन करेगा। निसार प्रत्येक 12 दिन में वैश्विक स्तर पर भूमि और बर्फ से ढकी सतहों का नियमित निरीक्षण करेगा। इसके लिए नासा तीन वर्ष और इसरो पांच वर्ष तक अपने पेलोड का उपयोग करेगा।
पहले मार्स आर्बिटर (मंगलयान) का ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूटने के बाद मार्स आर्बिटर-2 की योजना बनाई गई है। प्रक्षेपण के बाद आठ वर्ष तक मंगल की कक्षा में चक्कर लगा रहे मंगलयान का ईंधन और बैटरी खत्म हो गई थी। मंगलयान-2 का उद्देश्य आर्बिटर को मंगल ग्रह की निकटवर्ती कक्षा में स्थापित करने का है। इसके लिए इसरो एयरोब्रकिंग तकनीक का प्रयोग करेगा। इस मिशन में लैंडर भी भेजा जाएगा। इसका प्रक्षेपण फ्रांस की मदद से किया जाएगा।