कावड़ यात्रा में रहा डीजों के साथ साथ डाक कावड़ का भी क्रेज, प्रतिद्वंदी को हराने के लिए लगाये पूरे जोर - Along with the DJs, there was a craze for Dak Kavad in the Kavad Yatra, they put in full force to defeat the opponent.
हिंदू पुराणों के मुताबिक, त्रेता युग में जब समुद्र मंथन से अमृत से पहले विष निकला था, तब भगवान शिव ने विष को अपने अंदर ले लिया था। इससे उनका कंठ नीला पड़ गया था और वे विष की नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित होने लगे थे। इस विष के प्रकोप को कम करने के लिए, शिव के भक्त रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत के पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। कहा जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
शिव कावड़ का स्वरुप हर साल बदलता जा रहा है। जिस तरह पहले शिव भक्त कावड़िये हरिद्वार से पवित्र गंगा जल लाकर कई दिनों की यात्रा करते हुए अपने शिवालय में भगवान शिव को गंगाजल अर्पित करते थे। इसके बजाय आज कल के युवाओं में एक ट्रेंड ज्यादा जोरो पर है। 30 से 40 युवाओं का एक दल हरिद्वार से गंगाजल भागते हुए लाते हैं और अपने गांव के शिवालय में अभिषेक करते हैं। इसे डाक कावड़ कहा जाता है। इसमें बिना रुके आपको अपने गंतव्य पर पहुंचना होता है।
डाक कावड़ में सभी को भागना पड़ता है। इस दौरान दो दलों के युवाओं में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ युवाओं के अंदर उत्तेजना पैदा करती है। भागने वाले लड़कों के साथ उनका म्यूजिक सिस्टम भी साथ साथ बजता हुआ चलता है जिससे थकान महसूस नहीं होती। डीजे साउंड की धुन पर युवा मस्त होकर अपने गंतव्य की और जाते हैं। डाक कावड़ प्रतिस्पर्धा में दो डाक कावड़ों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है जिसमे जीतने वाली टीम को उचित इनाम दिया जाता है।
कावड़ यात्रा की जान कहे जाने का अधिकार अगर म्यूजिक सिस्टम को दिया जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर साल कावड़ यात्रा में म्यूजिक सिस्टम का क्रेज जिस तरह बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए प्रदेश सरकार को हर साल दिशा निर्देश जारी करने पड़ते हैं। लेकिन बात वही ‘ढाक के तीन पात’ कौन माने दिशा निर्देश?
मेरठ टोल प्लाजा पर डीजे प्रतिस्पर्धा 12 साल से हो रही है। तमाम पाबंदियों के बाद भी हर वर्ष यहां डीजे प्रतिस्पर्धा होती है। एक डीजे पर 150 से 400 युवकों की टोली डांस करती है। ऐसे में अत्यधिक साउंड के चलते युवा जोश से भर जाते हैं। बाईपास पर कांवड़ सेवा शिविरों में लगे डीजे के साथ भी प्रतिस्पर्धा की जाती है। जिस डीजे की साउंड अधिक होती है तो दूसरा डीजे वाला अपना साउंड बंद कर हार स्वीकार करता है और टीम आगे बढ़ जाती है। घंटों तक प्रतिस्पर्धा चलती है।
कावड़ यात्रा में आने वाले साउंड सिस्टम की कीमतों की अगर बात करें तो इनकी कीमत लाखों रुपए तक होती है। ऐसे ही इस बार कावड़ यात्रा में आकर्षण का केंद्र रहा झारखण्ड का सार्जेन डीजे। जिसकी कीमत 8 लाख रूपये बताई जा रही है। डीजे रावण की बुकिंग राशि 7 लाख 50 हजार रुपये है। डीजे कसाना की बुकिंग राशि 7 लाख रुपये है। चौधरी डीजे की बुकिंग राशि 6 लाख 50 हजार रुपये और मोनू डीजे की बुकिंग 5 लाख रुपये में हुई है।