ग्लोबल वार्मिंग के कारण लोगों की सेहत पर बड़ा खतरा, गर्मी से मौत के हुई बढ़ोतरी

ग्लोबल वार्मिंग के कारण लोगों की सेहत पर बड़ा खतरा, गर्मी से मौत के हुई बढ़ोतरी

जलवायु परिवर्तन के चलते मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे पैदा हो रहे हैं. एक रिपोर्ट में आशंका जताई गई है
कि वर्ष 2050 तक तापमान में बढ़ोतरी 2 डिग्री तक हो सकती है. जिस कारण समस्या और गंभीर हो सकती है.
धरती के औसत तापमान मैं पहले ही 1 डिग्री से कुछ अधिक वृद्धि हो चुकी है. जबकि इस सदी के अंत तक इसे
डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने के प्रयास भी हो रहे हैं.

करंट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक बताया गया है कि दुनिया में हुए शोधों का जिक्र किया गया है और
आशंका जताई जा रही है कि तापमान प्रयासों के बावजूद 2050 तक तापमान में 2 डिग्री की बढ़ोतरी हो सकती है.
क्योंकि रोकथाम के जो उपाय हो रहे हैं मैं पर्यावरण के खिलाफ जाकर किए जा रहे हैं. रोकथाम के अचूक उपाय हैं
रोकथाम के लिए पर्याप्त नहीं है. इसका नतीजा यह निकलेगा कि दुनिया की 50 की आबादी को 1 वर्ष में कम से
कम 100 दिन का हिट बैग का सामना करना पड़ सकता है. अत्यधिक बारिशों की घटनाओं के कारण कृषि क्षेत्र
सर्वाधिक प्रभावित होता जा रहा है जिसका परिणाम स्वरूप 100 करोड़ लोग विस्थापित होने को विवश हो चुके हैं.
एक मोर यह घटना जनजीवन को प्रभावित करती जा रही है तो दूसरी तरफ तापमान में वृद्धि से मानव स्वास्थ्य
भी बुरी तरह से प्रभावित होता हुआ नजर आ रहा है.

रिपोर्ट में दुनिया भर के 32 मेडिकल जर्नल के विश्लेषण के आधार पर बताया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के
प्रभावों के चलते मानव स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में काफी बढ़ोतरी नजर आ रही है. इसलिए गर्मी से होने वाली
मौतों में इजाफा भी काफी ज्यादा रिकॉर्ड किया गया है. डिहाइड्रेशन के मामले भी बढ़ते नजर आ रहे हैं. इसके
अलावा भी गर्मी गुर्दों की कार्यप्रणाली को भी प्रभावित करती दिखाई दे रही है. क्या कैंसर के मामलों में कॉफी
बढ़ोतरी देखने को मिल रही है तो वहीं वायरल संक्रमण के बढ़ते मामले, मानसिक बीमारियों में बढ़ोतरी, प्रसव
संबंधी जटिलताएं, एलर्जी तथा दिल और फेफड़े से जुड़ी बीमारियों में काफी वृद्धि के लिए भी बढ़ती गर्मी को
जिम्मेदार बताया जा रहा है.

रिपोर्ट में चिंता जताई गई है कि ग्लोबल वार्मिंग के सर्वाधिक प्रभावित देशों में भारत भी शामिल है. प्रदूषण में इस
समस्या को और भी जटिल बना दिया है. भारत दुनिया के उन 20 देशों में शुमार है जहां वायु प्रदूषण के कारण
पार्श्विक मृत्यु दर उच्च शिखर पर पहुंच जाता है.

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