श्रीलंका ने हंबनटोटा एयरपोर्ट का संचालन भारत और रूस को सौंपा’ जानें क्यों है महत्वपूर्ण! | Sri Lanka handed over the operation of Hambantota airport to India and Russia, know why it is important!
श्रीलंका कैबिनेट के अनुसार, श्रीलंका सरकार हंबनटोटा के मट्टाला अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का संचालन भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम को सौंप दिया गया है। यह मट्टाला एयरपोर्ट 2013 में महिंद्रा राजपक्षे की सरकार के समय बनाया गया था। चीन की कंपनियों ने चीन से कर्ज लेकर ही यह एयरपोर्ट बनाया था। यह एयरपोर्ट श्रीलंका के तटीय शहर हंबनटोटा से 18 कि0मी0 दूर मट्टाला शहर में स्थित है। हंबनटोटा बंदरगाह को श्रीलंका की सरकार ने 99 वर्षों के लिए चीन को लीज पर दिया हुआ है। इसके बावजूद इस एयरपोर्ट के संचालन का जिम्मा भारतीय कंपनी को मिलना एक सकारात्मक संकेत है।
श्रीलंका के विमानन मंत्री निमल सिरिपाला डी सिल्वा ने बुधवार को बयान दिया और कहा कि हंबनटोटा में घाटे में चल रहे मट्टाला अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के संचालन का काम अगले कुछ दिनों.में भारत-रूस के संयुक्त उपक्रम को सौंप दिया जायेगा। इससे पहले अप्रैल में हंबनटोटा में मट्टाला अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रबंधन का कार्य श्रीलंका ने भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम को सौंप दिया था। उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल द्वारा नियुक्त परामर्शदात्री समिति ने भारत की शौर्य एयरोनॉटिक्स (प्राइवेट) लिमिटेड और रूस की एयरपोर्ट्स ऑफ रीजन्स मैनेजमेंट कंपनी को 30 वर्ष की अवधि का प्रबंधन अनुबंध देने का निर्णय लिया था।
मट्टाला राजापक्षे इंटरनेशनल एयरपोर्ट का निर्माण साल 2013 में हुआ था। इस एयरपोर्ट के लिए वित्तीय मदद चीन के एक्सिम बैंक द्वारा प्रदान की गयी। इसके निर्माण में 209 मिलियन अमरीकी डॉलर की लागत आने का अनुमान है, जिसमें से लगभग 190 मिलियन अमरीकी डॉलर चीनी ऋण से है। श्रीलंका पहले ही अपने हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को 99 वर्षों की लीज पर दे चुका है। अब वो इस गलती को दोबारा दोहराकर अपने नागरिकों और राजनीतिक विपक्षी दलों को फिर से नाराज नहीं करना चाहता।
भारत अपने पडोसी देशों के लिए मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है। ऐसा ही 2022 में श्रीलंका के सबसे खराब आर्थिक संकट के समय भारत ने यथासंभव मदद पहुँचाकर किया। श्रीलंका से भारत की दूरी मात्र 31 कि0मी0 ही है। सैन्य गतिविधियों के हिसाब से श्रीलंका भारत के बिलकुल नजदीक है। ऐसे में वहां होने वाली गतिविधियों का सीधा असर भारत पर पड़ेगा। इसलिए भारत इस मुद्दे को बड़ी गंभीरता से सुलझाने की कोशिशें कर रहा है।