प्रत्येक वर्ष 24 नवंबर को सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि के अवसर को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर, दस सिख गुरुओं में से नौवें थे। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। आज उनकी पुण्यतिथि, शहीदी दिवस, पर जानतें हैं उनके बारे में कुछ बातें।
गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म वर्ष 1621 में वैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। तेग बहादुर को उनके तपस्वी स्वभाव के कारण त्याग मल (Tyag Mal) कहा जाता था। वह छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद और माता नानकी के सबसे छोटे पुत्र थे। बचपन से ही गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों तथा घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की।
हरिकृष्ण राय जी (सिखों के 8वें गुरु) की अकाल मृत्यु हो जाने की वजह से गुरु तेग बहादुर जी को गुरु बनाया गया था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के विरुद्ध हुए युद्ध (करतारपुर की लड़ाई) में असाधारण वीरता दिखाने के बाद गुरु हरगोबिंद जी ने त्याग मल को तेग बहादुर (बहादुर तलवार) नाम दिया।
गुरु तेग बहादुर को वस्तुतः उनकी धर्मपरायणता, ज्ञान और निस्वार्थ बलिदान के लिए सम्मानित किया जाता है। गुरु तेग बहादुर सिंह जी द्वारा रचित बाणी के 15 रागों में 116 शबद श्रीगुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं।
वह धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ खड़े हुए और विश्वास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़े। जब कश्मीरी पंडितों ने बिना किसी दबाव के अपनी आस्था का पालन करने के अपने अधिकार की रक्षा के लिए उनसे मदद मांगी, तो गुरु तेग बहादुर ने निडर होकर औरंगजेब का सामना किया। उन्हें उनके साथियों के साथ दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें इस्लाम अपनाने या मौत का सामना करने का विकल्प दिया गया। अपने विश्वास और सिद्धांतों को त्यागने से इनकार करते हुए, उन्होंने शहादत को चुना और 24 नवंबर, 1675 को दिल्ली में उन्हें फाँसी दे दी गई।
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