दादाभाई नौरोजी – Dadabhai Naoroji : जयंती विशेष 4 सितम्बर 

दादाभाई नौरोजी एक प्रभावशाली भारतीय राजनीतिक नेता, शिक्षक, समाज सुधारक और प्रारंभिक राष्ट्रवादी थे जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज 4 सितम्बर, उनकी जयंती पर इस लेख के माध्यम से जानतें हैं कुछ बातें। 

दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर, 1825 को बॉम्बे (अब मुंबई), भारत में हुआ था। वह एक पारसी परिवार से थे और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बंबई में प्राप्त की।

नौरोजी बंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में गणित और प्राकृतिक दर्शन के प्रोफेसर बने।

नौरोजी ने शिक्षण क्षेत्र के अनुभवों के आधार पर समाज में सुधार की आवश्यकता महसूस की। उन्होंने युवाओं को विभिन्न साहित्यिक, वैज्ञानिक और सामाजिक विषयों पर चर्चा करने के अवसर प्रदान करने के लिए तथा महिलाओं और समाज के विभिन्न वर्ग को शिक्षा प्रदान करने के लिए स्कूल शुरू किए।

राजनितिक सफर 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस : ​​दादाभाई नौरोजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के शुरुआती सदस्य थे, जिसकी स्थापना वर्ष 1885 में हुई थी। उन्होंने सन् 1886 में INC के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, और इस पद को संभालने वाले पहले भारतीय बने। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने भारतीय स्वशासन और नागरिक अधिकारों की वकालत की।

ब्रिटेन में राजनीतिक करियर : नौरोजी को 1892 में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में संसद सदस्य (सांसद) के रूप में चुना गया था। उन्होंने लिबरल पार्टी का प्रतिनिधित्व किया और फिन्सबरी सेंट्रल के लिए सांसद के रूप में चुने गए। संसद में अपने समय के दौरान, उन्होंने ब्रिटिश शासन के तहत भारत के आर्थिक शोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाना जारी रखा।

ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध भारतीय पक्ष की मजबूत वकालत 

आर्थिक निकास सिद्धांत (Economic Drain Theory) : नौरोजी को "निकास सिद्धांत" या "आर्थिक निकास सिद्धांत" तैयार करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा भारत को व्यवस्थित रूप से गरीब बनाया जा रहा था। उनके सिद्धांत के अनुसार, भारत की संपत्ति और संसाधनों को ब्रिटेन ले जाया जा रहा था, जिससे भारत में आर्थिक कठिनाई पैदा हो रही थी।

भारत में गरीबी और गैर-ब्रिटिश शासन (Poverty and un-British rule in India) : उन्होंने 1901 में प्रकाशित "भारत में गरीबी और गैर-ब्रिटिश शासन" नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में, उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों के आर्थिक और सामाजिक परिणामों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया। भारत में। यह पुस्तक भारत के सामने आने वाले मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान दिलाने में सहायक थी।

विरासत

30 जून, 1917 को दादाभाई नौरोजी का निधन हुआ। अपने द्वारा किये गए कार्यों के कारण वे 'भारत का अनौपचारिक राजदूत (Unofficial Ambassador of India)' के रूप में ख्यापित हुए। इसके अतिरिक्त वे 'ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया (Grand Old Man of India)' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।

दादाभाई नौरोजी को व्यापक रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति और उपनिवेशवाद के प्रभाव के संबंध में आर्थिक विश्लेषण में अग्रणी माना जाता है। उनके योगदान ने भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई में तत्कालीन भविष्य के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए आधार तैयार किया।

भारत के कल्याण के प्रति दादाभाई नौरोजी का समर्पण और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के आर्थिक अन्याय को उजागर करने के उनके अथक प्रयासों ने एक स्थायी विरासत छोड़ी।