डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन – Dr Sarvepalli Radhakrishnan : पुण्यतिथि विशेष

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888-1975) एक भारतीय दार्शनिक, राजनेता और शिक्षक थे जिन्होंने भारत के बौद्धिक और शैक्षिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर जानतें हैं उनके बारे में कुछ बातें।

आरम्भिक जीवन 

राधाकृष्णन का जन्म ‘सर्वपल्ली राधाकृष्णय्या’ के रूप में हुआ था। उनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को हुआ था।उनके पिता का नाम था सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सीथम्मा था। पूर्ववर्ती मद्रास प्रेसीडेंसी (अब तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले में) के उत्तरी अर्कोट जिले के तिरुत्तानी में उनका जन्म हुआ था। उनके प्रारंभिक वर्ष तिरुत्तानी और तिरूपति में बीते। उनके पिता एक स्थानीय जमींदार की सेवा में एक अधीनस्थ राजस्व अधिकारी थे।

उनकी प्राथमिक शिक्षा तिरुत्तानी के के.वी. हाई स्कूल में हुई। 1896 में वह तिरूपति के हरमन्सबर्ग इवेंजेलिकल लूथरन मिशन स्कूल और गवर्नमेंट हाई सेकेंडरी स्कूल, वालाजापेट में चले गये। तत्पश्चात, उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से उच्चतर शिक्षा प्राप्त की।

शिक्षण व शोध कार्य 

डॉ राधाकृष्णन को उनकी शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत मद्रास के एक प्रेसीडेंसी कॉलेज में एक अस्थायी शिक्षण पद हासिल करने में सक्षम हुए।

प्रेसीडेंसी कॉलेज में, राधाकृष्णन ने मनोविज्ञान के साथ-साथ यूरोपीय दर्शन में विभिन्न विषयों पर भी व्याख्यान दिया। एक कनिष्ठ सहायक प्रोफेसर के रूप में, तर्क, ज्ञानमीमांसा और नैतिक सिद्धांत उनकी शिक्षा के मुख्य क्षेत्र थे।

इस दौरान उनके कई लेख व शोध पत्र प्रकाशित हुए। मद्रास में ‘गार्जियन प्रेस’ ने उनकी ‘एम.ए थीसिस’ प्रकाशित की। वर्ष 1911 में “द इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एथिक्स” में उनके लेख "द एथिक्स ऑफ द भगवद्गीता एंड कांट" के छपने पर राधाकृष्णन की पहुँच पश्चिमी पाठकों तक हुए। साथ ही, मनोविज्ञान पर उनके संपादित व्याख्यान ‘नोट्स मनोविज्ञान’ की अनिवार्यता शीर्षक के तहत प्रकाशित हुए थे।

दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में योगदान 

राधाकृष्णन का योगदान दर्शन, शिक्षा और राजनीति सहित विभिन्न क्षेत्रों में फैला हुआ है। उन्हें दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में उनके काम के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से पश्चिमी और भारतीय दोनों संदर्भों में भारतीय दर्शन की व्याख्या करने और उसे लोकप्रिय बनाने के लिए। तुलनात्मक धर्म और दर्शन पर उनके कार्यों ने पूर्वी और पश्चिमी विचारों के बीच की खाई को पाटने में मदद की।

राजनीती : रहे इन संवैधानिक पदों पर

इसके अतिरिक्त राजनीती के क्षेत्र में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण है। राधाकृष्णन ने 1952 से 1962 तक भारत के पहले उपराष्ट्रपति और 1962 से 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan | Jayanti | 5 September

उपसंहार 

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का 17 अप्रैल, 1975 को निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत भारत और उसके बाहर दार्शनिक प्रवचन, शैक्षिक नीतियों और सांस्कृतिक समझ को प्रभावित करती रही है।

इसके अतिरिक्त उनकी जयंती प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस के रूप में मनाई जाती है, जो कि उनके शिक्षण के विरासत को प्रतिबिंबित करता है।

वर्ष 1954 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।