जिम कॉर्बेट (Jim Corbett) एक प्रसिद्ध ब्रिटिश वन अधिकारी, शिकारी, लेखक और वन्यजीवी संरक्षणकर्ता थे। जिम कॉर्बेट को भारतीय वन्यजीवी संरक्षण के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। वे वन्यजीवी संरक्षण के हिमायती थे। वे भारत में नैनीताल, कुमाऊं प्रान्त में जन्मे थे। जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई, 1875 को हुआ और उनकी मृत्यु 19 अप्रैल, 1955 को हुई।
एक वयस्क व्यक्ति के रूप में, जिम कॉर्बेट अपने असाधारण शिकार कौशल और जंगल के बेजोड़ ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। वे एक प्रसिद्ध शिकारी के रूप में विख्यात हुए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार उनके नाम 19 बाघ और 14 तेंदुओं को मारने का रिकॉर्ड है।
एक कुशल शिकारी के रूप में अपनी प्रतिष्ठा के बावजूद, वन्यजीवों के प्रति कॉर्बेट का दृष्टिकोण समय के साथ बदलना शुरू हो गया। उन्होंने महसूस करना शुरू कर दिया कि बाघों और अन्य वन्यजीवों की संख्या में तेजी से गिरावट वनों की कटाई और अवैध शिकार जैसी मानवीय गतिविधियों का प्रत्यक्ष परिणाम थी। इस रहस्योद्घाटन ने उनके जीवन में एक परिवर्तनकारी क्षण को चिह्नित किया और उन्होंने अपना ध्यान शिकार से हटाकर वन्यजीव संरक्षण पर केंद्रित करने का निर्णय लिया।
कॉर्बेट का शिकारी से संरक्षणवादी में परिवर्तन क्रमिक था, और पारिस्थितिकी तंत्र की नाजुकता के बारे में उनकी अंतर्दृष्टि ने उन्हें इस एहसास तक पहुंचाया कि संरक्षण समय की मांग थी। उनके फोकस में बदलाव ने वन्यजीवों के प्रति दुनिया के दृष्टिकोण में व्यापक जागृति को प्रतिबिंबित किया, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन शानदार प्राणियों और उनके आवासों के संरक्षण के मूल्य को पहचाना गया।
उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय वन्यजीवी संरक्षण संस्थान (Indian National Institute for Nature Conservation) की स्थापना की, जो बाद में 'वन्यजीवी संरक्षण संस्थान (Wildlife Institute of India)' नाम से जाना गया। नैनीताल, उत्तराखंड स्थित राष्ट्रीय उद्यान (National Park), ‘जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान’ का नामकरण जिम कॉर्बेट के नाम पर करके उनके पर्यावरणीय संरक्षण के कार्यों के प्रति अभिज्ञान प्रदर्शित करना है।
उनकी अधिकांश पुस्तकें वन्यजीवी संरक्षण, जंगलों में घूमने के अनुभव, जिंदगी के सफलता और वीरता के उदाहरणों पर आधारित थी।
उनकी लोकप्रिय पुस्तकों में से कुछ हैं "Man-Eaters of Kumaon", "The Man-eating Leopard of Rudraprayag", "Jungle Lore", और "My India", जो वन्यजीवी संरक्षण से संबंधित हैं और उन्हें वन्यजीवी संरक्षणकर्ता के रूप में लोकप्रिय बनाती हैं।
उनके योगदान और संरक्षणकर्मी के रूप में उन्हें भारत और विश्वभर में याद किया जाता है, और उनकी पुस्तकें वन्यजीवी संरक्षण के महत्वपूर्ण संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हैं।
जिम कॉर्बेट की विरासत उनके जीवनकाल से कहीं आगे तक फैली हुई थी। उनके लेखन और वकालत ने भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिए नीतियों और पहलों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज भी, कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व उनकी दूरदर्शिता और समर्पण के प्रमाण के रूप में खड़ा है, जो राजसी बंगाल टाइगर और विभिन्न अन्य प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करता है।
जिम कॉर्बेट की विरासत दुनिया भर में वन्यजीव उत्साही और संरक्षणवादियों की पीढ़ियों को प्रेरित और प्रभावित करती रही है। वन्य जीवन और जंगली स्थानों के संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता मनुष्य और प्रकृति के बीच नाजुक संतुलन की याद दिलाती है।
पारिस्थितिक असंतुलन और तेजी से शहरीकरण से खतरे में पड़ी दुनिया में, कॉर्बेट की शिक्षाएँ अत्यधिक महत्व रखती हैं। उनकी जीवन यात्रा प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व में मूल्यवान सबक प्रदान करती है, हमें भावी पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक दुनिया की रक्षा और संरक्षण करने का आग्रह करती है।