विराली मोदी भारत की एक दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ता है। साथ ही, वो एक प्रेरक वक्ता (motivational speaker) भी हैं। उन्होंने अपनी युवावस्था का अधिकांश समय संयुक्त राज्य अमेरिका में बिताया। लेकिन भारत की यात्रा के बाद मलेरिया से पीड़ित होने के कारण वह कोमा में चली गईं। वह बच गई, लेकिन चल नहीं सकती थी। उनका जन्म 29 सितम्बर, 1991 को हुआ था।
दरअसल, जब वह 14 साल की उम्र में मुंबई की यात्रा के बाद अमेरिका में पेंसिल्वेनिया में अपने घर लौट रही थीं, तब उन्हें मलेरिया हो गया। डॉक्टरों ने तेज बुखार के कारण उन्हें पैरासिटामोल दी और घर भेज दिया। अगले दिन उनकी तबियत खराब हुई और वह सांस नहीं ले सकी और कार्डियक अरेस्ट के कारन कोमा में चली गई। सात मिनट तक मृत घोषित किए जाने के बाद वह 20 दिनों तक कोमा में रहीं।
21 सितंबर 2006 को, डॉक्टरों ने उसके माता-पिता से कहा कि प्लग खींचना सबसे अच्छा विकल्प होगा, क्योंकि उसके जागने की ज्यादा उम्मीद नहीं थी। उसकी मां ने अनुरोध किया कि उसे अगले आठ दिनों तक जीवित रखा जाए, क्योंकि 29 सितंबर को वह 15 साल की हो जाएगी। डॉक्टर सहमत हो गए। मेडिसिन के डीन से अनुमति मांगने के बाद, उसके परिवार और दोस्तों ने उसे जन्मदिन की पार्टी दी। 31 वर्षीय मोदी कहते हैं, "जैसे ही केक काटा गया, मैंने अपनी आंखें खोल दीं। यह एक चमत्कार था!"
उन्होंने आँखें तो खोली लेकिन जल्द ही पता चला कि उनकी गर्दन के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है। अपने जीवन में कई कठिन दौरों का सामना करने के बावजूद, मोदी को अपने पर गर्व है और वह जीवन जीने के हर तरीके को सामान्य बनाने का इरादा रखती हैं। बचपन में एक सक्रिय नर्तकी, विराली अब एक प्रेरक वक्ता, विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता और भारत की पहली व्हीलचेयर का उपयोग करने वाली मॉडल हैं।
उन्होंने 2014 में मिस व्हीलचेयर इंडिया प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हासिल किया। वह 2014 में मिस व्हीलचेयर इंडिया प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर रहीं और इसके परिणामस्वरूप सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में उनके फॉलोवर्स बने।
उन्होंने Change.org याचिका (पेटिशन) शुरू की जिसका शीर्षक था "भारतीय रेलवे में विकलांगों के लिए अनुकूल उपाय लागू करें।" रेलवे को और अधिक सुलभ बनाने के उनके प्रयासों ने उन्हें 2017 के लिए "100 महिलाएं (बीबीसी)" में पहुंचा दिया। उन्होंने अपनी विकलांगता के कारण अपने अनुभवों और संघर्षों पर कई TEDx वार्ताएँ दी हैं।