Women’s Day : आँखो की रोशनी जाने के बाद भी नही मानी हार, ऐसे बनी प्रांजल देश की पहली नेत्रहीन आईएएस अफसर 

आपने यह कहावत तो खूब सुनी होगी "जहाँ चाह वहाँ राह।" यानी आपके जीवन की चाहते ही आपकी राहों को मज़बूत बनाती हैं। बस शर्त केवल इतनी है कि आपको मेहनत करने से कभी नहीं घबराना फिर बात चाहे स्कूल और कॉलेज के इम्तेहान की हो या जिंदगी के इम्तेहान की। 

हमारे देश में ऐसी कई परीक्षाएं होती हैं जिन्हे पास करना किसी ऊंचे पर्वत को फतेह करने के समान है। जो मेहनतकश शिक्षार्थी इन परीक्षाओं में सफल नहीं हो पाते वह अक्सर हिम्मत हार कर बैठ जाते हैं, जबकि कुछ शिक्षार्थी ऐसे भी होते हैं जो जीवन की परीक्षा देने के साथ ही यूपीऐससी जैसी कठिन परीक्षाएं देते हैं और निरंतर प्रयास के साथ हार का सामना करने के बाद सफल होते हैं। 

आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने नेत्रहीन होने के बावजूद यूपीऐससी जैसे कठिन एग्जाम को क्लीयर किया और बन गईं भारत की पहली नेत्रहीन आईएऐस।

कुछ इस तरह बीता प्रांजल पाटिल का बचपन

प्रांजल पाटिल महाराष्ट्र के उल्हासनगर की रहने वाली हैं। प्रांजल के जन्म से ही उनकी आँखे काफी कमज़ोर थी और इस वजह से जब प्रांजल 6 वर्ष की हुई तो उनकी आँखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई। आपको बता दें कि उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई मुंबई के कमला मेहता दादर स्कूल फॉर ब्लाइंड से की और राजनीति विज्ञान में सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है।

इसके बाद उन्होंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इंटरनेशनल रिलेशन्स में पोस्ट-ग्रेजुएशन किया और फिर एम.फिल और पीएचडी के लिए चली गई थी।

सकारात्मक रहकर की परीक्षा की तैयारी

यूपीऐससी जैसे एग्जाम को पास करने के लिए मेहनत, दृढ़ता और धैर्य रखने के साथ ही सकारात्मक रहना बहुत जरूरी है। प्रांजल ने भी इस परीक्षा को पास करने के लिए इसी मूल मंत्र को अपनाया।

प्रांजल पाटिल ने सिविल परीक्षा की तैयारी करने के लिए कभी कोचिंग नही ली। परीक्षा की तैयारी करने के लिए उन्होंने एक खास तरह के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जो किताबों को ज़ोर से बोलकर सुनता था। इस दौरान उन्होंने अपनी सुनने की क्षमता का भरपूर लाभ उठाते हुए तैयारी की है। 

प्रांजल ने यूपीऐससी का इम्तेहान दो बार दिया था। एक बार उन्होंने यह इम्तेहान 2016 में दिया था और एक बार उन्होंने यह इम्तेहान 2017 में दिया था। साल 2016 में उनकी रैंक 744 थी लेकिन अपने दूसरे अटेंप्ट में उन्होंने 124 वीं रैंक हासिल की और उन्हें 2018 में एर्नाकुलम, केरल में सहायक कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें इस आधार पर भारतीय रेलवे लेखा सेवा में नौकरी देने से मना कर दिया गया था क्योंकि उन्हें दिखाई नहीं देता था।

मेहनत और लगन से साकार हुआ सपना

प्रांजल पाटिल एक हिम्मत वाली महिला हैं। उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी करने के लिहाज से खुद को कभी भी कमज़ोर नही समझा और इसे पास करने के लिए जम कर मेहनत की। ऐसी तमाम महिलाएं हमारे समाज के लिए प्रेरणा का स्त्रोत साबित होती हैं। इन महिलाओं का जज़्बा यह दिखाता है की अगर आपके अंदर काबिलियत है तो कोई भी परेशानी आपको आपके सपने को पूरा करने से नहीं रोक सकती।