एक ही रात में कुछ घंटों के अंतराल पर पहले कानपुर और फिर अजमेर में ट्रेन को पटरी से उतारने की ताजा कोशिशें और जून, 2023 के बाद से ऐसी ही 24 अन्य घटनाओं के बाद इस शंका का निवारण जरूरी हो गया है कि ये घटनाएं किसी सोचे-समझे पैटर्न का हिस्सा तो नहीं!
बीते रविवार की रात कानपुर में कालिंदी एक्सप्रेस को पटरी से उतारने की नाकाम कोशिश के कुछ ही घंटों बाद राजस्थान के अजमेर में रेल की पटरी पर अलग-अलग जगहों पर सीमेंट के भारी ब्लॉक के मिलने की घटनाएं डराने वाली हैं, जो इनके पीछे किसी बड़ी साजिश के होने का अंदेशा भी पैदा करती हैं।
भारतीय रेल अर्थव्यवस्था की जीवनधारा मानी जाती है, जो देश के करोड़ों लोगों के लिए अपने गंतव्य तक पहुंचने का सबसे सस्ता व सुलभ साधन भी है। ऐसे में, इस तरह की घटनाएं न केवल आम यात्रियों के जीवन को जोखिम में डालती हैं, बल्कि देश की आर्थिक व सामाजिक स्थिरता के लिए भी खतरा बनती है। उल्लेखनीय है कि पिछले महीने साबरमती एक्सप्रेस भी पटरी पर रखे व्यवधान से टकराकर कानपुर में गोविंदपुरी स्टेशन के पास पटरी से उत्तर गई थी।
रेलवे के आंकड़ों के अनुसार, अगस्त के बाद से देश भर में ट्रेनों को पटरी से उतारने की 18 कोशिशें हुई हैं। जून 2023 से अब तक 24 ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें एलपीजी सिलिंडर, साइकिल, लोहे की छड़ें और सीमेंट ब्लॉक सहित रेल पटरियों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुएं मिलीं। गनीमत है कि इन घटनाओं में जान-माल का ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन कालिंदी एक्सप्रेस को पटरी से उतारने की साजिश के पीछे आतंकी संगठन आईएस का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है, जो बेहद चिंताजनक है और मामले की तह तक जाने की मांग करती है।
दरअसल, बीते दिनों जब आतंकियों की तरफ से रेलवे समेत अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले का अलर्ट मिला, तब से ही जांच एजेंसियां हाई अलर्ट पर हैं। जब हम भारतीय रेल की सुरक्षा और इसके विशाल नेटवर्क की बात करते हैं, तब ऐसी घटनाएं हमें गंभीरता से सोचने पर मजबूर करती हैं। ये रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था में गंभीर खामियों को तो उजागर करती ही हैं, पहले से ही बुनियादी संसाधनों की कमी से जूझ रही भारतीय रेल के समक्ष एक नई तरह की चुनौती भी पेश करती हैं।
सर्दियों के बढ़ने पर जब कोहरे का प्रकोप बढ़ेगा, तब यह चुनौती और भी बड़ी होगी। चूंकि सुरक्षा में चूक का कोई विकल्प नहीं है, रेलवे प्रशासन को सतर्कता बढ़ाते हुए, सीसीटीवी, ड्रोन व अन्य आधुनिकतम तकनीकों का उपयोग कर पटरियों की नियमित निगरानी के हरसंभव प्रयास करने चाहिए। देश के करीब 68 हजार किलोमीटर क्षेत्र में फैली पटरियों के चप्पे-चप्पे पर नजर भले न रखी जा सकती हो, पर यात्रियों के अलावा लोको पायलट, गैंगमैन, लाइनमैन इत्यादि की सतर्कता आशंकाओं को कम जरूर कर सकती है।
इस तरह के कृत्य के लिए कम से कम 10 साल की जेल या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। यह आतंकवाद से कम नहीं है, भले ही अपराधी नाबालिग हों, उन पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाएगा। वैसे मौत की सजा बहुत कम है, लेकिन आजीवन कारावास या 10 से 15 साल की जेल तय है।