केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची में संशोधन किया है. इसमें 34 नई दवाइयां जोड़ी गई है
जबकि 26 को हटा दी गई है. कैंसर के उपचार वाली सर्वाधिक 4 दवाओं को जोड़ा गया है. सूची में शामिल नई
दवा मूल्य नियंत्रण कानून के दायरे में आएगी जिससे सरकार नए सिरे से इनकी कीमत तय कर सकेगी. इससे
दवाइयां सस्ती होंगी और मरीजों का खर्च भी घटेगा. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर मनसुख
मंडाविया आने मंगलवार को एक कार्यक्रम में संशोधित सूची जानकारी जारी की है. इसे मंत्रालय के विशेषज्ञों की
टीम की सिफारिश पर तैयार किया गया है. एनएलएम 2011 में 348 दवाइयां शामिल की गई थी. उसके बाद
2015 में सूचित संशोधित पर दवाइयों की संख्या 376 की गई थी लेकिन अब 384 हो चुकी है. प्राथमिक मध्यम
एवं उच्च स्तर के उपचार को ध्यान में रखते हुए यह सूची तैयार की गई है. अनुमान है कि बिक्री का करीब 50%
हिस्सा इस सूची में शामिल दवाओं के दायरे में आ जाएगा.
रेनिटिडिन, व्हाइट पेट्रोलिटम समेत से 26 दबाव को संशोधित सूची से हटा दिया गया है. मंडाविया ने कहा कि
उनका मंत्रालय सबको दवाई सस्ती दवाई की दिशा में कई कदम उठा रहा है. इस दिशा में आवश्यक दवाओं की
राष्ट्रीय सूची स्वास्थ्य सेवा के सभी स्तर पर सस्ती गुणवत्ता वाली दवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती है. यह लागत प्रभावी गुणवत्तापूर्ण दवाओं को बढ़ावा देती है. नागरिकों के स्वास्थ्य देखभाल पर
खर्च घटने में योगदान देगी. नागरिकों के स्वास्थ्य देखभाल पर एन एल ई एम का उद्देश्य तीन पहलुओं पर है
जिसमें से लागत, सुरक्षा और असर पर विचार करते हुए दवाओं के तर्कसंगत उपयोग पर बढ़ावा देना है. एन एल ई
एम 1996 में बनी थी, इसे 2003, 2011 और 2015 में संशोधित किया गया था.
- नई सूची वाली दवाइयां भारत में बनती है. उसे देश में बिक्री की अनुमति के लिए लाइसेंस प्राप्त है. इसमें
कुछ पेटेंटेड दवाई भी हैं. - दवाओं पर छाई राष्ट्रीय समिति के उपाध्यक्ष डॉ वाई के गुप्ता ने कहा कि 26 दवाओं को सूची से हटाने के
पीछे कई कारण है. जैसे दवाओं का प्रभाव कम होना, उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा होना, बेहतर
विकल्प होना, दुष्प्रभाव सामने आना और इत्यादि