पेशवा बाजीराव प्रथम – Peshwa Bajirao I

पेशवा बाजीराव प्रथम जिन्हें विसाजी बाजीराव बल्लाल के नाम से भी जाना जाता है, मराठा संघ के 7वें एवं सबसे शक्तिशाली पेशवा थे। शिवाजी के बाद मराठा संघ के इतिहास में सबसे शक्तिशाली योद्धा माना  जाता है। बचपन से ही अपने पिता के साथ सैन्य अभियानों में शामिल होने के कारण युद्ध की बारीकियां सिख ली। जिस कारण अपने सैन्य शिखर पर रहते हुए दिल्ली अभियान में मराठों को विजय दिलाई।   

पेशवा बाजीराव प्रथम जीवनी - Peshwa Bajirao I Biography  

नाम पेशवा बाजीराव प्रथम 
अन्य नाम  विसाजी बाजीराव बल्लाल  
जन्म 18 अगस्त 1700 
जन्म स्थान सिन्नर, मराठा साम्राज्य, नासिक, महाराष्ट्र   
पिता बालाजी विश्वनाथ 
माता राधाबाई बर्वे 
पेशा मराठा सेना 
पद पेशवा 
महत्त्वपूर्ण कार्य दिल्ली लड़ाई(1719), कर्नाटक युद्ध(1725 - 27), इत्यादि 
मृत्यु 28 अप्रैल 1740 

मराठा साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली योद्धा - Most powerful warrior of Maratha Empire 

मराठा पेशवा के रूप में अपने 20 साल के कार्यकाल के दौरान, उनकी रणनीतिक क्षमता और निरंतर सैन्य अभियानों ने भारतीय उपमहाद्वीप में मराठा प्रभाव का विस्तार किया। उन्होंने निजाम, मुगलों, और पुर्तगालियों के खिलाफ कई सैन्य संघर्षों में भाग लिया। दक्कन क्षेत्र में, हैदराबाद का निजाम एक महत्वपूर्ण खतरा बनकर उभरा। इसके बाद बाजीराव ने निजाम के खिलाफ एक अभियान का नेतृत्व किया जिसमें निजाम को पालखेड़ा में निर्णायक हार का सामना करना पड़ा। इस जीत ने दक्कन क्षेत्र में मराठों के अधिकार को मजबूत किया। बुंदेलखंड में, उन्होंने बुंदेला शासक छत्रसाल को मुगल घेराबंदी से बचाया, जिससे बुंदेलखंड को स्वतंत्रता मिली। कृतज्ञतापूर्वक, छत्रसाल ने बाजीराव को एक जागीर और अपनी बेटी से विवाह कराने का अनुग्रह किया।

कई महत्त्वपूर्ण युद्ध अभियानों में हुए शामिल - Participated in many important war campaigns 

सर्वप्रथम उन्होंने गुजरात में दभोई की लड़ाई में त्रिम्बक राव दभाड़े को हराया। इसके बाद उनका दिल्ली अभियान शुरू हुआ। दिल्ली अभियान में तालकटोरा की लड़ाई, फिरोजाबाद पर मराठा आक्रमण, अटारी की घेराबंदी, एत्मादपुर पर मराठा आक्रमण शामिल थे। पालखेड़ की लड़ाई सीधे तौर पर निजाम के साथ हुई। निजाम-उल-मुल्क के नेतृत्व में मुगल नेताओं ने सैय्यद बंधुओं के खिलाफ विद्रोह कर दिया। विद्रोह को दबाने के लिए, सैय्यद बंधुओं ने मराठों से सहायता मांगी। हालाँकि, बालापुर की लड़ाई में, जहाँ बाजीराव, मल्हार राव होलकर और खांडेराव दाभाड़े मौजूद थे वहां सैय्यद बंधुओं और मराठों की संयुक्त सेना निजाम की सेना से हार गई। शंकरजी मल्हार को युद्ध बंदी के रूप में पकड़ लिया गया, जो पेशवा के रूप में बाजीराव की पहला महत्वपूर्ण सैन्य अभियान था।

बुंदेलखंड में छत्रसाल ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह किया और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। दिसंबर 1728 में, मुहम्मद खान बंगश के नेतृत्व में एक मुगल सेना ने उन पर हमला किया और उनके किले और परिवार को घेर लिया। हालाँकि छत्रसाल ने बार-बार बाजीराव की सहायता माँगी, लेकिन वे उस समय मालवा में व्यस्त थे। उन्होंने अपनी विकट स्थिति की तुलना गजेंद्र मोक्ष से की । बाजीराव को लिखे अपने पत्र में छत्रसाल ने निम्नलिखित पंक्तियों के माध्यम से बाजीराव का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया - 

“तुम्हें मालूम है कि मैं उसी दुःखद स्थिति में हूँ जिसमें प्रसिद्ध हाथी मगरमच्छ द्वारा पकड़े जाने पर था। मेरी वीर जाति विलुप्त होने के कगार पर है। आओ और मेरी लाज बचाओ, हे बाजीराव।”

मार्च 1729 में, पेशवा ने छत्रसाल के अनुरोध का जवाब दिया और 25,000 घुड़सवारों और अपने लेफ्टिनेंट पिलाजी जाधव, तुकोजी पवार, नारो शंकर और दावलजी सोमवंशी के साथ बुंदेलखंड की ओर कूच किया। बाद में बंगश को एक समझौते पर हस्ताक्षर करके छोड़ने के लिए मजबूर किया गया कि "वह फिर कभी बुंदेलखंड पर हमला नहीं करेगा।” बुंदेलखंड के शासक के रूप में छत्रसाल की स्थिति बहाल कर दी गई। उन्होंने बाजीराव को उपहारस्वरूप एक बड़ी जागीर दी , और उन्हें अपनी बेटी मस्तानी का विवाह बाजीराव से कराने का अनुरोध किया। दिसंबर 1731 में छत्रसाल की मृत्यु से पहले, उन्होंने अपने प्रदेशों का एक तिहाई हिस्सा मराठों को सौंप दिया।

मृत्यु -  Death 

लम्बे समय से युद्ध करते हुए तथा लंबी दुरी तय करते रहने के कारण बाजीराव का शरीर क्षीण हो गया था। जिसके कारण 1740 में उनका देहांत हो गया। 

सम्मान - Award