स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस
समारोह के उद्बोधन में अमृत काल की परिकल्पना की और उसके लिए पांच संकल्प भी लोगों को दिए. वे यह मंत्र
है जो विकसित भारत में है उनका मार्ग प्रशस्त करेंगे. इन पांच प्रणव विरासत पर गर्व का उल्लेख किया गया
इसके निहितार्थ को आज हम समझेंगे.
हम सभी यह जानते हैं कि कोई भी देश तब तक विकास के पथ पर ऊंचाइयों को तब तक नहीं छुपाता जब तक
वह अपनी विरासत को सहेजना अच्छे से ना जानता हो. हम कौन हैं? हमारी क्या मान्यताएं हैं? इसके साथ ही
हमारी संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत है. जो हम इन सवालों के जवाब देते हैं वह औरों से काफी अलग पहचान
दिखाती है. यही वह माध्यम है जो हमें पूर्वजों के ज्ञान को समझने और जानने मैं काफी मदद करता है और
भविष्य की चुनौतियों से लड़ने और उन पर विजय हासिल करने का हिम्मत प्रदान करता है.
विश्व का मार्ग
विरासत पर गर्व करने से पहले यह समझना होगा कि आखिरकार भारत की विरासत क्या? यहां बात 100 से 200
साल के इतिहास की नहीं हो रही है. भविष्य महत्वपूर्ण है और प्रधानमंत्री मोदी के इस संकल्प का उद्देश्य उस बिंदु
को समझाने का है. जो हमें भविष्य की ओर छलांग लगाने की ऊर्जा प्रदान करने के साथ हमारे इतिहास या यूं कहें
कि हमारी जड़ों को जोड़ों से मजबूत करने की एक प्रेरणा देती है. भारतीय विरासत कई शताब्दी पहले की है यह
विशाल है प्रमाणिक है और आज भी हमारे बीच जिंदादिली से जीवित है. हमें नहीं बुलाना चाहिए कि भारत ने विश्व
को शून्य का ज्ञान दिलाया चिकित्सा की बात करें तो ऋषि बस चरक की तमाम साहित्य भारत की ही देन है. ऐसे
अनेक उदाहरण हमारे समक्ष उपलब्ध है जो भारतीय विरासत पर गर्व का अनुभव प्रदान कराते हैं.
आज भारत जब सुपर पावर बनने की दिशा की ओर अपना कदम उठा रहा है तो अवश्य ही हमें अपनी उस
विरासत को संजोने संरक्षित करने की और भी अपना विशेष ध्यान देना होगा जिसके बूते आज हम इस मुकाम तक
पहुंच गए हैं.