अब्दुल हमीद कैसर – Abdul Hameed Qaiser

अब्दुल हमीद कैसर : एक गुमनाम राष्ट्रभक्त - Abdul Hameed Qaiser: An unsung patriot

अब्दुल हमीद कैसर आजादी के उन पराक्रमी योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने सत्तासीन होने के लिए कभी नहीं सोचा। उनका नाम कभी अखबार की सुर्खियों में देखने को नहीं मिला। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि उन्होंने फल प्राप्ति की इच्छा के लिए आजादी की जुंग में भाग नहीं लिया। अनेकों गुमनाम राष्ट्र भक्तों की तरह न तो उनकी मजार और समाधी पर ही चिराग जलाये जाते हैं, न पुष्प ही चढाये जातें हैं। 

नाम अब्दुल हमीद कैसर 
पूरा नाम सैयद मोहम्मद अब्दुल हमीद कैसर
अन्य नाम ‘लखपति’ 
जन्म 5 मई 1929
जन्म स्थान झालावाड, राजस्थान 
पिता सैयद मीर मोहम्मद अली
शिक्षा एमएससी, एलएलबी, डीएफए 
व्यवसाय प्रखरवक्ता, स्वतंत्रता सेनानी
मृत्यु 18 जुलाई 1998

कम उम्र से ही थे आंदोलनों में सक्रिय - Was active in movements from an early age

अब्दुल हमीद कैसर का व्यक्तित्व बहुलक्षण प्रतिभा का धनी था। अब्दुल हमीद कैसर के मन में बाल्यवस्था से ही देशभक्ति की भावना जाग उठी, क्योंकि वहाँ छात्रों में अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष करने की भावना भरी जाती थी। कोटा का हितकारी विद्यालय भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ा हुआ था। इस विद्यालय के प्राचार्य शम्भूदयाल सक्सेना प्रजामण्डल के प्रमुख नेताओं में से एक एवं प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। अब्दुल हमीद कैसर तथा उनके हितकारी स्कूल के साथी छात्र रात भर जागकर कोटा शहर में गश्त करते थे। उन्होंने कुछ महीनों अध्ययन करना यह समझकर छोड़ दिया कि शायद अब अंग्रेजों का राज समाप्त होकर हमें आजादी मिलेगी और ब्रिटिश शासन का अंत होगा। 

भारत छोडो आंदोलन में भी थे सक्रिय - Was also active in Quit India Movement

अगस्त 1942 को ग्वालियर टैंक के अधिवेशन में भाग लेने के साथ ही भारत छोडो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का प्रस्ताव पास किया गया। इस अधिवेशन में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ही विद्यार्थियों ने भी हिस्सा लिया था। विद्यार्थियों में अब्दुल हमीद कैसर के साथ उनके मित्र रामचंद्र सक्सेना ने प्रमुख रूप से भाग लिया था। 

गरीबों के मसीहा - Messiah of the poor

इनके संपर्क में जो भी व्यक्ति आता था इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। इनमें उदारता, सहिष्णुता एवं दयालुता जैसे गुण बचपन से ही कूट कूट के भरे हुए थे। इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता  है कि जब साल 1961 में जब भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे तब स्वतंत्रता सेनानी मणिक्य लाल वर्मा के सामने अब्दुल हमीद कैसर ने प्रतिज्ञा की कि वे भील, आदिवासी, मुल्तानी व गरीब जाती के लोगो से बिना फीस लिए उनके मुकदमों की पैरवी करेंगे। यह प्रतिज्ञा अब्दुल हमीद कैसर ने जीवनपर्यन्त निभाई। जीवन के अंतिम समय तक सिर्फ सेवा भाव से उन्होंने उनके मुकदमों की पैरवी की। गरीबों की निः स्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए उन्हें ‘गरीबों का मसीहा’ कहा जाता है।       

कैसे पडा ‘लखपति’ नाम - How did the name ‘Lakhpati’ come about?

साल 1954 में उनके नाम पर 1 लाख रुपए की लॉटरी खुली थी। जिस कारण उन्हें लखपति कहा जाने लगा। उस समय के हिसाब से यह रकम काफी बडी रकम थी। लॉटरी खुलने की बात हवा की तरह फैल गयी।