भारतेंदु हरिशचंद्र – Bharatendu Harishchandra

भारतेंदु हरिशचंद्र - Bharatendu Harishchandra

भारतेंदु हरिशचंद्र हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक, नाटककार, कहानीकार थे। भारतेंदु हरिशचंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक माना जाता है। अपनी लेखन शैली के माध्यम से हिंदी साहित्य को नयी दिशा प्रदान की। ‘भारतेंदु हरिशचंद्र’ को अक्सर हिंदी साहित्य और हिंदी रंगमंच का जनक माना जाता है। 

भारतेंदु हरिशचंद्र जीवनी – Bharatendu Harishchandra Biography

नाम भारतेंदु हरिशचंद्र 
जन्म 9 सितम्बर 1850 
जन्म स्थान बनारस, उत्तर प्रदेश भारत 
पिता गोपाल चंद्र 
पेशा उपन्यासकार, साहित्यकार, नाटककार  
उल्लेखनीय कार्य ‘अंधेर नगरी’, वैदिक हिंसा हिंसा न भवति  
मृत्यु 6 जनवरी 1885, बनारस  

आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक – Father of modern Hindi literature 

भारतेंदु हरिशचंद्र बचपन से ही लेखन कार्यों के लिए समर्पित थे। परिवार में इनके पिता गोपाल चंद्र एक कवि थे। जिनका प्रभाव भारतेंदु हरिशचंद्र के जीवन पर सम्पूर्ण रूप से पड़ा। उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी की यात्रा के दौरान वे बंगाल नवजागरण से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सामाजिक, ऐतिहासिक और पौराणिक नाटकों और उपन्यासों की विधाओं का हिंदी में अनुवाद करने का फैसला किया। यह प्रभाव तीन साल बाद , 1868 में बंगाली नाटक विद्यासुंदर के उनके हिंदी अनुवाद में परिलक्षित होता है।

‘भारतेंदु’ की उपाधि -Title of ‘Bharatendu’

1880 में काशी के विद्वानों द्वारा एक सार्वजनिक बैठक में उन्हें एक लेखक, संरक्षक और आधुनिकतावादी के रूप में उनकी सेवाओं के सम्मान में ‘भारतेंदु’ (‘भारत का चंद्रमा’) की उपाधि दी गई। रामविलास शर्मा भारतेंदु के नेतृत्व में शुरू हुई महान साहित्यिक जागृति को पुनर्जागरण हिंदी की इमारत की दूसरी मंजिल के रूप में संदर्भित करते हैं, पहली मंजिल 1857 का भारतीय विद्रोह था। 

रोकत है तो अमंगल होय, और प्रेम नसै जो कहैं प्रिय जाइए।

जो कहें जाहु न, तो प्रभुता, जो कछु न कहैं तो सनेह नसाइए।

जो हरिश्चन्द्र कहैं, तुमरे बिन, जियें न तो यह क्यों पतियाइए।

तासो पयान समै तुझसौं हम का कहैं प्यारे हमें समझाइए।।

Bhartendu Harishachandra भारतेंदु हरिशचंद्र - Bharatendu Harishchandra

सभी विधाओं के लेखन में पारंगत – Proficient in all genres of writing 

भारतेन्दु जी ने अपनी प्रतिभा के बल पर हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है। हिन्दी गद्य साहित्य को इन्होंने विशेष समृद्धि प्रदान की है। इन्होंने दोहा, चौपाई, छन्द, बरवै, हरिगीतिका, कवित्त एवं सवैया आदि पर काम किया। इन्होंने न केवल कहानी और कविता के क्षेत्र में कार्य किया अपितु नाटक के क्षेत्र में भी विशेष योगदान दिया। किन्तु नाटक में पात्रों का चयन और भूमिका आदि के विषय में इन्होंने सम्पूर्ण कार्य स्वयं के जीवन के अनुभव से सम्पादित किया है।

साहित्य में योगदान – Contribution to literature 

निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि बाबू हरिश्चन्द्र बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न थे। उन्होंने समाज और साहित्य का प्रत्येक कोना झाँका है। अर्थात् साहित्य के सभी क्षेत्रों में उन्होंने कार्य किया है। किन्तु यह ख़ेद का ही विषय है कि 35 वर्ष की अल्पायु में ही वे स्वर्गवासी हो गये थे। यदि ऐसा न होता तो सम्भवत: हिन्दी साहित्य का कहीं और ज़्यादा विकास हुआ होता। यह उनके व्यक्तित्व की ही विशेषता थी कि वे कवि, लेखक, नाटककार, साहित्यकार एवं सम्पादक सब कुछ थे। हिन्दी साहित्य को पुष्ट करने में आपने जो योगदान प्रदान किया है वह सराहनीय है तथा हिन्दी जगत् आप की सेवा के लिए सदैव ऋणी रहेगा।

रचनाएं – Creations 

भारतेंदु हरिश्चन्द्र की रचनाएँ -भारतेंदु हरिश्चन्द्र जी ने हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है इनहोंने नाटक, निबंध संग्रह, काव्य कृतियाँ, आत्मा, कथा, यात्रा वृतांत लिखे हैं।

मौलिक नाटक – वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति (1873 ई., प्रहसन), सत्य हरिश्चन्द्र (1875) श्री चंद्रावली (1876), विषस्य विषमौषधम् (1876), भारत दुर्दशा (1880), नीलदेवी (1881) अंधेर नगरी (1881)1

अनूदित नाट्य रचनाएँ – वि‌द्यासुन्दर (1868), धनंजय विजय (1873), कर्पूर मंजरी (1875) भारत जननी (1877), मुद्राराक्षस (1878), दुर्लभ बंधु (1880)।

निबंध संग्रह – नाटक, कालचक्र (जर्नल), लेवी प्राण लेवी, भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? कश्मीर कुसुम, जातीय संगीत, संगीत सार, हिंदी भाषा, स्वर्ग में विचार सभा।

काव्यकृतियां – भक्तसर्वस्व (1870), प्रेममालिका (1871), प्रेम माधुरी (1875)
प्रेम-तरंग (1877), उत्तरार्दध भक्तमाल (1876-77), प्रेम-प्रलाप (1877), होली (1879)
मधु मकल (1881), राग-संग्रह (1880), वर्षा-विनोद (1880), विनय प्रेम पचासा (1881)
फूलों को गुच्छा- खड़ीबोली काव्य (1882), प्रेम फुलवारी (1883) कृष्णचरित्र (1883) दानलीला, तन्मय लीला, नये जमाने की मुकरी, सुमनांजलि बन्दर सभा (हास्य व्यंग्य), बकरी विलाप (हास्य व्यंग्य)।

कहानी – अद्भुत अपूर्व स्वप्न

यात्रा वृत्तान्त – सरयूपार की यात्रा, लखनऊ

आत्मकथा – एक कहानी, कुछ आपबीती-कुछ जगबीती

उपन्यास – पूर्णप्रकाश, चन्द्रप्रभा।

मृत्यु – Death 

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिशचंद्र जी का 6 जनवरी 1885 को बनारस में ही देहांत हो गया था।

व्यक्तित्व से सम्बंधित यह लेख अगर आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर करना न भूलें और अपने किसी भी तरह के विचारों को साझा करने के लिए कमेंट सेक्शन में कमेंट करें।

Don Bradman

डॉन ब्रैडमैन – Don Bradman

pCWsAAAAASUVORK5CYII= सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Suryakant Tripathi 'Nirala'

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ – Suryakant Tripathi ‘Nirala’

AAFocd1NAAAAAElFTkSuQmCC अन्नू कपूर - Annu Kapoor

अन्नू कपूर – Annu Kapoor

Total
0
Shares
Leave a Reply
Previous Post
अमेरिका की तीन दिवसीय यात्रा पर राहुल गाँधी - Rahul Gandhi on three-day visit to America 

अमेरिका की तीन दिवसीय यात्रा पर राहुल गाँधी – Rahul Gandhi on three-day visit to America 

Next Post
अभी अंतरिक्ष में ही रहेंगी सुनीता, अंतरिक्षयान वापस लौटा - Sunita will remain in space for now, spacecraft returns

अभी अंतरिक्ष में ही रहेंगी सुनीता, अंतरिक्षयान वापस लौटा – Sunita will remain in space for now, spacecraft returns

Related Posts
pCWsAAAAASUVORK5CYII= गुरदास मान - Gurdas Maan

गुरदास मान – Gurdas Maan

गुरदास मान (Gurdas Maan) पंजाब की एक मशहूर शख्सियत हैं। वे एक प्रसिद्ध गायक, अभिनेता हैं। उनकी प्रसिद्धि…
Read More
Total
0
Share