भीकाजी कामा – Bhikaji Cama

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भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) भारतीय मूल की पारसी महिला थीं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विदेशी धरती पर भारत का झंडा लहराकर भारतीय मूल के लोगों को भारत की आजादी के लिए प्रोत्साहित किया। जर्मनी में सातवीं अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए प्रसिद्ध हैं।

भीकाजी कामा जीवनी – Bhikaji Cama Biography 

नाम भीकाजी रुस्तम कामा 
जन्म 24 सितंबर 1861
जन्म स्थान बॉम्बे 
पिता सोराबजी पटेल 
सेवा एवं कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी  
उपलब्धि विदेश में सबसे पहले फहराया भारत का झंडा 
कार्यस्थली लंदन, जर्मनी, अमेरिका 
मृत्यु 13 अगस्त 1936 

एक महिला ने फहराया पहली बार भारत का झंडा – A woman hoisted the Indian flag for the first time 

भारत की आज़ादी से चार दशक पहले, साल 1907 में विदेश में पहली बार भारत का झंडा एक औरत ने फहराया था। 46 साल की पारसी महिला ‘भीकाजी कामा’ ने जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी ‘इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस’ में ये झंडा फहराया था। ये भारत के आज के झंडे से अलग, आजादी की लड़ाई के दौरान बनाए गए कई अनौपचारिक झंडों में से एक था। 

यूरोप में आजादी की अलख – Flame of freedom in Europe 

1896 में बॉम्बे में प्लेग की बीमारी फैली और वहां मदद के लिए काम करते-करते भीकाजी कामा खुद बीमार पड़ गईं। इलाज के लिए वो 1902 में लंदन गईं और उसी दौरान क्रांतिकारी नेता श्यामजी कृष्ण वर्मा से मिलीं। “भीकाजी उनसे बहुत प्रभावित हुईं और स्वास्थ्य में सुधार होने के बाद भारत जाने का ख्याल छोड़ वहीं पर अन्य क्रांतिकारियों के साथ भारत की आजादी के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन बनाने के काम में जुट गईं।” 

‘होम रूल लीग’ की शुरूआत – Start of ‘Home Rule League’ 

ब्रिटिश सरकार की उन पर पैनी नज़र रहती थी। लॉर्ड कर्ज़न की हत्या के बाद मैडम कामा साल 1909 में पेरिस चली गईं जहां से उन्होंने ‘होम रूल लीग’ की शुरूआत की। उनका लोकप्रिय नारा था, “भारत आजाद होना चाहिए, भारत एक गणतंत्र होना चाहिए, भारत में एकता होनी चाहिए।”

सामाजिक कार्यों में अभिरुचि – Interest in social work 

देश जहाँ एक ओर परतंत्रता का दंश झेल रहा था वहीं सामाजिक स्‍तर पर भी पिछड़नेपन से जूझ रहा था। एक ओर महिलाओं को देवी मान कर उनकी पूजा की जाती थी, वहीं इसका दूसरा पहलू था कि लड़कियों को अभिशाप माना जाता था। एक ओर जहाँ महिलाओं के सामने अपने ही समाज से लड़ने की चुनौती थी, तो दूसरी ओर स्‍वतंत्रता की लड़ाई में महती भूमिका निभाने की प्रबल इच्‍छा। ऐसे में अगर कोई स्‍त्री पूरी तरह से देश की स्‍वतंत्रता को ही अपने जीवन का लक्ष्‍य बना ले तो इसे अप्रतीम उदाहरण माना जाएगा। ‘श्यामजी कृष्ण वर्मा’ द्वारा उन्हें ‘इण्डिया हाउस’ के क्रांतिकारी दस्ते में शामिल कर लिया गया। 

निधन – Demise

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें काफी कष्ट झेलने पड़े। भारत में उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई। उन्हें एक देश से दूसरे देश में लगातार भागना पड़ा। वृद्धावस्था में वे भारत लौटी तथा 13 अगस्त, 1936 को बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में गुमनामी की हालत में उनका देहांत हो गया। 

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