बिपिन चंद्र आधुनिक भारत के महत्त्वपूर्ण इतिहासकार थे। उन्हें आधुनिक भारत के आर्थिक और राजनीतिक इतिहास में विशेषज्ञता हासिल थी। अपनी आसाधारण क्षमताओं के कारण जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आधुनिक इतिहास के एमेरिटस प्रोफेसर नियुक्त हुए। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ साथ उन्होंने महात्मा गाँधी को एक उच्च भावभूमि प्रदान की। ‘द राइज एंड ग्रोथ ऑफ इकोनॉमिक नेशनलिज्म’ इनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है।
बिपिन चंद्र जीवनी – Bipin Chandra Biography
नाम | बिपिन चंद्र |
जन्म | 24 मई 1928 |
जन्म स्थान | कांगड़ा, तत्कालीन पंजाब, भारत |
अल्मा मेटर | फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज (लाहौर), स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय |
पेशा | लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर, एमेरिटस प्रोफेसर |
अन्य पद | भारतीय इतिहास कांग्रेस के अनुभागीय अध्यक्ष और महासचिव, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष, JNU में ऐतिहासिक अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष |
पुरस्कार | पद्म भूषण, रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बिहार |
मृत्यु | 30 अगस्त 2014 गुड़गांव, हरियाणा, भारत |
इतिहास लेखन में बिपिन चंद्र का योगदान – Bipin Chandra’s contribution in writing history
बिपिन चन्द जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान संस्थान के ऐतिहासिक अध्ययन केन्द्र में एमेरिटस प्रोफेसर थे। वर्तमान में ये नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष थे। इन्होंने आधुनिक भारत के संदर्भ में कई पुस्तके लिखीं जैसे आधुनिक भारत का इतिहास, भारत का स्वतंत्रता संग्राम, समकालीन भारत, आधुनिक भारत में विचारधारा और राजनीति।
उनकी गिनती देश के शीर्षस्थ इतिहासकारों में होती थी। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त होने के बाद वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बनाए गए और 2012 तक इस पद पर रहे । इन्हीं दिनों शहीद ए आजम भगत सिंह पर जीवनी लिख रहे थे।
बिपिन चंद्रा का राजनितिक जीवन – Political life of Bipin Chandra
बिपिन चन्द्र 1985 में भारतीय इतिहास कांग्रेस के अध्यक्ष भी बनाए गए थे। इसके अलावा वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के सदस्य भी थे। उन्होंने इतिहास पर करीब 20 पुस्तकें लिखी है। उन्होंने जयप्रकाश नारायण और आपात काल पर भी पुस्तकें लिखी। बिपिन चन्द्र मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित इतिहासकार थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने मार्क्सवाद की परम्परागत रूढ़ियों से अलग नए तर्क और निष्कर्ष प्रस्तुत करना शुरू किए, वे कम्युनिष्ट पार्टी के लिए राह का रोड़ा बन गए।
रूढ़िवादी मार्क्सवाद के नजर में उपनिवेशवादी आंदोलन बुर्जुआ हितों का पोषक या पूँजीपति समर्थक आंदोलन था। बिपिन चन्द्र के लिए यह सभी वर्गों को साथ लाकर अंग्रेजी साम्राज्यवाद का एकजुट मुकाबला करने वाला राष्ट्रीय आंदोलन था।
काफी सरल है इनका लेखन कार्य – His writing work is quite simple
अकादमिक लेखन की दृष्टि से कहें तो बिपिन चंद्र भारत के विश्व बुद्धिजीवीयों में से एक थे। आधुनिक भारतीय इतिहास का शायद ही कोई ऐसा आयाम था जिसे लेकर उनकी बहस ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज की साम्राज्यवादी इतिहास लेखन परम्परा से न हुई हो। वहीं दूसरी तरफ इतिहास में रूचि रखने वाले आम भारतीय पाठक के लिहाज से कहें तो बिपिन चंद्र भारत के सबसे लोकप्रिय इतिहासकार थे।
एक पारंपरिक इतिहासकार अमूमन शुष्क ऐतिहासिक लेखन को ही इतिहास मानता है। लेकिन विपिन चंद्र के लिए इतिहास का आम पाठक ही इतिहास का सबसे बड़ा श्रोता था। लाखों की तादाद में बिकी उनकी पुस्तकें इस बात की गवाह है। भारत में शायद ही कोई ऐसा घर हो जिसमें उनकी पुस्तकें विद्यमान न हो।
शिक्षण संस्थानों में महत्त्वपूर्ण योगदान – Important contribution to educational institutions
1960 के दशक में NCERT ने बच्चों के लिए इतिहास की राष्ट्रीय स्तरीय पाठ्य पुस्तक लिखवाने का निर्णय लिया था। जब इस काम के लिए रोमिला थापर आदि इतिहासकारों से सम्पर्क किया गया तो उन्हें यह काम हाथ में लेने से संकोच हुआ।
उनका मानना था कि पोस्ट ग्रेजुएट और रिसर्च स्कॉलर्स को पढ़ाने वाले उन जैसे लोगों के लिए छोटे बच्चों के लिए सरल भाषा में पाठ्य पुस्तके लिखना बहुत कठिन काम है। लेकिन बिपिन चंद्र ने अपने चिरपरिचित अंदाज में कहा कि ‘अगर हम सबके अंदर थोड़ा सा भी सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना और राष्ट्रप्रेम है तो हमें बच्चों के लिए यह किताब जरूर लिखनी चाहिए।’
महत्तवपूर्ण पुस्तकें – Important books
आधुनिक भारत का निर्माण: मार्क्स से गांधी तक
आधुनिक भारत का इतिहास
सांप्रदायिकता: एक परिचय
लोकतंत्र के नाम पर: जेपी आंदोलन और आपातकाल
उपनिवेशवाद पर निबंध
स्वतंत्रता के बाद का भारत , (मृदुला मुखर्जी और आदित्य मुखर्जी के साथ संयुक्त रूप से)
आधुनिक भारत में विचारधारा और राजनीति
भारतीय राष्ट्रवाद पर निबंध
समकालीन भारत पर निबंध
महाकाव्य संघर्ष
भारत का स्वतंत्रता संग्राम, 1857-1947
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन: दीर्घकालिक गतिशीलता
आधुनिक भारत में सांप्रदायिकता
भारतीय वामपंथ: आलोचनात्मक मूल्यांकन
आधुनिक भारत में राष्ट्रवाद और उपनिवेशवाद
स्वतंत्रता संग्राम , (अमलेश त्रिपाठी और बरुण डे के साथ संयुक्त रूप से)
भारत में आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय और विकास: भारतीय राष्ट्रीय नेतृत्व की आर्थिक नीतियाँ, 1880-1905
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