गोपाल कृष्ण गोखले ने सन् 1905 में ‘सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की थी।
भारतीय समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ व स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) का जन्म 09 मई, सन् 1866 को महाराष्ट्र के कोटलुक में हुआ था। गोपाल कृष्ण गोखले उन नेताओं में से एक थे, जो उन भारतीयों की आवाज़ बने जो अंग्रेजी हुकूमत से हमेशा के लिए आज़ादी चाहते थे। उन्होंने हमेशा ही सामाजिक सुधारों और गरीबों की सेवा पर बल दिया साथ ही अछूतों के न्याय के लिए भी कार्य किया। गोपाल कृष्ण गोखले कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे जिन्होंने ‘सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी’ (Servants of India Society) की स्थापना की थी। वह महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु भी थे।
गोपाल कृष्ण गोखले बायोग्राफी – Gopal Krishna Gokhale Biography In Hindi
नाम | गोपाल कृष्ण गोखले |
जन्म तारीख | 09 मई, सन् 1866 |
जन्म स्थान | कोटलुक, रत्नागिरी, महाराष्ट्र |
पिता का नाम | कृष्ण राव गोखले |
माता का नाम | वलुबाई |
पेशा | राजनीतिज्ञ |
राजनीतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
निधन | 19 फरवरी, सन् 1915 (मुंबई, महाराष्ट्र) |
गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन परिचय
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म ब्रिटिश भारत में हुआ था। वह ब्राह्मण परिवार से थे और उनके पिता कृष्ण राव गोखले एक क्लर्क के तौर पर काम किया करते थे। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा कोल्हापुर के राजाराम हाई स्कूल से ग्रहण की। इसके बाद गोपाल कृष्ण गोखले उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बॉम्बे (अब मुंबई) चले गए। जब उनकी आयु 18 वर्ष की थी, तब उन्होंने बॉम्बे के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद गोपाल कृष्ण गोखले हाई स्कूल में अध्यापक बन गए। इतिहास और राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर बनने के बाद उन्होंने कॉलेज में प्रिंसिपल के रूप में भी काम किया। गोपाल कृष्ण गोखले की अंग्रेजी और साहित्य में काफी रुचि थी। वह अंग्रेजों के सवाल का जवाब उनकी भाषा में ही दिया करते थे।
गोपाल कृष्ण गोखले का राजनीतिक सफर
- सन् 1889 में गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने।
- इसके बाद उन्हें सन् 1902 में इम्पेरियल विधान परिषद (Imperial Legislative Council) के लिए चुना गया।
- अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका और ज्ञान के कारण वह बहुत जल्द इस परिषद के सबसे प्रतिष्ठित सदस्यों में से एक बन गए।
- गोपाल कृष्ण गोखले को सन् 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का अध्यक्ष बनाया गया।
- इसके बाद उन्होंने सन् 1905 में ही ‘सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी’ (Servants of India Society) की स्थापना की।
- सन् 1908 में गोपाल कृष्ण गोखले ने ‘रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स’ की स्थापना की।
- सन् 1912 से 1915 तक वह भारतीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष भी रहे।
गोपाल कृष्ण गोखले का व्यक्तित्व
गोपाल कृष्ण गोखले हमेशा से ही जाति व्यवस्था और छुआछूत के कट्टर विरोधी थे। इसके अलावा उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर भी ज़ोर दिया। वह भारतीयों को उनके अधिकार दिलवाने के लिए हमेशा आगे रहते थे। गोपाल कृष्ण गोखले उदारवादी तो थे ही इसके अलावा वह सच्चे राष्ट्रवादी व देशभक्त भी थे, जिन्होंने देश की सेवा के लिए भारत सेवक समिति का गठन किया था। इस समिति में बढ़ी संख्या में लोग शामिल हुए।
गोपाल कृष्ण गोखले का मार्गदर्शन और महात्मा गांधी
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के चलते गोपाल कृष्ण गोखले ने महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, रायबिहारी घोष आदि कई बड़े नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों का मार्गदर्शन किया। गोपाल कृष्ण गोखले की महात्मा गांधी से पहले मुलाकात सन् 1901 में कलकत्ता में हुई थी। इसके बाद सन् 1912 में गोपाल कृष्ण गोखले ने दक्षिण अफ्रीका जाकर व्यक्तिगत रूप से महात्मा गांधी का मार्गदर्शन किया। गोपाल कृष्ण गोखले का मार्गदर्शन मिलने के बाद ही महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गोपाल कृष्ण गोखले के चार सिद्धांत
- सत्य के प्रति अडिगता
- अपनी भूल की सहज स्वीकृती
- लक्ष्य के प्रति निष्ठा
- नैतिक आदर्शों के प्रति आदरभाव
सन् 1915 में निधन
गोपाल कृष्ण गोखले को कई गंभीर बिमारियों ने जकड़ लिया। वह अस्थमा और मधुमेह का शिकार हो चले थे। इस कारण उनका तनाव भी बढ़ता ही जा रहा था। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही चला गया और 19 फरवरी, सन् 1915 में 48 वर्ष की आयु में उनका निधन महाराष्ट्र के मुंबई में हो गया। गोपाल कृष्ण गोखले हमेशा भारत को आज़ाद देखना चाहते थे। गोपाल कृष्ण गोखले का ये सपना देश के स्वतंत्रता सेनानियों को उनका मार्गदर्शन मिलने से ही संभव हो पाया।
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