गोपीनाथ बोरदोलोई को अविभाजित असम के मुख्यमंत्री के रूप में जाना जाता है। गोपीनाथ बोरदोलोई के प्रयासों के कारण ही असम आज भारत का अभिन्न अंग है। असम के लोग उन्हें बड़े प्यार से ‘शेर-ए-असम’ के नाम से याद करते हैं।
नाम | गोपीनाथ बोरदोलोई |
जन्म | 10 जून 1890 |
जन्म स्थान | गाँव रोहा, जिला नौगांव, असम, भारत |
पिता | बुध्देश्वर बोरदोलोई |
माता | प्रानेश्वरी बोरदोलोई |
पेशा | राजनीतिज्ञ |
शिक्षा | बी ए, एम ए, लॉ |
राजनीतिक दल | कांग्रेस |
पुरस्कार | भारत रत्न (1999) |
गोपीनाथ बोरदोलोई प्रगतिवादी विचारों वाले व्यक्ति थे। हमेशा से ही ये असम का आधुनिकीकरण करना चाहते थे। ये ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे तथा इनके पूर्वज उत्तर प्रदेश से जाकर असम में बस गए। 1917 के आसपास देश में आजादी के लिए अहिंसा और असहयोग आंदोलन शुरू हो चुके थे। अनेक नेताओं ने उस समय गांधीजी के आदेशानुसार सरकारी नौकरियों छोड़ दी और असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। गोपीनाथ बोरदोलोई तथा उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया और एक वर्ष कैद की सजा हुई। जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने अपने आपको पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया।
1926 के कांग्रेस के 41वें अधिवेशन में भाग लेकर अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल की। 1932 में गुवाहाटी नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए। असम राज्य के पास न तो अपना उच्च न्यायालय था और न ही कोई विश्वविद्यालय। इनके सफल प्रयासों से यह दोनों चीजें संभव हो सकी हैं। कामरूप अकादमी और बरुआ कॉलेज की स्थापना इनके ही प्रयासों का परिणाम है।
1939 में कांग्रेस ने प्रदेश विधान सभाओं में चुनाव लड़ने का निश्चय किया। गोपीनाथ बोरदोलोई को असम का कांग्रेस उम्मीदवार घोषित किया गया। इन चुनावों में गोपीनाथ विजयी हुए और अविभाजित असम मुख्यमंत्री बने।
भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर जिस समय भारत का विभाजन लागू हो चुका था उस समय असम की सत्ता गोपीनाथ बोरदोलोई के हाथों में थी। ब्रिटिशों ने असम के भी कुछ हिस्सों को पूर्वी पाकिस्तान को देने की योजना बनाई हुई थी। समय रहते बोरदोलोई और उनके साथी सजग हो गए और असम का विभाजन होने से रोक लिया। गोपीनाथ बोरदोलोई के नेतृत्व में असम में नवनिर्माण की पक्की आधारशिला रखी गई थी। इसलिए उन्हें आधुनिक असम का निर्माता भी कहा जाता है।