हरेकृष्ण महताब – Harekrushna Mahatab

हरेकृष्ण महताब - Harekrushna Mahatab

हरेकृष्ण महताब का नाम ओडिशा के प्रसिद्ध हस्तियों में शुमार होता है। वे ओडिशा के एक जन-नेता थे, जिन्हें ओडिशा के पहले मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त है। इसके अतिरिक्त, वे संविधान सभा के सदस्य भी थे। आधुनिक उड़ीसा के निर्माताओं में गिने जाने वाले हरेकृष्ण महताब ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

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हरेकृष्ण महताब का जीवन परिचय – Harekrushna Mahatab Biography in Hindi

जन्म और परिवार

हरेकृष्ण महताब का जन्म 21 नवम्बर, 1899 को हुआ था। वे ओडिशा के भद्रक जिले में अगारपडा गांव में जन्मे थे। कृष्ण चरण दास और तोहाफा देबी उनके माता-पिता थे। लेकिन, उनके नाना ने उन्हें गोद ले लिया था। उनके नाना का नाम था जगनाथ महताब, जो कि अगरपाड़ा के जमींदार थे।

शिक्षा

हरेकृष्ण महताब ने भद्रक हाई स्कूल से मैट्रिक किया। बाद में, उन्होंने रावेनशॉ कॉलेज, कटक में दाखिला लिया लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होने के कारण हरेकृष्ण महताब ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। 

स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण गए जेल

सन् 1922 में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के कारण हरेकृष्ण महताब को जेल भी जाना पड़ा। अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा उनपर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। वर्ष 1930 में भी उन्हें नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया। उन्हें कांग्रेस सेवादल के जनरल ऑफिसर कमांडिंग के रूप में चुना गया, जिस कारण 1932 में उन्हें पुरी में एआईसीसी सत्र और पार्टी पर प्रतिबंध लगने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया। सन् 1938 में, महताब को सुभाष चंद्र बोस द्वारा कांग्रेस कार्य समिति के लिए नामित किया गया था। एक बार फिर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें 1942 से 1945 तक जेल में रहना पड़ा।

राजनीति में

महताब की राजनितिक यात्रा शुरू हुई सन् 1924 में, जब वे बालासोर जिला बोर्ड के अध्यक्ष रहे। इस पद पर वे वर्ष 1928 तक रहे। अप्रैल, 1946 से मई, 1950 तक वे ओडिशा के मुख्यमंत्री बने रहे। इस प्रकार उन्हें ओडिशा का प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त है। वह 1956 से 1960 तक एक बार फिर ओडिशा के मुख्यमंत्री बने। वे संविधान सभा के सदस्य भी थे। मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में राज्य की राजधानी को कटक से भुवनेश्वर स्थानांतरित करना, हीराकुंड बांध का निर्माण और रियासतों के विलय, आदि जैसे महत्वपूर्ण कदम उल्लेखनीय है। 

वह 1962 में अंगुल से सांसद बने और वर्ष 1966 में कांग्रेस के उपाध्यक्ष चुने गये। उन्होंने 1966 में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और ‘उड़ीसा जन कांग्रेस’ की स्थापना और नेतृत्व किया। सन् 1976 में आपातकाल के खिलाफ आंदोलन करने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया।

लेखन का भी कार्य किया 

राजनेता होने के साथ-साथ वह एक लेखक भी थे। उन्होंने एक साप्ताहिक ‘प्रजातंत्र’ शुरू किया था जो बाद में दैनिक बन गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने साहित्य की कई विधाओं में भी विपुल लेखन कार्य किया।

हरेकृष्ण महताब की कृतियां 

उपन्यास

  • नूतन धर्म
  • टाउटर
  • अब्यापार
  • प्रतिभा-१९४६
  • तृतीय पर्ब

गल्प संकलन

  • स्वर्गरे एमर्जेन्सी

कविता संकलन

  • चारि चक्षु
  • पलासी अबसाने
  • शेष अशृ
  • नन्दिका
  • ललिता
  • राजाराणी
  • छायापतर यात्री

आत्मकथा

  • साधनार पथे

शिशु साहित्य

  • बिष्णुपुरर भितिरिकथा
  • गणेशङ्क पाठपढा

अन्यान्य

  • आत्मदान
  • रूपान्तर
  • इतिहासर परिहास
  • प्रबचन
  • गुप्त प्रणय
  • उत्तरोतर
  • शम्भुङ्कर तपस्या
  • अन्धयुग
  • युगसंकेत
  • ओड़िशा इतिहास (३ खण्ड)
  • साहित्य आलोचना
  • गान्धी धर्म
  • अहिंसार उपयोग
  • भारतीय संस्कृति
  • नेता ओ जनता
  • दश बर्षर ओड़िशा
  • गान्धीजी ओ ओड़िशा
  • आरब सागररु चिलिका
  • गाँ मजलिस (४ खण्ड)
  • आधुनिकता
  • स्रोत : विकिपीडिया

निधन
2 जनवरी, 1987 को उनका निधन हो गया। 

सम्मान व पुरुस्कार 

साहित्य और समाज में उनके काम के लिए उन्हें कई विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। 1983 में उन्हें उनकी कृति ‘गाँव मजलिस’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, वह संगीत नाटक अकादमी और उड़ीसा साहित्य अकादमी के भी अध्यक्ष थे।

लोक परम्पराओं में उन्हें “उत्कल केशरी” के नाम से जाना जाता है।  

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