के एस सुदर्शन – K S Sudarshan

के एस सुदर्शन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्रमशः पांचवे सरसंघचालक थे। अपने पद के उत्तराधिकारी के रूप में मोहन भागवत को संघ के संचालन का जिम्मा सौंपकर स्वेच्छा से सेवामुक्त हो गए। सुदर्शन संघ प्रमुख के पद से हटने के बाद से भोपाल में रह रहे थे और संघ के विभिन्न कार्यों में मार्गदर्शक की भूमिका में थे। 

के एस सुदर्शन जीवनी - K S Sudarshan Biography

नाम कुप्पाहाली सीतारमैया सुदर्शन
जन्म 18 जून, 1931
जन्म स्थान रायपुर, छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश)
पिता श्री सीतारामैया
शिक्षा बैचलर इन इंजीनियरिंग 
पेशा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक 
पूर्वाधिकारी प्रो राजेंद्र सिंह 
उत्तराधिकारी मोहन भागवत 
मृत्यु 15 सितंबर, 2012

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी - Multifaceted Personality

सुदर्शन जी अच्छे वक्ता होने के साथ ही अच्छे लेखक भी थे। यद्यपि प्रवास के कारण उन्हें लिखने का समय कम ही मिल पाता था, फिर भी उनके कई लेख विभिन्न पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किये। सुदर्शन जी का आयुर्वेद पर बहुत विश्वास था। लगभग 20 वर्ष पूर्व भीषण हृदयरोग से पीड़ित होने पर चिकित्सकों ने बाइपास सर्जरी ही एकमात्र उपाय बताया पर सुदर्शन जी ने लौकी के ताजे रस के साथ तुलसी, काली मिर्च आदि के सेवन से स्वयं को ठीक कर लिया। कादम्बिनी के तत्कालीन सम्पादक राजेन्द्र अवस्थी सुदर्शन जी के सहपाठी थे। उन्होंने इस प्रयोग को दो बार कादम्बिनी में प्रकाशित किया। अतः इस प्रयोग की चर्चा देश भर में हुई। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ - With Rashtriya Swayamsevak Sangh

सुदर्शन जी को संघ-क्षेत्र में जो भी दायित्व दिया गया, उसमें अपनी नवीन सोच को सम्मिलित करते हुए उन्होंने नये-नये प्रयोग किये। 1969 से 1971 तक उन पर अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का दायित्व था। इस दौरान ही खड्ग, शूल, छुरिका आदि प्राचीन शस्त्रों के स्थान पर नियुद्ध, आसन, तथा खेल को संघ शिक्षा वर्गों के शारीरिक पाठ्यक्रम में स्थान मिला। आज तो प्रातःकालीन शाखाओं पर आसन तथा विद्यार्थी शाखाओं पर नियुद्ध एवं खेल का अभ्यास एक सामान्य बात हो गयी है। 1977 में उनका केन्द्र कोलकाता बनाया गया तथा शारीरिक प्रमुख के साथ-साथ वे पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्र प्रचारक भी रहे। इस दौरान उन्होंने वहाँ की समस्याओं का गहन अध्ययन करने के साथ-साथ बांग्ला और असमिया भाषा पर भी अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया। 

https://youtu.be/yQcGe5IV8bM?si=u6u__h5OH0jncW8T

सरसंघचालक की भूमिका में सुदर्शन - Sudarshan in the role of Sarsanghchalak

संघ कार्य में सरसंघचालक की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण है। चौथे सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह को जब लगा कि स्वास्थ्य खराब होने के कारण वे अधिक सक्रिय नहीं रह सकते, तो उन्होंने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से परामर्श कर 10 मार्च, 2000 को अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में श्री सुदर्शन जी को यह जिम्मेदारी सौंप दी। नौ वर्ष बाद सुदर्शन जी ने भी इसी परम्परा को निभाते हुए 21 मार्च, 2009 को कार्यवाहक श्री मोहन भागवत को छठे सरसंघचालक का कार्यभार सौंप दिया। 

गांव के नाम पर रखा अपना नाम - Named after the village  

सुदर्शन मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे। कन्नड़ परम्परा में सुदर्शन सबसे पहले गांव, फिर पिता और फिर अपना नाम बोलते हैं। 

मृत्यु - Death 

एस सुदर्शन का 15 सितम्बर 2012 को रायपुर में दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ था। मृत्यु से पहले उन्होंने अपनी आंख माधव आई बैंक को दान में दे दी थी।