बांग्ला के अमर कथाशिल्पकार शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय प्राय: सभी भारतीयों भाषाओं में पढ़े जाने वाले शीर्षस्थ उपनासकार हैं। इनकी कालजयी कृतियों पर फिल्म बनी तथा आनेक धारावाहिक सीरियल भी, ‘देवदास’, ‘चरित्रहीन’ और ‘श्रीकांत’ के साथ तो यह बार-बार घटित हुआ है।
जीवन एवं शिक्षा
शरत्चन्द्र का जन्म 15 सितंबर 1876 को देबानन्दपुर, बंगाल में हुआ। उनकी बाल्यावस्था देबानन्दपुर और किशोरावस्था भागलपुर अपने ननिहाल में गुज़री, कथाशिल्पी शरत् के प्रसिद्ध पात्र देवदास, श्रीकान्त, सत्यसाची, दुर्दान्त राम आदि के चरित्र को झांके तो उनके बचपन की शरारतें सहज दिख जाएंगी। जब शरत् भागने की उम्र में आए तो अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ जब जी चाहता भाग निकलते, वापस घर लौटते तो मार पड़ती।
सन् 1893 हुगली में विद्यार्थी रहने के समय में ही उनकी साहित्य साधन का सूत्रपात हुआ, वर्ष 1897, उन्होंने भागलपुर में साहित्य सभा की स्थापना की, इस सभा का मुख्य पत्र ‘छाया’ था। 1896-1899 के बीच वे बिभूतिभूषण भट्ट के घर से साहित्य सभा का संचालन करते रहे और चन्द्रनाथ, देबदास, शुबदा आदि पुस्तकों की रचना की। इसी बीच ‘बनेली एस्टेट’ में कुछ दिन नौकरी की मगर 1900 में पिता से नाराजगी के कारण साधु वेश में चले गए, इसी समय इनके पिता की मृत्यु हो गई और उन्होंने वापस आकार उनका श्राद्ध किया। 1902 में वे बंगाल अपने मामा लालमोहन गंगोपाध्याय के घर चले गए जो कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील थे।
शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का जीवन परिचय – Sarat Chandra Chattopadhyay
जन्म | 15 सितंबर 1876, देबानन्दपुर, बंगाल |
मृत्यु | 16 जनवरी 1938, कोलकत्ता |
माता | भुवनमोहिनी देवी |
पिता | मोतीलाल चट्टोपाध्याय |
पेशा | लेखक, उपन्यासकार |
सम्मान | जगत्तारिणी गोल्ड मेडल (कलकत्ता विश्वविद्यालय, 1923), मानद डी.लिट्. (ढाका विश्वविद्यालय,1936), कुंतोलिन पुरस्कार |
आंदोलन | बंगाल पुनर्जागरण |
उल्लेखनीय काम | मेज दीदी, दर्पचूर्ण, श्रीकांत, अरक्षणीया, निष्कृति, देवदास आदि |
साहित्यिक परिचय
शरत् ने ‘यमुना’, ‘भारतवर्ष’ आदि पत्रिकाओं में के साथ काम किया है, 1912 में वह जब एक मास की छुट्टी पर घर पहुंचे तो यमुना पत्रिका के संपादक फणीन्द्रनाथ पाल ने उनसे पत्रिका के लिए लेख भेजने का अनुरोध किया। उसके अनुसार शरत् ने रंगून जाकर ‘रामेर सुमति’ कहानी यमुना पत्रिका के लिए भेजी।
1914 सन् में जब ‘यमुना पत्रिका’ से संबंध ठीक ना रहने के कारण शरत् ने ‘भारतवर्ष’ में नियमित रूप से लिखना शुरू किया।
अपने विपुल लेखन के माध्यम से शरत् बाबू ने मनुष्य को उसकी मर्यादा सौंपी और समाज की उन तथाकथित ‘परंपराओं’ को ध्वस्त किया, जिनके अंतर्गत नारी की आँखें अनिच्छित आंसुओं से हमेशा छलछलाई रहती हैं
समाज द्वारा अनसुनी रह गई वंचितों की विलख-चीख और आर्तनाद को उन्होंने परखा तथा गहरे पैठकर यह जाना कि जाति, वंश और धर्म आदि के नाम पर एक बड़े वर्ग को मनुष्य की श्रेणी से ही अपदस्थ किया जा रहा है। नारी और अन्य शोषित समाजों के धूसर जीवन का उन्होंने चित्रण ही नहीं किया, बल्कि उनके आम जीवन में आच्छादित इन्द्रधनुषी रंगों की छटा भी बिखेरी। प्रेम को आध्यात्मिकता तक ले जाने में शरत् का विरल योगदान है। शरत्-साहित्य आम आदमी के जीवन को जीवंत करने में सहायक जड़ी-बूटी सिद्ध हुआ।
शरत् की लेखनी पर रवींद्रनाथ ठाकुर का प्रभाव साफ दिखाई देता है, शरत् खुद भी रवींद्रनाथ जैसा लिखना चाहते थे, उनकी पुस्तक ‘बड़ी दीदी’ को लेकर रवींद्रनाथ ठाकुर ने भी उसकी प्रशंसा की।
शरत् बाबू की जीवनी पर आधारित एक उपन्यास “आवारा मसीहा” विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखा गया, विष्णु प्रभाकर कहते हैं
“ शरत् बाबू के चरित्र को लेकर समाज में जो भ्रांत धारणाएं बन गई थी, उसकी चर्चा करना असंगत होगा। कलाकार का चरित्र साधारण मानव से किसी न किसी रूप में भिन्न होता ही है, फिर शरत् बाबू तो या तो विद्रोह की कर सकते थे या आत्महत्या।”
शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का जीवन परिचय – Sarat Chandra Chattopadhyay
“शरत् बाबू के यहाँ किसी प्रकार का दिखावा नहीं था, कोई पाखंड नहीं था, बल्कि कोई बात तो वे लोगों को चिढ़ाने के लिए वह सब करते जो संभ्रांत समाज में करणीय नहीं होता था, इसमें उन्हें आनंद आता था।”
शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का जीवन परिचय – Sarat Chandra Chattopadhyay
शरत् के उपन्यासों पर आधारित ‘देवदास’,‘परिणीता’ जैसी सुपरहिट फिल्मों को ख्याति मिली, उन्होंने अपने कथा साहित्य से केवल बंगाल के समाज के सामने ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज के सामने स्त्री जीवन से सम्बंधित विभिन्न प्रश्नों को सजगता के साथ उकेर के रख दिया था।
शरत् बाबू का मानना था कि
“औरतों को हमने जो केवल औरत बनाकर ही रखा है, मनुष्य नहीं बनने दिया, उसका प्रायश्चित स्वराज्य के पहले देश को करना ही चाहिए। अपने स्वार्थ की खातिर जिस देश ने जिस दिन से केवल उसके सतीत्व को ही बड़ा करके देखा है, उसके मनुष्यत्व का कोई ख्याल नहीं किया, उसे उसका क़र्ज़ पहले चुकाना ही होगा।”
शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का जीवन परिचय – Sarat Chandra Chattopadhyay
उन्होंने ‘नारी का मूल्य’ नामक निबंध लिखकर नारी मुक्ति के संदर्भ में विभिन्न देशों की संस्कृति और इतिहास के हवाले से विस्तृत विवेचना करते हुए जिन मुद्दों को उन्होंने उजागर किया है, उससे न केवल साहित्य जगत में हलचल मचा दी, बल्कि साहित्य के समृद्धि में भी योगदान दिया।