शाहजहाँ की शख़्सियत का एक हिस्सा मुग़ल शान और वैभव को दर्शाने के लिए बनाया गया था। शाहजहाँ को अपने पिता जहाँगीर की तरह मूड स्विंग्स नहीं होते थे। वो मृदुभाषी और विनम्र थे और हमेशा औपचारिक भाषा में ही बात करते थे।
शाहजहाँ जीवन परिचय – Shah Jahan Biography
जन्म | 5 जनवरी 1592 |
शासनकाल | 19 जनवरी 1628 -31 जुलाई 1658 |
विवाह | मुमताज़ बेगम |
संतान | पुरहुनार बेगम, जहाँआरा बेगम, दारा शिकोह, शाह शुजा रोशनआरा बेगम, औरंग़ज़ेब, मुराद बख्श, गौहरा |
मृत्यु | 22 जनवरी 1666 |
जीवन परिचय – Life
पाँचवे मुग़ल शहंशाह थे। शाहजहाँ अपनी न्यायप्रियता और वैभवविलास के कारण अपने काल में बड़े लोकप्रिय हुए। किन्तु इतिहास में उनका नाम केवल इस कारण नहीं लिया जाता। शाहजहाँ का नाम एक ऐसे आशिक के तौर पर लिया जाता है जिसने अपनी बेगम मुमताज़ बेगम के लिए विश्व की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल का निर्माण करवाया। शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 में लाहौर में हुआ था। शाहजहाँ के बचपन का नाम खुर्रम था। उसका विवाह 20 वर्ष की आयु में नूरजहाँ के भाई आसफ़ ख़ाँ की पुत्री ‘आरज़ुमन्द बानो’ से सन् 1612 में हुआ था। जो बाद में उनकी सबसे प्रिय बेगम मुमताज़ बेगम बनी।
मुमताज़ से निकाह – Marriage
अर्जुमंद की पैदाइश थी 27 अप्रैल, 1593 की थी। वे बेइन्तहा खूबसूरत और बला की हसीन थी, कहते हैं शाहजहाँ ने पहली बार अर्जुमंद को आगरा के मीना बाज़ार की किसी गली में देखा था। उसकी अनहद खूबसूरती, शाहजहाँ को पहली नज़र में उससे प्यार हो गया।
फिर 10 मई, 1612 को सगाई के करीब पाँच साल बाद दोनों का निकाह हुआ। निकाह के समय शाहजहाँ की उम्र 20 बरस के करीब थी। अर्जुमंद की उम्र 19 साल, जहाँगीर ने इन दोनों की शादी का ज़िक्र अपने मेमॉइर ‘तुज़ुक-ए-जहाँगीरी’ (जहाँगीरनामा) में यूँ किया है-
अर्जुमंद और खुर्रम की जब सगाई हुई थी, तब खुर्रम की एक भी शादी नहीं हुई थी। मगर सगाई और शादी के बीच खुर्रम की एक शादी फारस की शहजादी क्वानदरी बेगम से हो गई। वो सियासी कारणों से करवाया गया रिश्ता था। अर्जुमंद से निकाह के बाद भी उसने एक और निकाह किया। अपनी तीन बीवियों में सबसे ज्यादा मुहब्बत शाहजहाँ अर्जुमंद बेगम से करता था। अर्जुमंद यानी मुमताज की बुआ थीं मेहरुन्निसा। जिनकी शादी शाहजहाँ के पिता जहाँगीर से हुई। और आगे चलकर इनका नाम ‘नूरजहाँ’ मशहूर हुआ।
38-39 बरस की उम्र तक मुमताज तकरीबन हर साल गर्भवती रहीं। शाहजहाँनामा में मुमताज के बच्चों का ज़िक्र है. इसके मुताबिक-
1. मार्च 1613: शहजादी हुरल-अ-निसा
2. अप्रैल 1614: शहजादी जहाँआरा
3. मार्च 1615: दारा शिकोह
4. जुलाई 1616: शाह शूजा
5. सितंबर 1617: शहजादी रोशनआरा
6. नवंबर 1618: औरंगजेब
7. दिसंबर 1619: बच्चा उम्मैद बख्श
8. जून 1621: सुरैया बानो
9. 1622: शहजादा, जो शायद होते ही मर गया
10. सितंबर 1624: मुराद बख्श
11. नवंबर 1626: लुफ्त्ल्लाह
12. मई 1628: दौलत अफ्जा
13. अप्रैल 1630: हुसैनआरा
14. जून 1631: गौहरआरा
शाहजहाँ अपनी सेना और मुमताज़ के साथ बुरहानपुर में थे, इसी जगह पर मुमताज़ को लेबर पेन हुआ यह दर्द करीब 30 घंटे तक चला, कोशिशों के बावजूद भी मुमताज़ को बचना संभव नहीं हुआ और मुमताज़ अपने 14वे बच्चे को जन्म देते हुए मर गई।
मुमताज की मौत के ग़म में शाहजहाँ ने अपने पूरे साम्राज्य में शोक का ऐलान कर दिया। कहते हैं, पूरे मुगल साम्राज्य में दो साल तक मुमताज की मौत का ग़म मनाया गया था। मुमताज जब आगरा में होतीं, तो यमुना किनारे के एक बाग में अक्सर जाया करती थीं। शायद इसी वजह से शाहजहाँ ने जब मुमताज की याद में एक ताज महल इमारत बनवाने का सोचा, तो यमुना का किनारा तय किया।
यूं तो मुग़लों पर कई पुस्तकें लिखी गई जिसमें से एक ‘एम्परर्स ऑफ़ द पीकॉक थ्रोन द सागा ऑफ़ द ग्रेट मुगल्स’ जिसके रचियाता अब्राहम इराली ने अपनी पुस्तक लिखा है, “शाहजहाँ के लिए आमंत्रण सबसे बड़ा गुण था, इसकी झलक शराब के प्रति उनके दृष्टिकोण से दिखती है। 24 वर्ष की उम्र में उन्होंने सबसे पहले शराब का स्वाद चखा वो भी तब जब उनके पिता ने उन्हें मजबूर किया। इसके बाद अगले छ सालों तक उन्होंने कभी कभार ही शराब चखी। साल 1620 में जब वो दक्षिण के अभियान पर निकले तो उन्होंने पूरी तरह से शराब छोड़ दी और अपनी शराब के पूरे भंडार को चम्बल नदी में उड़ेल दिया है”
इतालवी इतिहासकार निकोलाओ मनूची लिखते हैं “राजपाट से अपना ध्यान बांटने के लिए शाहजहाँ संगीत और नृत्य का सहारा लिया करते थे। विभिन्न संगीत वाद्य और शेरो-शायरी सुनना उनकी अदात थी, वो खुद भी अच्छा खासा गा लेते थे। उनके साथ गाने और नाचने वाली लड़कियों का एक समूह हमेशा चलता था जिन्हें कंचन नाम से पुकार जाता था”