लोकहित और लोककल्याण में सर रतनजी जमशेदजी टाटा (Sir Ratan Jamshedji Tata) ने अपना जीवन लगाया, भारत के विकास और उज्ज्वल भविष्य के लिए हमेशा तत्पर रहे।
जीवन
रतनजी जमशेदजी टाटा, जमशेदजी टाटा के पुत्र और दोराब टाटा के छोटे भाई थे, उनकी शिक्षा बॉम्बे के सेंट जेवियर्स कॉलेज से हुई, 1893 में उनका विवाह अर्देशिर मेरवानजी सेठ की छोटी बेटी नवाजबाई सेठ से हुआ, विवाह उपरांत कुछ समय उन्होंने इन्लैन्ड में बिताया, ट्विकेनहैम यॉर्क में एक घर खरीद, जो ड्यूक ऑफ ऑरलियंस का ग्रामीण निवास था। शादी से उन्हें कोई संतान नहीं थी, एक लड़का- नवल टाटा को गोद लिया।
जन्म | 20 जनवरी 1871, मुंबई |
मृत्यु | 5 सितम्बर 1918, इंग्लैंड |
पिता | जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा |
माता | हीरबाई दबू |
व्यवसाय | उद्योगपति |
कार्य-क्षेत्र
1886 में टाटा एण्ड सन्स फर्म में भागीदार के रूप में शामिल हुए, अपने पिता की मृत्यु के बाद पेरिस की एल’यूनियन फायर इंश्योरेंस कंपनी के मामलों में देखभाल का जिम्मा उठाया, अपने जीवनकाल में उन्होनें कई बार उद्योग एवं देश के विकास के लिए योगदान भी दिया है।
उन्होनें 1909 में, भारतीयों के काम करने के अधिकार के संघर्ष में सहायता के लिए उस समय 50,000 रुपए (आज के 4 करोड़ के बराबर) महात्मा गांधी को दान दिए। इस दान से एंग्लो बोअर शासकों के खिलाफ़ गांधी जी के विरोध प्रदर्शन में वित्तीय सहायता हासिल करने में मदद मिली।
उन्होनें दक्षिण भारत के नस्लभेद के खिलाफ़ महात्मा गांधी के संघर्ष को समझा और उसका समर्थन भी किया, इस उद्देश्य के लिए उन्होनें 125,000 रुपए भी दिए, इस उदारता के लिए गांधी जी लिखते हैं “श्री रतनजी जमशेदजी टाटा के उदार दान से यह स्पष्ट होता है कि भारत जागृत हो गया है… संभवतः अन्य भारतीय भी उनका अनुसरण करेंगे। पारसी अपने उदारदान के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं, श्री टाटा उदारता की भावना के प्रति सच्चे रहें।”
अपने जीवनकाल में वे पूर्ण रूप से समाज के प्रति समर्पित रहे, समाज, लोक, एवं राष्ट्रहित के लिए काम करते थे, विलासित जीवन होने के बावजूद भी गरीबों की समस्याओं को समझने और उसका समाधान करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।