ठाकुर केसरी सिंह बारहठ – Thakur Kesari Singh Barhath

ठाकुर केसरी सिंह बारहठ क्रांतिकारी होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। एक राजनीतिज्ञ होने के साथ साथ केसरी सिंह बारहठ एक लेखक, कवि और विचारक भी थे। राजस्थान के अंदर इन्हें ‘राजस्थान केसरी’ के नाम से भी जाना जाता है। 

ठाकुर केसरी सिंह बारहठ - Thakur Kesari Singh Barhath

नाम ठाकुर केसरी सिंह बारहठ 
जन्म 21 नवंबर 1872 
जन्म स्थान देवपुरा, शाहपुरा रियासत, राजस्थान, भारत 
पिता ठाकुर कृष्ण सिंह बारहठ 
माता बख्तावर कँवर 
पेशा मेवाड़ महाराणा के मुख्य सलाहकार 
प्रसिद्धि ब्रिटिश राज के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियां 
मृत्यु 14 अगस्त  1941 

जन्म एवं प्रारंभिक शिक्षा - Birth and early Education

शाहपुरा रियासत में जन्में ठाकुर केसरी सिंह बारहठ सौदा वंश के चारण थे। बचपन में ही माता का देहांत हो गया था। तब इनकी दादी ने इनका पालन पोषण किया। जिसके परिणामस्वरूप इनमें बचपन से ही संस्कारों का प्रार्दुभाव स्वाभाविक था। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा के लिए इनके पिता ठाकुर कृष्ण सिंह बारहठ ने उदयपुर में ही काशी के विद्वान् पंडित से संस्कृत में ही शुरू कराई। संस्कृत के साथ साथ ठाकुर केसरी सिंह बारहठ ने बांग्ला, मराठी एवं गुजराती का भी अध्ययन किया। इसके अलावा ज्योतिष, गणित और खगोल शास्त्र का भी अध्ययन किया था। 

साहित्य में भी था स्थान - Had a place in literature also    

केसरी सिंह बारहठ ने क्रांतिकारी होने के साथ साथ अपनी कलम के साथ भी क्रांति जारी रखी। राजस्थान के क्षत्रियों के साथ अन्य लोगों को ब्रिटिश गुलामी के विरुद्ध एकत्रित करने, शिक्षित करने एवं उनमे आत्मजागृति लाने के लिए कार्य किया। सन 1903 में उदयपुर महाराजा फतेह सिंह को कर्जन के द्वारा आयोजित बैठक में भाग लेने के लिए चेतावनी के तौर पर उन्होंने "चेतावनी रा चुंगट्या" नामक 13 सोरठों की रचना की। 

देश के शीर्ष क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जिनमें रासबिहारी बोस, मास्टर अमीरचंद, लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, अर्जुन लाल सेठी, रावगोपाल सिंह जैसे शीर्ष नेतृत्व को समर्थन दिया तथा हथियारों को उपलब्ध कराने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। 

जेल यात्रा पर भी गए हैं ठाकुर केसरी सिंह - Thakur Kesari Singh has also gone on jail visit

शाहपुरा रियासत के राजा नाहर सिंह के सहयोग से 2 मार्च 1914 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 20 साल की कारावास के साथ ही उन्हें बिहार के हजारीबाग की जेल में डाल दिया गया। वहां 5 वर्षों तक अन्न का त्याग करते रहे और इसके पीछे यह तर्क दिया की कहीं पुलिस गुप्त बातें जानने के लिए खाने में कुछ मिला न दें। जिससे उनका मस्तिष्क विकृत हो सकता है और वह सब गुप्त राज पुलिस को न पता लग जाएँ। 

हजारीबाग जेल से उन्हें अप्रैल 1920 में स्वतंत्र किया गया। वापस आने के बाद केसरी सिंह ने माउंट आबू के गवर्नर जनरल को एक विस्तृत पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने भारत की रियासतों एवं राजस्थान के लिए एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना की एक 'योजना' की मांग प्रस्तुत की थी। उस पत्र के कुछ अंश इस प्रकार हैं -

"प्रजा केवल पैसा ढालने की प्यारी मशीन है और शासन उन पैसों को उठा लेने का यंत्र। शासन शैली ना पुरानी ही रही ना नवीन बनी, न वैसी एकाधिपत्य सत्ता ही रही न पूरी ब्यूरोक्रेसी ही बनी। अग्नि को चादर से ढकना भ्रम है, खेल है या छल है।"

14 अगस्त 1941 को शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण इनका देहांत हो गया।