मेवाड़ की भूमि में अनगिनत योद्धा हुए हैं। जिसमें हमारे इतिहास में कुछ ऐसे भी नायक हैं जिनका नाम राजस्थान और भारत के इतिहास में भुला दिया गया। राजपूताना इतिहास में एक ऐसा ही नाम महाराणा उदय सिंह द्वितीय जिसे कई इतिहासकारों की आलोचना झेलनी पड़ी। महाराणा उदय सिंह को राजस्थान के शहर उदयपुर के संस्थापक के रूप में जाना जाता है।
उदय सिंह द्वितीय जीवनी – Uday Singh II Biography
नाम | उदय सिंह द्वितीय |
जन्म | 4 अगस्त 1522 |
जन्म स्थान | चित्तौड़गढ़ दुर्ग, राजस्थान, भारत |
पिता | राणा सांगा |
माता | रानी कर्णावती |
राजवंश | सिसोदिया |
शासन | मेवाड़ |
उपलब्धि | उदयपुर शहर की स्थापना |
पत्नी | महारानी जयवंताबाई, सज्जाबाई सोलंकी, धीरबाई भटियानी इत्यादि |
उत्तराधिकारी | महाराणा प्रताप, सागर सिंह, जगमाल सिंह इत्यादि |
मृत्यु | 28 फरवरी 1572, गोगुन्दा, राजस्थान, भारत |
क्या है इतिहास – What is history
मेवाड़ के 53वें महाराणा, राणा उदय सिंह का प्रारंभिक जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा था। महाराणा उदय सिंह का राज्यभिषेक 1539 में कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। बाल्यावस्था में ही इनके पिता राणा सांगा खानवा के युद्ध में घायल हो गए। कुछ समय बाद ही उनका देहांत हो गया। इनकी माता कर्णावती ने अन्य राजपूताना रानियों के साथ मिलकर जोहर कर लिया था।
पन्ना ध्याय के प्रयास से बची थी जान – Life was saved due to the efforts of Panna Dhaya.
इनके भाई विक्रमादित्य की हत्या करने के बाद बनवीर शासक बन गया। उसी समय बनवीर उदय सिंह की भी हत्या करना चाहता था, लेकिन पन्ना ध्याय के सफल प्रयास से उदय सिंह के प्राणो की रक्षा हो सकी। पन्ना ध्याय ने उदय सिंह की जगह अपने पुत्र चंदन के प्राणों का बलिदान दे दिया था। पन्ना ध्याय उदय सिंह को लेकर कुछ सरदारों के सहयोग से चित्तौड़ से निकलकर कुंभलगढ़ चली गईं।
राणा उदय सिंह की रानियाँ और संतान – Queens and children of Rana Udai Singh
राणा उदय सिंह की मृत्यु 42 वर्ष की अवस्था में 1572 में हुई थी। उनकी सात रानियों से उन्हें 24 लड़के थे। उनकी सबसे छोटी रानी का लड़का जगमल था, जिससे उन्हें असीम अनुराग था। मृत्यु के समय राणा उदय सिंह ने अपने इसी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। लेकिन राज्य दरबार के अधिकांश सरदार लोग यह नहीं चाहते थे कि राणा उदय सिंह का उत्तराधिकारी जगमल जैसा अयोग्य राजकुमार बने। कुछ किवदंतियों के अनुसार राणा उदय सिंह के 22 पत्नियां थी।
अकबर से मुकाबला – Competition with akbar
1567 में जब चित्तौड़गढ़ को लेकर अकबर ने इस किले का दूसरी बार घेराव किया तो यहां राणा उदय सिंह की सूझबूझ काम आयी। अकबर की पहली चढ़ाई को राणा ने असफल कर दिया था। पर जब दूसरी बार चढ़ाई की गयी तो लगभग छह माह के इस घेरे में किले के भीतर के कुओं तक में पानी समाप्त होने लगा। किले के भीतर के लोगों की और सेना की स्थिति बड़ी ही दयनीय होने लगी। किले के रक्षकदल सेना के उच्च पदाधिकारियों और राज्य दरबारियों ने मिलकर राणा उदय सिंह से आग्रह किया कि राणा संग्राम सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में आप सुरक्षा हमारा परम कर्तव्य हैं। इसलिए आपकी प्राण रक्षा इस समय आवश्यक है। तब राणा उदय सिंह ने सारे राजकोष को सावधानी से निकाला और उसे साथ लेकर पीछे से अपने कुछ विश्वास अंगरकक्षकों के साथ किले को छोड़कर निकल गये। अगले दिन अकबर की सेना के साथ भयंकर युद्ध करते हुए वीर राजपूतों ने अपना अंतिम बलिदान दिया। जब अनेकों वीरों की छाती पर पैर रखता हुआ अकबर किले में घुसा तो उसे ज्ञात हुआ कि वह युद्ध तो जीत गया है, लेकिन कूटनीति में हार गया है। किला उसका हो गया है परंतु किले का कोष राणा उदय सिंह लेकर चले गये हैं। अकबर झुंझलाकर रह गया। राणा उदय सिंह ने जिस प्रकार किले के बीजक को बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की वह उनकी सूझबूझ, बहादुरी और उचित कूटनीति का ही प्रमाण है।
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