शहीद ए आजम ‘ऊधम सिंह’ – Shaheed-e-Azam ‘Udham Singh’

ऊधम सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे। ऊधम सिंह गदर पार्टी और एचएसआरए से संबंधित एक भारतीय क्रांतिकारी थे , जिन्हें 13 मार्च 1940 को भारत में पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ'डायर की हत्या के लिए जाना जाता है। उन्होंने जलियाँवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए लंदन में कैक्स्टन हॉल में आयोजित एक बैठक में माइकल ओ'डायर की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद उन्हें लंदन में ही फाँसी की सजा सुनाई गयी।

ऊधम सिंह जीवनी - Udham Singh Biography

नाम सरदार ऊधम सिंह 
मूल नाम शेर सिंह 
अन्य नाम राम मोहम्मद सिंह ‘आजाद’ 
जन्म 26 दिसंबर 1899
जन्म स्थान सुनाम, पंजाब, ब्रिटिश भारत 
पिता टहल सिंह
माता नारायण कौर
पेशा क्रांतिकारी 
संगठन गदर पार्टी,हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन,भारतीय मज़दूर संघ
प्रसिद्धि का कारण माइकल ओ'डायर की हत्या
फांसी 31 जुलाई 1940, लंदन 

बचपन से थे विद्रोही - Was rebellious since childhood


दो भाईयों में छोटे ऊधम सिंह बचपन से ही विद्रोही प्रवृत्ति के थे। प्रतिदिन अपने अधिकारियों के साथ विवाद रहने के कारण कई बार नौकरी से निकाले गए। तीन वर्ष की आयु में ही माता का स्वर्गवास हो गया था। बाद में दोनों लड़के अपने पिता के करीब रहे, जब वे पंजाब नहर कॉलोनियों के हिस्से, एक नवनिर्मित नहर से मिट्टी ले जाने वाले नीलोवाल गांव में काम करते थे। नौकरी से निकाले जाने के बाद उन्हें उपली गांव में रेलवे क्रॉसिंग के चौकीदार के रूप में काम मिला।

अनाथालय ने दी थी पहचान - The orphanage gave the identity

1907 में पिता की मृत्यु के बाद चाचा ने रखने में असमर्थता जताते हुए उन्हें और उनके भाई को खालसा अनाथालय को सौंप दिया। जहां इनके भाई ‘साधु’ और इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। इनका भाई साधु को मुक्ता नाम मिला और इनका नाम शेर सिंह हटाकर ऊधम सिंह रखा गया। 1917 में अनाथालय में ही ‘मुक्ता’ की अज्ञात कारणों से मृत्यु हो गयी थी।

ब्रिटिश भारतीय सेना के लिए भी किया था काम - Also worked for the British Indian Army

ऊधम सिंह ने भाई की मृत्यु के तुरंत बाद 1918 में प्रथम विश्व युद्ध के लिए आधिकारिक आयु कम होने के बावजूद अधिकारियों को मनाने में सफल हो गए। बाद में उन्हें तट से बसरा तक फील्ड रेलवे की बहाली पर काम करने के लिए 32वें सिख पायनियर्स के साथ सबसे निचले रैंक के श्रमिक इकाई में शामिल किया गया । उनकी छोटी उम्र और अधिकारियों के साथ संघर्ष के कारण उन्हें छह महीने से भी कम समय में पंजाब लौटना पड़ा। 1918 में, वह फिर से सेना में शामिल हो गए और उन्हें बसरा और फिर बगदाद भेज दिया गया , जहाँ उन्होंने बढ़ईगीरी और मशीनरी और वाहनों के सामान्य रखरखाव का काम किया।  एक साल बाद 1919 की शुरुआत में अमृतसर के अनाथालय में लौट आए। 

1919 को  जलियाँवाला बाग में थे शामिल - In 1919, he was involved in Jallianwala Bagh.  

13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग में बीस हजार से अधिक लोग यूरोप में हुई गिरफ्तारियों के शांतिपूर्ण विरोध के परिणामस्वरूप एकत्रित हुए थे। ऊधम सिंह और अनाथालय के उनके दोस्त भीड़ को पानी पिला रहे थे। कर्नल रेजिनाल्ड डायर की कमान में सैनिकों ने भीड़ पर गोलियां चलाईं, जिसमें कई सौ लोग मारे गए। 

1940 में लिया बदला - Took revenge in 1940

1931 में जेल से रिहा होने के बाद ऊधम सिंह कश्मीर चले गए। वहां से वह जर्मनी भागने में सफल हुए। कुछ समय जर्मनी में रहने के बाद 1934 में वह लंदन पहुँच गए। वहीं नौकरी करते हुए उन्होंने निजी तौर पर माइकल ओ'डायर की हत्या की योजना बनाई। 

यहां ध्यान देने वाली बात यह है की ब्रिगेडियर रेजिनाल्ड डायर जिसने जलियाँवाला बाग में गोली चलाने का आदेश दिया था उसकी मृत्यु 1927 में ही हो गयी था। 

दरअसल माइकल ओ'डायर उस समय पंजाब प्रान्त के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। उन्होंने इस घटना को सही ठहराया था। ऊधम सिंह ने शपथ ली कि वह माइकल ओ’डायर को मारकर इस घटना का बदला लेंगे।

21 साल बाद 13 मार्च 1940 को ‘रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी’ की लंदन के ‘कॉक्सटन हॉल’ में बैठक थी, जहां माइकल ओ’डायर भी वक्ताओं में से एक था। 

ऊधम सिंह ने अपनी रिवाल्वर एक मोटी सी किताब में छिपा ली। बैठक के बाद ऊधम ने माइकल ओ’डायर पर गोलियां चला दीं। मोके पर ही उसकी मौत हो गई। 

सम्मान - Respect