तस्लीमा की हिम्मत सराहनीय

अभी इजरायल में हमास द्वारा किये गए आतंकी हमले की जबावी कार्यवाही में कई देशों का दर्द फिलिस्तीन के लिए उभर आया है। भारत मे भी कई राजनीतिक, शिक्षार्थियों व मुस्लिमों ने फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास पर हो रही इजरालयी कार्यवाही को गलत ठहराते हुए फिलिस्तीन का समर्थन किया है। भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस ने भी फिलिस्तीन का ही समर्थन किया है। फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले सभी लोगों के लिए बंगलादेशी कवयित्री एवं लेखिका तस्लीमा नसरीन ने सन्देश देते हुए कहा है कि बंगलादेश में फिलिस्तीनियों पर होने वाले अत्याचार से परेशान होने वाले अपने देश मे अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों पर भी ध्यान दें।

तस्लीमा नसरीन ने ये सब बंगलादेशी लोगों के लिए कहा है परन्तु ये सीख उन सभी के लिए है जिनको अपने व पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक समाज पर हो रहे अत्याचार न दिखाई देते बल्कि फिलिस्तीन पर जबावी कार्यवाही अत्याचार दिखाई दे रही है। कांग्रेस सहित भारत के विपक्ष को जंहा इजरालयी कार्यवाही मानवता के खिलाफ लग रही है वंही उनकी मानवता की सीख पाकिस्तान ,अफगानिस्तान व बंग्लादेश के लिए नही दी जाती है। भारत मे रहने वाले मुसलमानो को भी पाक, बंगलादेश तथा अफगानिस्तान में अल्पसंख्यको पर हो रहे असहनीय अत्याचार नही दिखते।

दूसरे देशों को छोड़ो अपने ही देश कश्मीर में जब हिंदुओ को कत्ल करके जवान बहु बेटियों को छोड़कर जाने को मजबूर किया गया, तब इनको दर्द नही हुआ। तस्लीमा ने मुस्लिम होकर सच कहने की हिम्मत की है जो कि सराहनीय है। भारत के विपक्षी नेताओं तथा भारत के मुसलमानों को कश्मीर, पाकिस्तान, बंग्लादेश में हिंदुओं की पीड़ा पर भी कुछ कहना चाहिए। इन सभी जगह अल्पसंख्यकों की आबादी निरन्तर कम होते होते खत्म होने की स्थिति में आ गई है। कँहा गए वो सब? कभी सोचा है, किसी ने।

या तो उनको मार दिया जाता है या फिर मुस्लिम बनने पर मजबर कर दिया जाता है। पाकिस्तान व बंग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक लोगों के घरों में जबान बेटियां दिखाई नही देती, इसका कारण कभी किसी ने समझा है। जवान होते ही बेटियों को उठाकर जबरन मुसलमानो के साथ शादी करा दी जाती है। शादी भी उन मुस्लिमो से कराई है जो कि आयु में अधिक हो, बेरोजगार होते, गैर कानूनी काम करते हो या फिर मंदबुद्धि हो। इससे भी अलग जबरन दबाव देकर इन हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यक बेटियों के अत्याधिक बच्चे पैदा कराए जाते हैं। सुनने में ये भी आया है कि अल्पसंख्यक बच्चियों को अय्याशी के लिए भी इस्तेमाल इन देशों में किया जाता है।

जवान युवाओं को झगड़ा करके मार दिया जाता है, फिर मुसलमान बनाया जाता है या फिर झूठे केस में लंबी जेल करा दी जाती है, अल्पसंख्यकों के प्राचीन धार्मिक स्थलों को तोड़कर नष्ट कर दिया या फिर वँहा मस्जिद बना दी गई। कई हिन्दू धार्मिक स्थानों को तोड़कर सार्वजनिक शौचालय बनाये गए हैं। फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पास करने वाली कांग्रेस ने लंबे समय तक भारत पर राज किया, परन्तु कभी पड़ोसी देशों में हो रहे अल्पसंख्यको पर अत्याचार के खिलाफ कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया। बल्कि वर्तमान की भारत सरकार ने जब इन पीड़ितों की मदद के लिए नागरिकता कानून बनाया तो सबसे पहले कांग्रेस ने ही विरोध किया था। फिर पूरे विपक्ष ने इसका राजनीतिक रूप देकर विरोध किया।

तस्लीमा नसरीन जैसी हिम्मत भारत के उन मुसलमानों को भी दिखानी चाहिए जो फिलिस्तीन को दीनी भाई बताकर चिंतित हो रहे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वो सभी मुस्लिम छात्र को हमास के समर्थन में सड़कों पर आकर धार्मिक कट्टरता के नारे लगा रहे थे। एक बार तस्लीमा जैसी हिम्मत दिखाये और सड़कों पर आकर कहे कि पाकिस्तान व बंग्लादेश में अल्पसंख्यको पर हो रहे अत्याचार बन्द हो।

पर ऐसा होगा नही क्योंकि भारत सहित विश्व के अधिकतम मुसलमानों का ध्येय एक ही है - इस्लामीकरण। इनका सहयोग वो सभी हिन्दू कर रहे है। राजनीतिक व निजी स्वार्थ के लिए इनका सहयोग कुछ हिंदुओ द्वारा भी किया जाता है। केवल वोट लेने के स्वार्थ के कारण हर गलत बात पर भी आंख बन्द करके कांग्रेस सहित भारत का विपक्ष इनके साथ खड़ा रहता है। बहुत कम संख्या में तस्लीमा जैसे बहादुर मुसलमान हिम्मत करके सच कहने साहस करते हैं।निश्चित ही, तस्लीमा की जुबान से कहा गया सच सभी के लिए सीख भी है और सन्देश भी। तस्लीमा नसरीन के अतितिक्त तारिक फतेह, रिजवान अहमद, सुबोई खान जैसे कई मुस्लिमों ने ऐसा साहस दिखाया है परन्तु इनको कट्टरतपंथी लोग मुस्लिम ही मानने को तैयार नही।

लेखक : ललित शंकर गाजियाबाद

(नोट – इस लेख को लिखने का सम्पूर्ण श्रेय महानगर प्रचारक ललित शंकर जी को जाता है।)