UP Nikay Chunav 2023: लखनऊ, कानपुर समेत नगर निगम की कौन सी सीट किसके लिए आरक्षित

उत्तर प्रदेश सरकार ने 30 मार्च 2023 में गुरुवार को निकाय चुनाव की सूची जारी कर ही है. इस मौके पर नगर विकास मंत्री ने बताया कि छह अप्रैल शाम छह बजे तक आपत्तियां लगा सकेंगे। नवीनतम लिस्ट को नीचे देखा जा सकता है

महापौर की आरक्षण सूची

नगर पालिका परिषदों के अध्यक्ष पद की आरक्षण सूची

ओबीसी आरक्षण रद्द, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला - Previous Update

High Court on UP Municipal Election - हाईकोर्ट ने यूपी में नगर निकाय चुनाव को लेकर बड़ा फैसला लिया है। जिसके अंतर्गत ओबीसी को आरक्षण (OBC Reservation) ना देते हुए चुनाव कराने का फैसला लिया गया है। इस फैसले के तहत ओबीसी की आरक्षित सीटों को जनरल कैटेगरी में माना जाएगा।

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में निकाय चुनाव होने वाले हैं। इस पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार को बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट के इस फैसले के तहत 5 दिसंबर को जारी हुए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन (Draft Notification) को खारिज कर दिया गया है। कोर्ट ने ओबीसी को आरक्षण दिए बिना ही राज्य सरकार को चुनाव कराने का आदेश दिया है। इसके अलावा प्रशासक नियुक्त कराने के आदेश को भी रद्द कर दिया गया है। अदालत ने यह भी कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ट्रिपल टेस्ट (Triple Test) ना हो तब तक आरक्षण नहीं माना जाएगा। हाईकोर्ट ने 2017 में जारी ओबीसी रैपिड सर्वे (OBC Rapid Servey) को नकार दिया है।

हाईकोर्ट ने 2017 में जारी ओबीसी रैपिड सर्वे को नकार दिया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंड पीठ ने इस मुद्दे पर 93 याचिकाओं पर एक साथ फैसला लिया है। अदालत ने निकाय चुनाव को तत्काल कराने का आदेश दिया है। न्यायपीठ का कहना है कि ओबीसी को आरक्षण देने के लिए एक आयोग बनाने के लिए भी कहा है। यूपी सरकार इस मामले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है क्योंकि राज्य में ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराना थोड़ा मुश्किल होगा। यदि चुनाव हो भी गए तो आगे कानूनी पेंच फसने की संभावना है।

यूपी सरकार की दलील में नहीं था दम
24 दिसंबर को इस मामले में सुनवाई की गई थी। सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में अपने एक्शन को डिफेंड करने की कोशिश करने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी दलील देते हुए कहा है कि उन्होंने जो नोटिफिकेशन जारी किया है वो बिलकुल सही तरीके से जारी किया गया है। इस दलील पर हाई कोर्ट सहमत नहीं था। कोर्ट का कहना था की इसकी कोई दलील नहीं है और बिना दलील के इस तरह की एक्सरसाइज कैसे की जा सकती है। इस पर कोर्ट ने उनसे डाटा भी मांगा लेकिन उन्होंने कोर्ट के सामने कोई दलील पेश नहीं की।

वकील ने बताया कि सुनवाई के दौरान पिछली सुनवाई का हवाला दिया गया था। साथ ही यह भी कहा गया कि 2014 और 2017 के चुनावों में भी नियमों का उल्लंघन किया गया था। इस पर अदालत में बहुत से मामले भी दर्ज किए गए थे। उनका कहना है कि इसी आधार पर ये चुनाव भी कराने का प्रयास किया जा रहा है। यही कारण है कि मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा रही है।