दनकौर में प्रतिवर्ष होने वाला प्रसिद्ध सामाजिक, धार्मिक एवं शिक्षण मेला जो भगवान श्रीकृष्ण जी के जन्म दिवस पर मनाया जाता है। यह 101 वीं वार्षिक मेला इस वर्ष भी अत्यन्त उत्साह व समारोह के साथ भाद्रपद की कृष्णपक्ष सप्तमी से शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक 25 अगस्त 2024 से 6 सितम्बर 2024 तक आयोजित किया जा रहा है।
पूरे देश में गुरु द्रोणाचार्य का एकमात्र मंदिर और प्रतिमा दनकौर के प्राचीन मंदिर में ही स्थापित है। यहां द्रोणाचार्य की वह दुर्लभ मूर्ति भी स्थापित है, जिसको अपना गुरु मानकर भील बालक एकलव्य ने धनुर्विद्या प्राप्त की थी। मंदिर परिसर के समीप ही गुरु द्रोण तालाब प्राचीन काल से क्षेत्र और देश दुनिया में आकर्षण का केंद्र है। यहां के तालाब में प्रतिवर्ष श्री कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर एनसीआर का सबसे बड़ा मेला लगता है। यहां होने वाला मल्ल युद्ध देखने कई राज्यों के लोग और पहलवान आते हैं। द्रोण तालाब अंग्रेजी सल्तनत में बुलंदशहर के तत्कालीन जिला कलक्टर ने पानी के लिए खुदवाया था। उसी तालाब में द्रोणाचार्य की पत्थर से बनी वह प्राचीन मूर्ति मिली थी, जिसको एकलव्य ने अपना गुरु मानकर धनुर्विद्या सीखी थी।
दनकौर में मन्दिर की मान्यता को लेकर जो तथ्य दिए जाते हैं उनमें सबसे महत्तवपूर्ण तथ्य श्री गुरु द्रोणाचार्य जी का प्राचीन मन्दिर है। इस मन्दिर में एकलव्य द्वारा निर्मित श्री गुरु द्रोणाचार्य जी की प्रतिमा स्थापित है। जिसमें लोगो की अटूट श्रद्धा है। दूर-दूर से मनोकामनाओं की पूर्ति हेतू लोग इस मन्दिर में आते हैं तथा मन्दिर द्वारा आयोजित मेले में मनोरंजन करते हुए धर्म लाभ उठाते हैं।
विराट दंगल, जिसमें देश भर के अनेक छोटे बड़े प्रसिद्ध मल्ल श्री गुरु द्रोणाचार्य के अखाड़े में उतरकर शोभा बढ़ाते नजर आएंगे। विजेताओं को अनेक प्रकार के पारितोषिक देकर पुरस्कृत किया जायेगा तथा साथ ही कबड्डी प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है।
श्री द्रोण नाट्य मण्डल अपने 101 वर्षीय विशाल रंग मंच पर धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, नाटक, नील, नृत्य और अनेक मनोहर दृश्य दृश्यावलियों सहित अनेक रंगारंग कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है।
इसके अतिरिक्त मेले में अनेक मनोरंजन खेल तमाशे जैसे- सर्कस, काला जादू, कटपुतली, विभिन्न प्रकार के झूले एवं विभिन्न खाद्य सामग्री की दुकानें एवं दैनिक रोजमर्रा में उपयोग होने वाली वस्तुओं की दुकानें भी लगाई जाती हैं।
यहां पारसी थिएटर चलाने वाले मनोज त्यागी ने इस साल सबसे बड़ा आरोप लगाया है। उनका कहना है कि बीते 101 साल में पहली बार पारसी थिएटर को बंद कर दिया गया और उसकी जगह मेले में सूफियाना नाइट का कार्यक्रम रख दिया गया है। अब प्रश्न यह है कि विशुद्ध रूप से द्रोणाचार्य को समर्पित कृष्ण जन्माष्टमी पर होने वाले इस धार्मिक मेले में गैर हिंदू धर्म के धार्मिक सूफियाना नाइट का क्या मतलब है?
बता दें सूफी संगीत इस्लाम की एक परंपरा रही है जिसमें इस्लाम में संगीत के हराम होने के बावजूद एक वर्ग द्वारा गीत संगीत के माध्यम से वह अपने ईष्ट की पूजा करते हैंI ऐसे में स्थानीय निवासियों का कहना है कि आखिर जिस मेले का उद्घाटन भाजपा के पूर्व संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा कर रहे हो उसमें सूफियाना नाइट की जरूरत क्या है? क्या भाजपा और भाजपा सांसद का हिंदुत्व सब महज एक दिखावा है ?