पढाई के साथ साथ जरूरी है खेल भी – Along with studies, sports is also important 

हमारे देश में आम तौर पर यह कहा जाता है- पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब। यह कहावत अब भूली-बिसरी बात होती जा रही है। अब खेलने-कूदने वाले आइकन भारतीय युवाओं के दिलों पर राज कर रहे हैं और यही कारण है कि अगर दिन में स्कूलों और कालेजों में भीड़ नजर आती है तो शाम को खेल अकादमियों में दौड़ते हुए युवाओं की भी भरमार है।

दूर हो रहे हैं मिथ - Myths are going away

भारत में एक मिथ यह भी धीरे-धीरे टूट रहा है कि खेल से परिवार का भरण-पोषण नहीं हो सकता, क्योंकि अब बाजार को भी 'स्पोर्ट्स आइकन' के तौर पर केवल रोहित, धौनी या विराट कोहली नहीं दिखते, बल्कि नीरज चौपड़ा, मनु भाकर, पीवी सिंधु जैसे खिलाडी भी दिखते हैं, लिहाजा बड़े शहरों के चौराहों पर व्यस्त विज्ञापनों में इनकी तस्वीरें भी दिखाई दे जाती हैं।

बदलते भारत की तस्वीर - Picture of changing india 

खेलों में भारत की तस्वीर लगातार बदल रही है, लेकिन इस मामले में अग्रणी देशों में शुमार होने के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा। इस मामले में फर्श से अर्श तक पहुंचने वाले चीन से हम बहुत कुछ सीख सकते है। मसलन, चीन प्रतिभाओं को बहुत कम उम्र में चुन लेता है और इन लड़के-लड़कियों को ओलिंपिक में पदक हासिल करने लायक बनाने के वक्त तक मदद करता है। इन प्रतिभाओं को ज्यों ही नेशनल सेंटर में दाखिल किया जाता है, उनकी जवाबदेही सरकार की हो जाती है और उन्हें किसी बात की चिंता नहीं करनी होती। यहां तक कि अपनी शिक्षा के बारे में भी नहीं। लेकिन भारत में हम खेल से अधिक शिक्षा पर ध्यान देते हैं। 

हर स्तर पर होनी चाहिए पहल - Initiative should be taken at every level 

समय की मांग है कि देश में तहसील या उपखंड या अनुमंडल स्तर पर खेल स्कूल स्थापित किए जाएं, वहां खेल ही प्रमुख पढ़ाई हो और बाकी पढ़ाई का ज्यादा बोझ न हो। इन स्कूलों में ऐसे अत्याधुनिक खेल परिसरों का निर्माण किया जाए जहां खिलाड़ियों को हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध हो, जैसी की अमेरिका, चीन और रूस जैसे अग्रणी देशों के खिलाड़ियों को मिलती है। इन स्कूलों में उन चुनिंदा प्रतिभाओं को तराशा जाए जिनमें हुनर की कमी न हो। अगर हम 10-11 साल के बच्चों को लेकर इस तरह से तैयारी करेंगे तो बहुत जल्दी बेहतरीन परिणाम मिलेंगे। इसके अलावा जो खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें प्रतिमाह भत्ता या पारिश्रमिक मिले तो युवा और उनके परिवार वाले खेलों को भी करियर की तरह देखेंगे, जिससे देश में खेल संस्कृति विकसित होगी। 

आज क्रिकेट, बैडमिंटन और हॉकी जैसे खेलों में लीग प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है। क्यों न इस लीग प्रणाली को शेष भारतीय खेलों में भी प्रयुक्त किया जाए, जिससे भविष्य में अन्य खेलों के खिलाड़ियों को बेहतर अवसर और आर्थिक स्थिरता मिल सके। 

लेने होंगे महत्तवपूर्ण निर्णय - Important decisions will have to be taken 

अब समय आ गया है जब सभी खेल संघों में भी सफाई अभियान चला कर संगठनों का प्रबंधन और अच्छे खिलाड़ियों को तैयार करने का जिम्मा पेशेवर और सक्षम पूर्व खिलाड़ियों को दिया जाए, ताकि 'खेलो इंडिया कार्यक्रम' देश में खेलों को आगे बढ़ाने के लिए जनांदोलन का रूप ले सके तथा भारत खेलों में भी महाशक्ति के रूप में उभर सके।