कहते हैं कवि या रचनाकार अपनी कविता और लेखन के माध्यम से हमेशा अमर रहता है। भारत में अनेक साहित्यकारों ने जन्म लिया और अपनी लेखनी के बल पर खूब यश कमाया। उन रचनाकारों में एक नाम नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर का भी है।
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म
भारत के राष्ट्रगान के रचयिता, कवि, दार्शनिक, गीतकार, मानवतावादी और बहुमुखी प्रतिभासंपन्न कवि रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में जोड़ासांको में रहने वाले एक बंगाली परिवार में हुआ था। भारत में रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती 7 मई को मनाई जाती है जबकि बंगाल में उनकी जयंती 9 मई को मनाई जाती है।
उनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर था और माता का नाम शारदा देवी टैगोर था। रवींद्रनाथ टैगोर 14 भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उन्होंने प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल से अपनी शुरुआती शिक्षा ग्रहण की थी।
बैरिस्टर बनना चाहते थे टैगोर
रवींद्रनाथ टैगोर के सपने आसमान छुआ करते थे। उनके जीवन का लक्ष्य बैरिस्टर बनना था। अपने इसी सपने को पंख देने के लिए उन्होंने 1878 में इंग्लैंड के ब्रिज्टन पब्लिक स्कूल में दाखिला लिया था। बाद में उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। लेकिन 1880 में बिना कानून की डिग्री लिए वह स्वदेश आ गए।
महान रचनाकार थे टैगोर
रवींद्रनाथ टैगोर केवल कविता लेखन तक ही सीमित नहीं थे। वह कवि होने के साथ प्रतिष्ठित संगीतकार, नाटककार, निबंधकार भी थे। इन विधाओं के अलावा वह हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं में भी काफी निपुण थे। बचपन से ही उनकी रुचि लेखन में थी। महज 8 साल की उम्र में उन्होंने कविताएं लिखना आरंभ कर दिया था। 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी। पढ़ाई कर विदेश से वापस लौटने पर उन्होंने फिर से लेखन कर्म की शुरुआत की थी।
किन देशों का राष्ट्रगान लिखा ?
अधिकांश लोग यह तो जानते हैं कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ की रचना की थी। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि उन्होंने बंगाल के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ की भी रचना की थी। श्रीलंका के राष्ट्रगान की रचना भी उन्होंने ही की थी।
अमूल्य है रवींद्रनाथ टैगोर की उपलब्धियाँ
टैगोर की उपलब्धियाँ साहित्य जगत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। काव्यरचना गीतांजलि के लिए टैगोर को 1913 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार को उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से स्वीकार नहीं किया था। उनके स्थान पर ब्रिटेन के राजदूत ने पुरस्कार लिया था। टैगोर को ब्रिटिश सरकार ने ‘सर’ की उपाधि से नवाजा था लेकिन जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। प्रोस्टेट कैंसर होने के बाद 7 अगस्त, 1941 को टैगोर का निधन हो गया।
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