भारत में पर्यावरण को स्वच्छ रखने में आदालतों, पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,थिंक-टैंक ,गैर- सरकारी संगठनों से लेकर आम लोगों के संतुलनकारी कार्यो का अध्ययन करने में विफल रही है । भारत में ओलिव रिडले कछुए, ब्लैक बग, जंगली गधा,बाघ, हाथी, डॉल्फिन जैसी प्रजातियों की जिस तरह रक्षा की गई, उसपर भी गौर नहीं किया गया जबकि अधिकतर अफ्रीकी देशों समेत दुनिया के बाकी हिस्सों में सरकारी उदासीनता के कारण कई प्रजातियां लुप्त हो गई है।
भारत जितना विशाल है, इसमें जितनी आबादी बसती है,उस आधार पर इसकी तुलना उन देशों से बिल्कुल नहीं हो सकती जिनकी आबादी भारत के एक महानगर जितनी हो। विकसित और विकासशील देशों के बीच सामाजिक – आर्थिक स्थितियों, उत्सर्जन के स्तर, ऊर्जा उपयोग और अन्य महत्वपूर्ण विशेषताओं में अंतर को ध्यान में रखने में भी विफल रहा है।
भारत जैसे विकासशील देश के लिए सबसे सटीक तरीका यह होगा कि प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को मापा जाए। भारत ने इस पर भी आपत्ति जताई कि कृषि जैव विविधता, मिट्टी का स्वास्थ्य, अनाज बरबादी, पानी की गुणवत्ता, पानी उपयोग दक्षता अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा अक्षमता और कई अन्य कारकों को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया गया है।
देश के आर्थिक विकास की तुलना में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। भारत में अदालतों ने स्पष्ट रूप से बताया है कि जब पर्यावरण बनाम अर्थव्यवस्था की बात आती है, तो पर्यावरण सवो॔च्च होगा।
भारत दिल्ली जैसे महानगरों में तेजी से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की और बढ़ रहा है। भारत में रिकॉर्ड इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन की ओर बढ़ रहा है, अपने वन क्षेत्र को लगातार बढ़ा रहा है, बुनियादी ढांचे और पर्यावरण के बीच टकराव के बावजूद अपने वन्य जीवन को सुरक्षित कर रहा है।