राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने कथित तौर पर मंदिरों को ध्वस्त करके बनाई गई हजारों मस्जिदों को वापस लेने की बढ़ती मांग पर अपना विरोध दोहराया है। आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि संघ इस विचार के खिलाफ है।
हालांकि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए साधुओं और संतों के आंदोलन के लिए आरएसएस के समर्थन का हवाला देते हुए कहा कि संघ अपने सदस्यों को वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के स्थलों को पाने के लिए विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के प्रयासों का समर्थन करने से नहीं रोकेगा। होसबोले ने कहा कि मंदिर स्थलों पर कथित रूप से निर्मित मस्जिदों तो तोड़ने का प्रयास एक अलग श्रेणी में आता है।
सोचिए, आगे बढ़ना है या अतीत में फंसे रहना है
होसबोले ने एक इंटरव्यू में कहा, लेकिन अगर हम अन्य सभी मस्जिदों और ढांचों के बारे में बात करे तो क्या हमें 30,000 मस्जिदों को खोदना शुरू कर देना चाहिए और इतिहास को पलटने का प्रयास करना चाहिए? क्या इससे समाज में और अधिक शत्रुता और आक्रोश पैदा नहीं होगा? क्या हमें एक समाज के रूप में आगे बढ़ना चाहिए या अतीत में ही अटके रहना चाहिए? सवाल है कि हम इतिहास में कितनी दूर जाएंगे?
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के रुख का हवाला देते हुए संघ महासचिव ने कहा कि कथित रूप से विवादित मस्जिद स्थलों पर नियंत्रण की मांग केवल समाज की अन्य प्राथमिकताओं जैसे कि उन्मूलन और अस्पृश्यता की भारी कीमत पर ही की जा सकती है। उन्होंने कहा कि अगर हम ऐसा करते रहेंगे तो हम अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तनों पर कब फोकस करेंगे? छुआ-छूत को खत्म करने के बारे में क्या? हम युवाओं में मूल्यों का संचार कैसे कर सकते हैं?
होसबोले ने यह भी कहा कि संस्कृति, भाषाओं का संरक्षण, धर्मांतरण, गोहत्या और लव जिहाद जैसे मसले भी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए कब्जा करने का एजेंडा (reclamation agenda) का एकतरफा प्रयास उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि संघ ने कभी नहीं कहा कि किसी को इन मुद्दों की अनदेखी करनी चाहिए या इन पर काम नहीं करना चाहिए।⏹