भारत की पहली महिला फोटोग्राफर ‘डालडा 13’ थीं। जी हाँ, आपने बिलकुल सही सुना – ‘डालडा 13’। हम वनस्पति घी की बात नहीं कर रहे बल्कि हम बात कर रहे हैं भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार (Photojournalist) की। डालडा 13 के उपनाम से मशहूर होमी व्यारावाला फोटोजर्नलिस्ट के तौर पर करीब चालीस साल तक सक्रिय रहीं। चलिए, इस लेख के माध्यम से जानते हैं भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार होमी व्यारावाला के बारे में।
जन्म व व्यक्तिगत जीवन
होमी व्यारावाला का जन्म 9 दिसंबर, 1913 को एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका जन्म गुजरात के नवसारी में हुआ था। उनके पिता पारसी थिएटर में काम करते थे। बचपन में ही उनका परिवार नवसारी से मुंबई (तब बम्बई) चला गया। मुंबई में ही उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी की। इस दौरान उन्होंने अपने दोस्त मानेकशाॉ व्यारावाला से फोटोग्राफी सीखी, जिनसे बाद में उनका विवाह हुआ। विवाह के समय मानेकशाॉ व्यारावाला टाइम्स ऑफ इंडिया में अकाउंटेंट और फोटोग्राफर के रूप में कार्य कर रहे थे। बाद में उन्होंने मुंबई के मशहूर जे०जे० स्कूल ऑफ आर्ट से पढाई की।
होमी व्यारावाला का उपनाम क्यों हुआ डालडा 13?
होमी व्यारावाला का उपनाम डालडा 13 जितना रोचक है, उतना ही रोचक है इस नाम के पीछे की कहानी। आईए, जानतें हैं कि आखिर होमी व्यारावाला का उपनाम डालडा 13 ही क्यों है?
होमी व्यारावाला ने नवंबर, 1955 में एक गाड़ी (कार) खरीदी। ये गाडी थी फिएट 1100-103 नुओवा मिलिसेंटो, जो कि उन्होंने मुंबई में खरीदी थी। मुंबई में कार की डिलीवरी लेने के बाद होमी ने इसे 200 रुपये की अतिरिक्त कीमत देकर रेल से दिल्ली भेज दिया। दिल्ली में इस गाड़ी का पंजीकरण डीएलडी के नाम से हुआ। यही डीएलडी आगे चलकर डालडा में बदल गया।
अगर बात की जाय अंक 13 की तो होमी व्यारावाला के अनुसार 13 उनका लकी नंबर है। दरअसल, कुछ लोगों के साथ कुछ अंक जुड़ जाते हैं। उनके लिए वो अंक उनके जीवन का पर्याय ही बन जाता है। ऐसा ही एक अंक था ‘13’ जो होमी व्यारावाला के साथ जुड़ गया। इसके दो कारण थे। पहला, उनका जन्म सन् 13 (1913) में हुआ था और दूसरा 13 वर्ष की आयु में उनकी मुलाकात उनके पति से हुई थी।
इस प्रकार डीएलडी नाम की फिएट कार चलने वाली महिला जिसका भाग्यशाली अंक 13 है का नाम “डालडा 13” पड़ गया।
करियर
एक फोटोजर्नलिस्ट के रूप में उन्होंने अपने काम की शुरुआत ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ से की थी, जहाँ उनकी पहली तस्वीर छपी। इस दौरान उन्हें एक तस्वीर के लिए 1 रुपया बतौर पारिश्रमिक मिलता था। इसके बाद डालडा 13 ने ‘ब्रिटिश सूचना सेवा’ दिल्ली में नौकरी की। वहां उन्होंने ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ की तस्वीरें खींची, जहाँ शुरू किया, जो बेहद लोकप्रिय हुए। उन्होंने अपना काम छद्म नाम ‘डालडा 13’ के तहत प्रकाशित किया। ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ के दौरान उन्होंने ‘इलेस्ट्रेटिड वीकली ऑफ़ इंडिया मैगज़ीन’ में काम करना शुरू किया।
क्यों लिया फोटोग्राफी से सन्यास?
1970 में उन्होंने फोटोग्राफी से सन्यास ले लिया। उनके सन्यास लेने के दो कारण थे। पहला, उनके पति की मृत्यु और दूसरा होमी को 1970 के दशक में छाया चित्रकारी के इस व्यवसाय में होने वाले परिवर्तनों से मोह-भंग हो गया था। जिस समय होमी ने फोटोग्राफी से सन्यास लिया, उस समय वे अपने करियर के शीर्ष पर थीं। वर्ष 1982 में वो अपने बेटे फारूख के पास राजस्थान के पिलानी में चली आईं, जहां फारूख पिलानी के बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स) में अध्यापन कार्य करते थे। 1989 में कैंसर से उनके बेटे की मृत्यु हो गयी। जीवन के अपने अंतिम समय को होमी ने अकेलेपन में वडोदरा के एक छोटे से घर में बिताया।
होमी व्यारवाला ने बाद के दिनों में अपने चित्रों का संग्रह दिल्ली स्थित अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स को दान में दे दिए। 15 जनवरी, 2012 को होमी व्यारावाला का देहांत हो गया।
सम्मान
होमी की विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए 2011 में भारत सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया।
होमी व्यारावाला द्वारा खीचीं गयी गई तस्वीरें
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