मेजर देवेंद्र पाल सिंह भारतीय सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। कारगिल युद्ध में दुश्मन से लड़ते हुए गंभीर रूप से घायल हो गए। जिसके चलते उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। लेकिन उन्होंने मृत्यु को हराकर पुर्नजीवन पाया और जीवन की एक अलग परिभाषा देश एवं समाज को दी।
देवेंद्र पाल सिंह जीवनी – Devendra Pal Singh Biography
नाम | देवेंद्र पाल सिंह |
जन्म | 13 सितम्बर 1973 |
जन्म स्थान | जगाधरी, यमुनानगर, हरियाणा (भारत) |
पेशा | भारतीय सेना |
रैंक | मेजर |
अल्मा मेटर | स्नातक, भारतीय सैन्य अकादमी |
महत्त्वपूर्ण उपलब्धि | ‘पीपल ऑफ द ईयर 2016’ (लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स) |
जीवनी | ग्रिट: द मेजर स्टोरी |
युद्ध | कारगिल युद्ध (ऑपरेशन विजय) |
सेवानिवृत्त | 2007 |
मृत्यु से वापस आकर पेश की एक मिसाल – Set an example by coming back from death
1999 में कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान दुश्मन से लड़ते हुए अखनूर सेक्टर में घायल हो गए। 15 जुलाई 1999 को संयोग से ज्यादा घायल होने के कारण उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। घायल होने पर उन्हें अपना एक पैर गंवाना पड़ गया। उन्होंने अपने युद्ध के अनुभवों को शेयर करते हुए कहा कि “हम दुश्मन की चौकी से 80 मीटर दूर थे। उस समय 48 घंटे तक बिना एक भी गोली चले रहना थोड़ा परेशान करने वाला था। जब संघर्ष का माहौल गर्म हो और कुछ न हो, तो आपको ऐसा लगता है कि कुछ बुरा होने वाला है। त्रासदी से पहले एक तरह का पूर्वाभास होता है।
“बम का मारक क्षेत्र आठ मीटर व्यास का होता है, लेकिन मैं उस जगह से केवल डेढ़ मीटर दूर था जहाँ बम गिरा था। आज मैं मज़ाक में कह सकता हूँ कि बम पर मेरा नाम लिखा था लेकिन फिर भी यह मुझे नहीं मार सका। जाको राखे साइयां, मार सके न कोए (यदि किसी की देखभाल स्वयं भगवान ही करें, तो उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता)” मैं शोले के संवाद सुनता था और गब्बर सिंह का मशहूर संवाद ‘जो डर गया, समझो मर गया’ मेरा मनोबल बढ़ाता था।
दौड़ने का लिया फैसला – Decided to run
बिस्तर पर जाने से लेकर वापस अपने पैरों पर दौड़ने के क्रम में जिसने उनका साथ दिया वह था उनका दृढ़ संकल्प। बैसाखी लेकर घिसट घिसट कर चलना और फिर कृत्रिम पैर के सहारे मैं कई तरह की भावनाओं से गुजरा”
“हाँ, मुझे दौड़ना शुरू करने में 10 साल लग गए।” मैंने पाया कि मैं अपने अच्छे पैर से कूद सकता हूं, फिर कृत्रिम अंग को घसीट सकता हूं।
इतने लंबे समय के बाद इस तरह पसीना बहाना मेरे लिए बहुत खुशी की बात थी। हालाँकि यह धीमी गति से चल रहा था, लेकिन मैं इस तरह से तीन हाफ मैराथन दौड़ने में कामयाब रहा।
सिर्फ आनंद की प्राप्ति करना है मकसद – The only aim is to achieve happiness
“दौड़ने से मुझे खुशी मिलती है। दूसरों को मुझसे प्रेरणा मिलना इसका एक उपोत्पाद है। मैं बाधाओं से ऊपर उठने के दृष्टिकोण को साझा करने की कोशिश करता हूं, ताकि ऐसा करने के लिए एक दृष्टिकोण विकसित हो सके।”
“मेरे हिसाब से, बाधाओं के खिलाफ लड़ना बाधाओं को देखने का एक नकारात्मक तरीका है। बाधाएं हमें आगे बढ़ने में मदद करती हैं। इसलिए, मुझे लगता है कि बाधाओं से ऊपर उठना बाधाओं के खिलाफ लड़ने से बेहतर है।”
मैराथॉन दौड़कर बनाया रिकॉर्ड – Made a record by running marathon
उन्होंने धीरे-धीरे एक कृत्रिम अंग का उपयोग करके दौड़ना शुरू किया और अपने दौड़ के करियर में 26 हाफ-मैराथन में दौड़ चुके हैं। इसमें लेह में 11,700 फीट (3600 मीटर) की अत्यधिक ऊंचाई पर तीन हाफ मैराथन शामिल हैं।
कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां – some important achievements
- कैविनकेयर एबिलिटी, मास्टरी अवार्ड, 2019
- दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, 2018 (भारत सरकार)
- भारतीय सेना के दिव्यांगजन वर्ष 2018 समारोह के राजदूत
- लिम्का पीपल ऑफ द ईयर‚ 2016 पुरस्कार
- REX करमवीर ग्लोबल फेलोशिप 2014-15
- 2011 में भारत के प्रथम ब्लेड रनर बनने का लिम्का रिकॉर्ड
- 2014 में हाई एल्टीट्यूड में दौड़ने वाले पहले ब्लेड धावक होने का लिम्का रिकॉर्ड
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