भारत के राष्ट्रीय ध्वज के निर्माता के रूप में पिंगली वेंकैया का नाम हमेशा से आदर के साथ लिया जाता है। पिंगली वेंकैया न केवल ऐतिहासिक ध्वज के निर्माता थे, बल्कि अपने जीवन में उन्होंने एक शिक्षक, लेखक, कृषक और भाषाविद् के रूप में भी काम किया। हालाँकि, उनका जीवन कभी आसान नहीं रहा। इस सच्चे देशभक्त ने अपनी प्रतिष्ठा का अनुचित लाभ कभी नहीं लिया। अंतिम समय तक संघर्षमय जीवन जीते हुए ही निधन हो गया।
नाम | पिंगली वेंकैया |
अन्य नाम | डायमंड वेंकैया |
जन्म | 2 अगस्त 1876/1878 |
जन्म स्थान | भटलापेनुमरु, मछलीपत्तनम, मद्रास प्रान्त (ब्रिटिश भारत) |
पिता | हनुमंत रायुडू |
माता | वेंकट रत्नम |
पेशा | ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा, कॉलेज लेक्चरर(1911-1944) |
शिक्षा | मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज से भूविज्ञान में डिप्लोमा |
प्रमुख कार्य | भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के निर्माता |
पत्नी | रुक्मिनम्मा |
मृत्यु | 4 जुलाई 1963 |
पिंगली वेंकैया 19 साल की आयु में ही ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हो गए। साल 1899-1902 के दूसरे बोअर युद्ध के दौरान उनकी तैनाती दक्षिण अफ्रीका में हो गयी। वहां पहली बार उनकी मुलाकात महात्मा गाँधी से हुई थी। युद्ध के दौरान जब सैनिकों को ब्रिटेन के राष्ट्रीय ध्वज यूनियन जैक को सलामी देनी होती थी, तब वेंकैया को भारतीयों के लिए एक ध्वज की जरूरत महसूस हुई।
भारत आने के बाद पिंगली वेंकैया ने खुद को ध्वज निर्माण के लिए पूरी तरह समर्पित कर दिया। परिणामस्वरूप कई तरह के संभावित डिजाइन तैयार किए। जिन्हें स्वतंत्रता का प्रतीक बनाने के लिए, नव-निर्मित स्वराज आंदोलन के लिए झंडों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था। काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में पिंगली वेंकैया ने इस बात पर सबका ध्यान आकर्षित किया। उनका यह विचार गांधी जी को बहुत पसन्द आया। गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया।
पिंगली वेंकैया ने पांच सालों तक विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया। 1921 में ही भारतीय ध्वज का पहला संस्करण अस्तित्व में आया। वेंकैया ने महात्मा गांधी को खादी के झंडे पर ध्वज का एक प्रारंभिक डिज़ाइन दिखाया था। यह पहला ध्वज लाल और हरा रंग का था - लाल रंग हिंदुओं का और हरा रंग मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता था। गांधी के सुझाव पर, वेंकैया ने देश में मौजूद अन्य सभी संप्रदायों और धर्मों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक सफेद पट्टी जोड़ी।
हालांकि इस ध्वज को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (AICC) द्वारा आधिकारिक रूप से अपनाया नहीं गया था। 1931 में पट्टियों को पुनः व्यवस्थित किया और लाल को नारंगी रंग में बदल दिया गया।
1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली।
पिंगली वेंकैया गांधीवादी विचारधारा के अनुसार सादगी से जीवन व्यतीत किया और 1963 में अपेक्षाकृत गरीबी में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी याद में भारत सरकार ने एक डाक टिकट और पहला झंडा 2009 में जारी किया गया था। 2014 में, उनका नाम मरणोपरांत भारत रत्न के लिए प्रस्तावित किया गया था, हालांकि इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।