सरदार पूर्ण सिंह – Sardar Puran Singh

देशभक्त, शिक्षाविद, अध्यापक, वैज्ञानिक, लेखक एवं द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबंधकार सरदार पूर्ण सिंह का जन्म सीमाप्रांत जो अब पाकिस्तान में है के एबटाबाद इटावा जिले सलहद गांव में 17 फरवरी सन् 1881 ईसवी में हुआ था।

सरदार पूर्ण सिंह जीवन परिचय - Sardar Puran Singh Biography

जन्म 17 फरवरी, 1881
पेशा शिक्षाविद, अध्यापक, वैज्ञानिक, लेखक
माता-पिता पिता, करतार सिंह
विवाहमाया देवी
उल्लेखनीय कार्यअंग्रेज़ी: Sisters of The Spinning Wheel (1921), Unstrung Beads (1923), The Spirit of Oriental Poetry (1926) पंजाबी: Khulle Maidan, Khulle Ghund (1923), Khulle Lekh (1929), Khulle Asmani Rang (1927)
मृत्यु31 मार्च 1931

जीवन

पूर्णसिंह पश्चिम सीमाप्रांत (अब पाकिस्तान में) के हजारा जिले के मुख्य नगर एबटाबाद के समीप सलहद ग्राम में १७ फ़रवरी 1881 को आपका जन्म हुआ। पिता सरदार करतार सिंह भागर सरकारी कर्मचारी थे। उनके पूर्वपुरुष जिला रावलपिंडी की कहूटा तहसील के ग्राम डेरा खालसा में रहते थे। रावलपिंडी जिले का यह भाग "पोठोहार" कहलाता है और अपने प्राकृतिक सौंदर्यं के लिये आज भी प्रसिद्ध है।

पूर्णसिंह की प्रारंभिक शिक्षा तहसील हवेलियाँ में हुई। यहाँ मस्जिद के मौलवी से उन्होंने उर्दू पढ़ी और सिख धर्मशाला के भाई बेलासिंह से गुरुमुखी। 1901 ई में तोकियो के "ओरिएंटल क्लब" में भारत की स्वतंत्रता के लिये सहानुभूति प्राप्त करने के उद्देश्य से कई उग्र भाषण दिए तथा कुछ जापानी मित्रों के सहयोग से भारत-जापानी-क्लब की स्थापना की।

 तोकियो के आवासकाल में लगभग डेढ़ वर्ष तक उन्होंने एक मासिक पत्रिका 'थंडरिंग डॉन' (Thundering Dawn) का संपादन किया। सरदार पूर्ण के हिंदी में कुछ है निबंध उपलब्ध है, 1 सच्ची वीरता 2 आचरण की सभ्यता 3मजदूरी और प्रेम 4 अमेरिका का मस्त योगी वाँलट हिटमैन 5 कन्यादान 6 पवित्रता इन्हीं निबंध के बल पर इन्होंने हिंदी गध साहित्य के क्षेत्र में अपना स्थाई स्थान बना लिया है।

कृतियाँ

उनके निबंध मजदूरी और प्रेम से कुछ पंक्तियाँ -

एक जिल्दसाज ने मेरी एक पुस्तक की जिल्द बाँध दी। मैं तो इस मजदूर को कुछ भी न दे सका। परंतु उसने उम्र भर के लिए एक विचित्र वस्तु मुझे दे डाली। जब कभी मैंने उस पुस्तक को उठाया, मेरे हाथ जिल्दसाज के हाथ पर जा पड़े। पुस्तक देखते ही मुझे जिल्दसाज याद आ जाता है। वह मेरा आमरण मित्र हो गया है, पुस्तक हाथ में आते ही मेरे अंतःकरण में रोज भरतमिलाप का सा समाँ बँध जाता है।

गेरुए वस्त्रों की पूजा क्यों करते हो? गिरजे की घंटी क्यों सुनते हो? रविवार क्यों मनाते हो? पाँच वक्त नमाज क्यों पढ़ते हो? त्रिकाल संध्या क्यों करते हो? मजदूर के अनाथ नयन, अनाथ आत्मा और अनाश्रित जीवन की बोली सीखो। फिर देखोगे कि तुम्हारा यही साधारण जीवन ईश्वरीय भजन हो गया।

अध्यापक पूर्णसिंह ने अपने प्रारंभिक जीवन में ही उर्दू, पंजाबी, फारसी, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उनकी भाषा में सर्वत्र विशेष प्रकार का प्रवाह लक्षित होता है। उनकी सबसे अधिक रचनाएँ अंग्रेजी में हैं। देहरादून की वन अनुसंधानशाला (फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट) में कार्यकाल (1907-1918 ) के समय में उन्होंने अंग्रेजी में वैज्ञानिक विषयों से संबधित बहुत से शोधपूर्णं लेख लिखे। इस प्रकार के उनके प्रकाशित लेखों की संख्या पचास से ऊपर है। अंग्रेजी में रचनाएँ उल्लेखनीय हैं :-

उर्दू में उनकी "स्वामी रामतीर्थ महाराज की असली जिंदगी पर तैराना नजर' (1906) यह एक ही रचना मिलती है। पंजाबी में उन्होंने पर्याप्त लिखा है और सुंदर लिखा है। उनके कुछ प्रमुख ग्रंथ हैं : अविचल जोत, खुले मैदान, खुले घुंड, मेरा साईकविदा दिल कविता, चुप प्रीतदा शहंशाह विओपारी, खुले लेख, निबंध (1929) आदि।

हिंदी में लिखे पूर्णसिंह के केवल छह निबंध ही मिलते हैं। वे हैं :

ये निबंध सरस्वती में प्रकाशित हुए थे और इनके कारण ही सरदार पूर्णसिंह ने हिंदी के निबंधकारों में अपना विशेष स्थान बना लिया है।