आज दशहारे का अंतिम दिन यानी विजयादशमी है। विजयादशमी यानी दशहरा समस्त मनोकामनाओं की
पूर्ति और बुराई पर अच्छाई की जीत का पावन पर्व है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध करके
संसार को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी।
भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के
उपरांत महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया
जाता है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य,
हिंसा और चोरी के परित्याग की सदप्रेरणा प्रदान करता है।
नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी भगवती के नौ स्वरूपों की आराधना के बाद दशमी तिथि यानी
विजयादशमी पर शमी वृक्ष और देवी अपराजिता की पूजन की मान्यता है। इसके साथ ही इस दिन
अस्त्र-शस्त्रों का पूजन भी किया जाता है।
शमी पूजन का महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार पवनपुत्र हनुमानजी ने भी भगवान रामजी की प्राणवल्ल्भा सीताजी को शमी के
समान पवित्र कहा था, इसलिए मान्यता है कि इस दिन घर की पूर्व दिशा में या घर के मुख्य स्थान में
शमी की टहनी प्रतिष्ठित करके उसका विधिपूर्वक पूजन करने से घर-परिवार में खुशहाली आती है।
विवाहित महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होती है। शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है और
मनुष्य के सभी पाप और कष्टों का अंत होता है।
दशहारे के दिन अपराजिता के पौधे की पूजा की भी है मान्यता
विजयादशमी के दिन अपराजिता के पौधा का पूजा करना काफी शुभ माना जाता है। दरअसल अपराजिता
पेड़ या फूल को देवी अपराजिता का रूप माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक राम ने राक्षस रावण पर
जीत के लिए लंका जाने से एक दिन पहले विजयादशमी पर देवी अपराजिता की पूजा की थी। कोई भी
यात्रा करने से पहले देवी अपराजिता की पूजा की जाती है क्योंकि उनका आशीर्वाद यात्रा के उद्देश्य को
पूरा करने और यात्रा को सुरक्षित बनाने में मदद करता है।