खेल के मैदान से आसमान की ऊंचाइयों तक बेटियों का बोलबाला, जांबाज बोलीं-किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार

खेल के मैदान से आसमान की ऊंचाइयों तक बेटियों का बोलबाला, जांबाज बोलीं-किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार
Image Source: istockphoto.com

देश की बेटियां भी देवी के नौ रूपों की तरह ही हैं। वह घर संवार सकती हैं तो देश भी संभाल सकती हैं। पढ़ाई के
साथ जहां खेल के मैदान में धाक जमा सकती हैं तो वहीं, सीमा पर दुश्मनों की चुनौती से निपटने में भी सक्षम हैं।
आइए आपको ऐसी ही बेटियों की दो कहानियां बताते हैं, जिन्होंने परदेश में क्रिकेट के मैदान में झंडे गाड़ने के साथ
देश में सीमा पर लड़ाकू विमान उड़ाकर अपना लोहा मनवाया।

टीम में ज्यादातर भारतीय माल्टा में नर्सिंग करियर बनाने आईं भारतीय बेटियां अब यहां की राष्ट्रीय टी-20 टीम में
खेल रही हैं। इस देश में महिला टीम ने पिछले माह तब हलचल मचाई जब पदार्पण मैच में रोमानिया को मात दी।
केरल की शामला चोलासरे की कप्तानी में टीम ने 3-0 से कांटिनेंटल कप पर कब्जा किया। माल्टा की पहली
महिला क्रिकेट टीम में 20 सदस्य हैं जिनमें अधिकतर भारतीय नर्स हैं। माल्टा की इसमें कोई खिलाड़ी नहीं है।

माल्टा का नाम नहीं सुना था 29 वर्षीय शामला कहती हैं, यहां आने से पहले उन्होंने माल्टा का नाम सुना भी नहीं
था। शामला के अलावा अनुपमा रमेशन, एनवी विमल, कुक्कु कुरियन, राम्या भी टीम में हैं। इनमें से किसी ने
पहले प्रोफेशनल क्रिकेट नहीं खेला था मगर सभी को क्रिकेट से प्यार था।

दिन में काम रात में क्रिकेट शामला ने बताया कि हम खिलाड़ियों में अधिकतर को सुबह सात से शाम सात बजे
तक शिफ्ट करनी पड़ती है। इसके बाद हम रात नौ बजे से आधी रात तक अभ्यास करते हैं।

चीन से तनातनी के बीच देश की बेटियां सीमाओं की सुरक्षा में भी जुटी हैं। फ्लाइट लेफ्टिनेंट तेजस्वी रंगा राव और
साक्षी बाजपेयी ने मंगलवार को चीन सीमा के निकट सुखोई-30 लड़ाकू विमान से उड़ान भरी।

वायुसेना की इकलौती सुखोई-30 वेपन सिस्टम ऑपरेटर तेजस्वी ने इस अभ्यास का हिस्सा बनने पर कहा, हम
चीन सीमा पर किसी भी स्थिति से निपटने को तैयार हैं। तेजपुर एयरबेस में तैनात तेजस्वी ने कहा, हमारे दिमाग
में जो चलता है, वह समय की मांग के हिसाब से होता है। क्योंकि इस तरह के ऑपरेशन का हम रोजाना अभ्यास
करते हैं।

साक्षी बोलीं, रोमांचकारी अनुभव

फ्लाइट लेफ्टिनेंट साक्षी ने कहा, सेनाओं के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास के दौरान सुखोई-30 से उड़ान भरना अपने
आप में रोमांचकारी अनुभव होता है। ऐसे युद्धाभ्यास आपसी तालमेल बढ़ाने में भी मदद करते हैं। साथ ही इसकी
मदद से वास्तविक युद्ध की भी तैयारी हो जाती है। यही प्रशिक्षण हैं, जो हमारे आदर्श वाक्य ‘टच द स्काई विद
ग्लोरी’ को जीने में मदद करते हैं।

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