जब घर की छत टपकती हैं तो जगह जगह बर्तन रख दिए जाते हैं। घर वाले नजरे गड़ाए लीकेज वाली जगह पर देखते रहते हैं। जहाँ से पानी टपकता दिखाई देता है उधर ही बर्तन सरका दिया जाता था। लीकेज का पानी इधर उधर न फैले और कहाँ से पानी लीकेज है इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता था।
देखा जाये तो हर लीकेज खराब है, चाहे वह पैसे का हो, पेपर का हो, पानी का हो, या किसी विभाग से हो।
लेकिन चिंता की बात यह है की लीकेज को रोकने वाले कम लोग हैं और बहती मलाई को बटोरने वाले ज्यादा।
खैर जीवन भर की जमा पूंजी लगाकर पोपटलाल ने घर बनाया। घर उनकी अकेले की कमाई से बना था। इसलिए वह अपने घर को लेकर बड़े फिक्रमंद थे। अचानक से घर की छत लीकेज होने लगी तो पोपटलाल घबरा गए। लीकेज से गिरते हुए पानी को रोकने के लिए घर के सभी बर्तनों को काम पर लगाया गया। पोपटलाल ने सभी जतन किए, परंतु लीकेज थमने का नाम नहीं ले रहा था।
चूंकि पोपटलाल आम आदमी थे, इसलिए उनके उपाय भी आम थे। लेकिन जब संसद जैसा भवन लीकेज कर रहा हो, तो ड्रम या तपेले या प्लास्टिक की बाल्टी से बिल्कुल काम नहीं चलने वाला है। उसमें अधिक स्टोर नहीं किया जा सकता। उसकी लीकेज को संभालने के लिए भारी भरकम चीज होनी चाहिए। आम आदमी तो काफी हल्का फुल्का होता है। एक भी विप्पति आती है तो अपने को संभाल नहीं पाता है। या तो वह आम आदमी लुढ़क जाता है या दिवालिया हो जाता है।
सबसे अच्छा तो यह रहेगा की लीकेज की जगह पर नेताओं को खड़ा कर दिया जाए, क्योंकि इनके स्टोरेज की क्षमता अधिक है। ये अपने अंदर अनेक पुलों और योजनाओं को आत्मसात कर लेते हैं। उसके बाद भी डकार नहीं लेते। यह अपने अंदर कितना भी मैटेरियल स्टोर कर लेते हैं। वैसे भी इनका ज्यादा कोई काम तो रहता नहीं हैं।
अपने निर्वाचन क्षेत्र से दिल्ली, दिल्ली से अपने निर्वाचन क्षेत्र, तो कम से कम लीकेज की समस्या को दूर करने में तो काम आएं। सांसद महोदय की स्टोरेज क्षमता का आकलन नहीं किया जा सकता है। लीकेज वाले मामले से वैसे आप इनकी क्षमताओं को समझने में सक्षम हो सकते हैं।