भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव भारत के वे सच्चे सपूत थे, जिन्होंने अपनी देशभक्ति और देशप्रेम को अपने प्राणों से भी अधिक महत्व दिया और मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर कर गए। 23 मार्च यानि, देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्यौछावर करने वाले तीन वीर सपूतों का शहीद दिवस। यह दिवस न केवल देश के प्रति सम्मान और हिंदुस्तानी होने वा गौरव का अनुभव कराता है, बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भीगे मन से श्रृद्धांजलि देता है।
उन अमर क्रांतिकारियों के बारे में आम मनुष्य की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है। उनके उज्ज्वल चरित्रों को बस याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं, जिनके आचरण किंवदंति हैं। भगतसिंह ने अपने अति संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी।
भगत सिंह – Bhagat singh
“इंकलाब जिंदाबाद”(“क्रांति अमर रहे”) का नारा देने वाले शाहिद अमर भगत सिंह(शाहिद-ए-आज़म), भारत की आजादी में अपनी जवानी, प्रेम, परिवार को छोड़ कर देश की मिट्टी के लिए अपनी जान दे दी, पूरे भारतवर्ष के लिए वे हमेशा ज़िंदा रहेंगे।
उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखरआजाद, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे। काकोरी काण्ड में 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी व १६ अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि उन्होंने 1928 में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में विलय कर दिया और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन।
शिवराम राजगुरु – Shivaram Rajguru
वे 1930, तीन क्रांतिकारी भारत माता के लिए शहीद हुए थे। इनमें से शिवराम राजगुरु को भगत सिंह जितना नहीं जाना जाता। सुखदेव थापर समेत तीनों में से भगत सिंह में करिश्मा था और राजगुरु में शारीरिक रूप से करिश्मा सबसे कम था। फिर भी यह क्रांतिकारी बहुत अलग था और उसका जीवन कई जगहों पर त्याग और आंतरिक शक्ति की उच्च कविता को छूता है।
ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को मार गिराने के माध्यम से लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के बाद, भगत सिंह एक अन्य क्रांतिकारी की पत्नी दुर्गावती के साथ साहब बनकर भाग निकले, जिन्होंने ‘मेमसाहब’ का भेष बनाया था। राजगुरु उनका सामान ले जा रहे थे और उनके नौकर के रूप में काम कर रहे थे। राजगुरु हर छोटी से छोटी बात को ध्यान में रखते हुए अपनी भूमिका पर अड़े रहते थे, यहां तक कि वह रेलवे के शौचालय के किनारे लेट जाते थे – आमतौर पर उस समय के ‘साहबों’ के नौकर की तरह। भगत सिंह और दुर्गावती के किसी भी अनुनय से उनका मन नहीं बदल सका। क्रांतिकारी एक कुशल पहलवान और संस्कृत के विद्वान थे, जिन्होंने तर्क शास्त्र का अध्ययन किया था, और लहू सिद्धांत कौमुदी को भी कंठस्थ किया था।
सुखदेव थापर – Sukhdev Thapar
सुखदेव के पिता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था, जिसके बाद उनके ताऊ लाला अचिन्तराम ने उनका पालन-पोषण किया। लाला अचिन्तराम आर्य समाजी विचारधारा के व्यक्ति थे, जिससे सुखदेव को बचपन से ही समाज सुधार और देशभक्ति के संस्कार मिले। जब उनके हमउम्र बच्चे खेल-कूद में व्यस्त रहते, तब सुखदेव समाज के पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा देने का कार्य करते थे।
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने देशभर में आक्रोश की लहर फैला दी। 12 वर्षीय सुखदेव के मन में भी इस घटना ने अंग्रेजों के प्रति प्रतिशोध की भावना भर दी। लायलपुर (अब पाकिस्तान में) के सनातन धर्म हाईस्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। वहीं उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई और दोनों के बीच गहरी मित्रता हो गई। दोनों ही देश की गुलामी से व्यथित थे और अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन का हिस्सा बनना चाहते थे।
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