क्या आपने कभी सुना है “बूढ़ी गाँधी” के बारे में?

Matangini Hazra | Budhi Gandhi
Matangini Hazra | Budhi Gandhi
➤ वह 29 सितंबर, 1942 को तमलुक थाने पर कब्जा करने के लिए तमलुक में समर परिषद (युद्ध परिषद) द्वारा गठित (विद्युत वाहिनी के) स्वयंसेवकों के पांच बैचों में से एक का नेतृत्व कर रही थीं, जब ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी।

भारत की स्वतंत्रता असंख्य लोगों के संघर्ष का परिणाम है। इन्हीं अगणित लोगों में एक व्यक्तित्व हैं – ‘बूढ़ी गाँधी’। बूढ़ी गाँधी (या गाँधी बूढ़ी) नाम से प्रसिद्ध, मातंगिनी हाजरा एक भारतीय क्रांतिकारी थीं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था।

निर्धनता में बीता बचपन 

मातंगिनी हाजरा का जन्म 19 अक्टूबर, 1870 को हुआ था। वे पश्चिम बंगाल (बंगाल प्रेसीडेंसी) मिदनापुर जिले के होगला ग्राम में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। घर की आर्थिक हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी। पिता ठाकुरदास मेती जैसे-तैसे घर चलाते थे। 12 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह हो गया था। छह वर्ष बाद ही उनके पति “त्रिलोचन हाजरा” का निधन हो गया। उसके बाद से उन्होंने अपना जीवनयापन ‘मजदूरी’ करके किया।

समाजिक कार्यों से स्वाधीनता क्रांति तक 

पति की मृत्यु के बाद हाजरा ने खुद को पूरी तरह से सामाजिक कार्यों में लगा दिया। वह गाँव वालों के दुःख-सुख में सदा सहभागी रहने लगीं। अपने अपने सेवा-स्वाभाव के कारण वे स्वतंत्रता संग्राम की ओर आकर्षित हुईं। 

वर्ष 1932 में, उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और नमक अधिनियम तोड़ने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें तुरंत रिहा कर दिया गया लेकिन उन्होंने कर हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन किया। फिर से गिरफ्तार कर उन्हें बहरामपुर में छह महीने के लिए कैद में रखा गया। 

1933 में, उन्होंने सेरामपुर में उपविभागीय कांग्रेस सम्मेलन में भी भाग लिया और पुलिस द्वारा लाठीचार्ज में घायल हो गईं।

वह 29 सितंबर, 1942 को तमलुक थाने पर कब्जा करने के लिए तमलुक में समर परिषद (युद्ध परिषद) द्वारा गठित (विद्युत वाहिनी के) स्वयंसेवकों के पांच बैचों में से एक का नेतृत्व कर रही थीं, जब ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। पुलिस स्टेशन के सामने, मिदनापुर में “भारत छोड़ो” आंदोलन की पहली शहीद बनी। वह एक गांधीवादी थीं और उन्हें बंगाला में “बूढ़ी गांधी” के लिए ‘गांधी बुरी’ कहा जाता था।

अल्ट्रान्यूज़ की ओर से ‘गाँधी बूढ़ी’ के बलिदान को शत-शत नमन!

Have you ever heard about “Budhi Gandhi”?

Budhi Gandhi

“बूढ़ी गाँधी” 29 सितंबर, 1942 को तमलुक थाने पर कब्जा करने के लिए तमलुक में समर परिषद (युद्ध परिषद) द्वारा गठित (विद्युत वाहिनी के) स्वयंसेवकों के पांच बैचों में से एक का नेतृत्व कर रही थीं, जब ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी।

“बूढ़ी गाँधी” के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी का मूल नाम क्या था?

मातंगिनी हाजरा

UltranewsTv देशहित

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