“बूढ़ी गाँधी” – Budhi Gandhi

भारत की स्वतंत्रता असंख्य लोगों के संघर्ष का परिणाम है। इन्हीं अगणित लोगों में एक व्यक्तित्व हैं - ‘बूढ़ी गाँधी’(Budhi Gandhi)। बूढ़ी गाँधी (या गाँधी बूढ़ी) नाम से प्रसिद्ध, मातंगिनी हाजरा एक भारतीय क्रांतिकारी थीं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था।

बूढ़ी गाँधी जीवनी - Budhi Gandhi Biography

नाम मातंगिनी हाजरा
जन्म 19 अक्टूबर, 1870
जन्म स्थान गांव होगला, जिला मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल, भारत
महत्त्वपूर्ण कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका
उपलब्धि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सक्रिय सदस्य
आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन
निधन 29 सितम्बर 1942

प्रारंभिक जीवन - Early Life

जन्म

मातंगिनी का जन्म 19 अक्टूबर 1886 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ था।

परिवार

उनके परिवार की सामाजिक स्थिति सामान्य थी, लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें शिक्षा और स्वतंत्रता के मूल्य सिखाए।

शिक्षा

मातंगिनी ने अपने समय के अनुसार एक अच्छी शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अपनी शिक्षा के माध्यम से सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूकता विकसित की।

सामाजिक कार्य - Social Work

मातंगिनी ने अपने व्यक्तिगत जीवन में भी समाज सेवा को महत्वपूर्ण माना। उन्होंने महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर काम किया।

व्यक्तिगत संघर्ष - Personal Conflict

स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी के दौरान, मातंगिनी ने कई व्यक्तिगत संघर्षों का सामना किया। उनकी दृढ़ता और साहस ने उन्हें प्रेरित किया कि वे अपने अधिकारों और देश के लिए लड़ें।

अल्ट्रान्यूज़ टीवी के ‘व्यक्तित्व’ सेक्शन में आपका स्वागत है। इस सेगमेंट में हम आपके लिए लेकर आ रहे हैं उन विशेष व्यक्तियों की जीवनी / बायोग्राफी, जिन्होंने देश-दुनिया के मानव समाज के सामाजिक संरचना को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है।

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मातंगिनी हाजरा से संबंधित कुछ प्रेरणादायक उद्धरण - Some inspirational quotes related to Matangini Hazra

निर्धनता में बीता बचपन - Childhood spent in poverty

मातंगिनी हाजरा का जन्म 19 अक्टूबर, 1870 को हुआ था। वे पश्चिम बंगाल (बंगाल प्रेसीडेंसी) मिदनापुर जिले के होगला ग्राम में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। घर की आर्थिक हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी। पिता ठाकुरदास मेती जैसे-तैसे घर चलाते थे। 12 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह हो गया था। छह वर्ष बाद ही उनके पति “त्रिलोचन हाजरा” का निधन हो गया। उसके बाद से उन्होंने अपना जीवनयापन ‘मजदूरी’ करके किया।

समाजिक कार्यों से स्वाधीनता क्रांति तक - From social work to independence revolution 

पति की मृत्यु के बाद हाजरा ने खुद को पूरी तरह से सामाजिक कार्यों में लगा दिया। वह गाँव वालों के दुःख-सुख में सदा सहभागी रहने लगीं। अपने अपने सेवा-स्वाभाव के कारण वे स्वतंत्रता संग्राम की ओर आकर्षित हुईं। 

वर्ष 1932 में, उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और नमक अधिनियम तोड़ने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें तुरंत रिहा कर दिया गया लेकिन उन्होंने कर हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन किया। फिर से गिरफ्तार कर उन्हें बहरामपुर में छह महीने के लिए कैद में रखा गया। 

1933 में, उन्होंने सेरामपुर में उपविभागीय कांग्रेस सम्मेलन में भी भाग लिया और पुलिस द्वारा लाठीचार्ज में घायल हो गईं।

शहादत - Martyrdom

उनकी शहादत ने उनके व्यक्तिगत जीवन को एक महान विरासत में बदल दिया। वे एक प्रतीक बन गईं, जो साहस, बलिदान और देशभक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।

वह 29 सितंबर, 1942 को तमलुक थाने पर कब्जा करने के लिए तमलुक में समर परिषद (युद्ध परिषद) द्वारा गठित (विद्युत वाहिनी के) स्वयंसेवकों के पांच बैचों में से एक का नेतृत्व कर रही थीं, जब ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। पुलिस स्टेशन के सामने, मिदनापुर में "भारत छोड़ो" आंदोलन की पहली शहीद बनी। वह एक गांधीवादी थीं और उन्हें बंगाला में "बूढ़ी गांधी" के लिए ‘गांधी बुरी’ कहा जाता था।

अल्ट्रान्यूज़ की ओर से 'गाँधी बूढ़ी' के बलिदान को शत-शत नमन!

कौन थी "बूढ़ी गाँधी"?

मातंगिनी हाजरा, जोकि "बूढ़ी गाँधी" या "गाँधी बूढ़ी" के नाम से प्रसिद्ध हैं, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं।

मातंगिनी हाजरा का जन्म कब हुआ था?

19 अक्टूबर 1870
https://www.ultranewstv.com/news/have-you-ever-heard-about-budhi-gandhi/