पराली का धुआं अगले कुछ दिनों में दिल्ली का दम घोंट सकता है। पंजाब के खेतों में धान की पराली जलाने के
मामले सामने आने लगे हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के मुताबिक, पिछले सप्ताह पराली जलाने के सौ से
अधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
पंजाब और हरियाणा के खेतों में धान की फसल के बाद उसके बचे हिस्से को जलाने का चलन रहा है। बड़े पैमाने
पर लगाई जाने वाली आग के धुएं से दिल्ली और एनसीआर के लोगों को हर साल भयंकर प्रदूषण का सामना
करना पड़ता है। तमाम प्रयासों के बाद भी इसमें रोक लगती नहीं दिख रही है। इस साल भी धान की फसल के बचे
अवशेषों को जलाने की घटनाएं दर्ज की जाने लगी हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मुताबिक, पिछले सप्ताह पंजाब के खेतों में इस तरह की 124 घटनाएं दर्ज की
गईं। इस बीच हरियाणा से भी एक घटना दर्ज की गई है। बीते दिनों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान
के कुछ हिस्सों में अच्छी बारिश हुई। इसके चलते पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में फिलहाल
रोक लगी हुई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अगले चार-पांच दिनों में फिर से पराली जलाने की घटनाओं
में तेजी आ सकती है।
हवा की दिशा बदली
मानसून के चलते दिल्ली-एनसीआर की ओर आने वाली हवाएं अभी मुख्यत पूर्व दिशा से आ रही थीं। लेकिन, अब
यह उत्तर पश्चिमी होने लगी है। यह हवा पंजाब और हरियाणा में जलने वाली पराली का धुआं भी लेकर आएगी।
प्रदूषण की रोकथाम को टीमें गठित करने के निर्देश
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति से जाड़े के प्रदूषण की रोकथाम के लिए टीमों का
गठन करने को कहा है। सोमवार को डीपीसीसी के इंजीनियरों के साथ बैठक में अब तक हुई तैयारियों की समीक्षा
की। उन्होंने बताया कि दिल्ली सरकार ने प्रदूषण के खिलाफ विंटर एक्शन प्लान की तैयारी शुरू कर दी है। इस वर्ष
यह 15 फोकस बिंदुओं पर आधारित रहेगा। इसे लेकर डीपीसीसी को जल्द से जल्द टीमों का गठन करने के निर्देश
दिए गए हैं। इसके साथ ही स्मॉग टावर से संबंधित रिपोर्ट भी जल्द सौंपने को कहा गया है।
दो महीने बुरा हाल
पराली जलाने की घटनाएं सितंबर के अंतिम सप्ताह से दर्ज की जाने लगती हैं और दिसंबर के पहले पखवाड़े तक
चलती हैं। लेकिन, अक्तूबर और नवंबर में सबसे ज्यादा बुरा हाल रहता है। खासतौर पर 15 अक्तूबर से 25 नवंबर
के बीच।