कर्मकांड परिषद ने कहा-पश्चिम के पंचांगों ने दीपावली की तिथि पर भ्रम की स्थिति पैदा की। तिथि को लेकर कोई भ्रम नहीं, उदया तिथि की अमावस्या नहीं है मान्य।
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद ने दीपावली को लेकर स्थिति साफ कर दी है। परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी ने कहा कि पश्चिम के पंचांगों ने दीपावली की तिथि पर भ्रम की स्थिति पैदा की है। वे दो तिथि बता रहे हैं, जबकि काशी के पंचांग और विद्वानों में दीपावली की तिथि को लेकर कोई भ्रम नहीं है। 31 अक्टूबर को ही पूरे देश में दीपोत्सव का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के मुताबिक, 31 अक्टूबर को अपराह्न 3:52 बजे अमावस्या की शुरुआत होगी, जो कि एक नवंबर की शाम को 5:13 बजे एक रहेगी। इसके बाद प्रतिपदा लग नाएगी। प्रतिपदा में दीपावली पूजन का विधान नहीं है। 31 अक्तूबर को सांयकाल से रात्रिव्यापिनी अमावस्या लग जाएगी। धर्मसिंधु और निर्णय सिंधु के अनुसार रात्रिव्यापिनी अमावस्या होने के कारण ही 31 अक्टूबर को लक्ष्मीपूजा, कालीपूजा और दीपोत्सव का शुभ मुहूर्त बन रहा है। दीपावली हमेशा प्रदोष में मनाई जाती है। एक नवंबर को प्रदोषव्यापिनी अमावस्या नहीं मिल रही है। 29 अक्टूबर को धनतेरस का पूजन होगा। 30 अक्टूबर को जन्मोत्सव और नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी।
काशी विद्वत परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि इस बार दीपावली की तिथि को लेकर कोई भ्रम नहीं है। काशी के पंचांग और विद्वान 31 अक्टूबर को ही दीपोत्सव, लक्ष्मी और मां काली के पूजन पर एकमत हैं। काशी विद्वत परिषद के सदस्य और बीएचयू के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि पश्चिम के कुछ पंचांग व कैलेंडर में तिथि की बढ़ोतरी बताई जा रही है। दीपावली की तिथि एक नवंबर बताई जा रही, जो ठीक नहीं है। यह गणना ज्योतिष व धर्मशास्त्रों की दृष्टि से पूरी तरह से गलत है। काशी के सभी पंचांगों के अनुसार पूरे देश में 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाई जाएगी। इस पर काशी के विद्वान भी एकमत हैं।
पूर्ण प्रदोष काल वाली तिथि पर ही मनाया जाता है पर्व – The festival is celebrated only on the date of Purna Pradosh period
धर्मसिंधु के अनुसार जब प्रदोष काल दो तिथियों में प्राप्त हो तो पूर्ण प्रदोष काल वाली तिथि पर पर्व मनाया जाता है। दीपावली प्रदोषव्यापिनी अमावस्या में मनाई जाती है। इससे उदया तिथि का कोई लेना देना नहीं होता है। अमावस्या की शुरुआत 31 अक्टूबर को सूर्यास्त के साथ ही प्रदोष काल हो रहा है, जो एक नवंबर को शाम 5:13 बजे तक है। इसलिए अमावस्या की तिथि 31 अक्टूबर मानी जाएगी। उसी दिन सायंकाल दीपावली मनाई जाएगी। स्नान-दान व व्रत की अमावस्या एक नवंबर को मान्य है।
दिवाली 2024: महत्वपूर्ण तिथियां और दिन
दिनांक और दिन | पूजा मुहूर्त | तिथि | त्योहार |
29 अक्टूबर 2024, मंगलवार | 06:31 अपराह्न से 08:13 अपराह्न तक | त्रयोदशी तिथि | धनतेरस |
29 अक्टूबर, 2024, मंगलवार | 05:14 अपराह्न से 06:29 अपराह्न तक | त्रयोदशी तिथि | यम दीपम |
31 अक्टूबर 2024, गुरुवार | 11:39 PM से 12:31 AM तक | चतुर्दशी तिथि | छोटी दिवाली |
31 नवंबर, 2024, गुरुवार | 05:12 अपराह्न से 06:16 अपराह्न तक | अमावस्या तिथि | लक्ष्मी पूजन |
2 नवंबर 2024, शनिवार | 06:34 पूर्वाह्न से 08:46 पूर्वाह्न तक | प्रतिपदा तिथि | गोवर्धन पूजा |
3 नवंबर 2024, रविवार | दोपहर 12:38 से दोपहर 02:55 तक | द्वितीया तिथि | भाई दूज |
दिवाली का महत्त्व – Importance of Diwali
दिवाली सबसे प्रमुख और प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है, जिसे सभी हिंदू बहुत ही भव्यता के साथ मनाते हैं। दिवाली को सबसे महत्वपूर्ण प्रकाश त्योहारों में से एक माना जाता है। दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव है। इन समारोहों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, जो पूरे पांच दिनों तक मनाए जाते हैं। इस शुभ दिन पर माँ लक्ष्मी की बहुत ही लगन और भक्ति के साथ पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन पर माँ लक्ष्मी अपना पार्थिव रूप धारण करती हैं और अपने भक्तों को स्वास्थ्य, धन और सफलता प्रदान करती हैं।
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