Sajjan Kumar News: 1984 के सिख दंगों में सज्जन कुमार को आजीवन कारावास, आखिर 41 साल पहले क्या हुआ था?

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1984 के सिख दंगों में सज्जन कुमार को आजीवन कारावास, आखिर 41 साल पहले क्या हुआ था? 1984 के सिख दंगों में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को राउस एवेन्यू कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी है।

सज्जन कुमार को इससे पहले एक और मामले में उम्रकैद की सजा मिल चुकी है, यानी कि दूसरी बार उन्हें यही सजा दी गई है। सभी के मन में एक सवाल आ रहा है- आखिर सज्जन कुमार ने सिख दंगों में क्या भूमिका निभाई थी? एक सवाल तो यह भी आता है कि न्याय मिलने में इतने साल कैसे लग गए? अब इन सभी सवालों के जवाब पता चलेंगे, लेकिन इतिहास के कुछ पन्नों को टटोलना जरूरी हो जाता है।

ऑपरेशन ब्लू स्टार और सिख दंगों की भूमिका

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि सिख दंगे भी 1984 में एक घटना की वजह से शुरू हुए थे। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उन्हीं के दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने गोली मार दी थी, उसो गोलीकांड में ही उनकी हत्या हो गई। लेकिन बाद में पता चला कि वो सुरक्षाकर्मी इंदिरा से नाराज थे, काफी ज्यादा खफा चल रहे थे। असल में जून 1984 में स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया गया था, आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले ने आतंक मचा रखा था। अब उस आतंक से मुक्ति के लिए इंदिरा गांधी ने एक बड़ा फैसला लिया। वो फैसला था ऑपरेशन ब्लू स्टार।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर में कार्रवाई करने की इजाजत दे दी। उस कार्रवाई में भिंडरावाले के साथ उसके कई दूसरे साथी भी मारे गए। अब दो चीजें यहां सिख समुदाय को बुरी लग गईं- पहली उनके धार्मिक स्थल पर सेना की एंट्री होना, दूसरी उसी धार्मिल स्थल पर इतना सारा खून-खराबा। माना जाता है कि उस ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद ही इंदिरा गांधी के खिलाफ गुस्सा पनपने लगा था, पूरा सिख समुदाय उनसे खफा था।

इंदिरा की हत्या और सिखों का नरसंहार

इसी वजह से 31 अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की उन्हीं के दो सुरक्षाकर्मियों ने हत्या कर दी। अब हत्या को अंजाम देने वाले क्योंकि सिख समुदाय से आते थे, पूरा गुस्सा भी उसी कौम के खिलाफ निकला। खासतौर पर दिल्ली में सैकड़ों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया, उनके घर जला दिए गए, बिजनेस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। अब सिखों के खिलाफ जो इतना गुस्सा दिख रहा था, उसी में एक भूमिका तब के कांग्रेस नेता सज्जन कुमार की थी। सज्जन कुमार के लिए कहा जाता है कि उसने इन दंगों को भड़काने का काम किया था। एक नहीं कई ऐसे गवाह सामने आए जिन्होंने स्वीकार किया कि दंगों के वक्त भीड़ को संबोधित करने का काम सज्जन कुमार कर रहा था, उन्हें हिंसा करने के लिए प्रेरित करने का काम भी सज्जन कुमार कर रहा था।

सज्जन कुमार की दंगों में भूमिका

1 नवंबर, 1984 को तो एक भीड़ को संबोधित करते हुए सज्जन कुमार ने कहा था कि हमारी मां मार दी, सरदारों को मार दो। यह एक ऐसा वाक्य था जो सज्जन ने हर कॉलोजी, हर नुक्कड़ पर बोला था। उसका इतना कहना ही पहले से गुस्सैल भीड़ को और ज्यादा गुस्सा दिलवाने के लिए काफी था। जब जांच हुई तो पता यह भी चला कि सज्जन के समर्थकों ने दिल्ली की पूरी वोटर लिस्ट खंगाली थी। उस वोटर लिस्ट में सिखों को खोजकर-खोजकर मारा गया, उनके व्यापार को पूरी तरह बर्बाद किया गया।

कानूनी लड़ाई और सज्जन की सजा यात्रा

अब इतने सारे गवाह थे, सभी ने सज्जन कुमार का नाम लिया, लेकिन उसे सजा मिलने में उतना ही वक्त लगा। 2002 में एक निचली अदालत ने उसे बरी तक कर दिया, उस पर कोई आरोप तय नहीं हो पाए। लेकिन फिर 2005 में सीबीआई ने जीटी नानावटी कमिशन की एक रिपोर्ट को आधार बनाकर फिर सज्जन पर केस चलाया। उस मामले में भी पांच साल बाद यानी कि 2010 में कड़कड़डूमा अदालत में सुनवाई हुई। तब बलवान खोखर, महेंद्र यादव, महा सिंह समेत कई आरोपियों को सजा हुई, लेकिन सज्जन बच गया। 2013 में उसे फिर बरी कर दिया गया।

लेकिन सज्जन कुमार की असली मुश्किल जगदीश कौर की एंट्री से शुरू हुई। असल में जगदीश कौन नाम की एक पीड़िता ने सीबीआई के साथ मिलकर एक और केस दायर किया। तब पांच सिखों की हत्या को लेकर सज्जन के लिए सजा की मांग की गई थी। कई सालों की सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने 17 दिसंबर 2018 को सज्जन कुमार को दोषी पाया था, उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अब तो राउस एवेन्यू कोर्ट ने भी सज्जन को दोषी पाया है और फिर उसे उम्रकैद की सजा मिली है।

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