मशहूर हिंदी लेखक विनोद कुमार शुक्ल को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। शनिवार को भारत के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान के लिए उनके नाम का एलान किया गया। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिंदी के 12वें लेखक हैं। हिंदी भाषा के सबसे महान समकालीन लेखकों में 88 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल लघु कथाकार, कवि और निबंधकार के तौर पर पहचाने जाते हैं।
सम्मान पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले लेखक
उन्हें यह पुरस्कार देने का फैसला प्रख्यात कथाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा रे की अध्यक्षता में हुई ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक में लिया गया। समिति ने अपने बयान में कहा, विनोद कुमार शुक्ल इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले छत्तीसगढ़ राज्य के पहले लेखक होंगे।
‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ मशहूर उपन्यास
यह सम्मान उन्हें हिंदी साहित्य, रचनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जा रहा है। 1961 में स्थापित ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ 11 लाख रुपये का नकद पुरस्कार, हिंदू विद्या की देवी सरस्वती की कांस्य प्रतिमा और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयाली कवि जी शंकर कुरुप उनकी कविताओं के संकलन ओडक्कुझल (बासुंरी) के लिए दिया गया था।
साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी हैं सम्मानित
अपने खास भाषाई लेखन और भावनात्मक गहराई के लिए मशहूर विनोद कुमार शुक्ल को 1999 में उनकी किताब ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। उनकी अन्य उल्लेखनीय कृतियों में उनका 1979 में लिखा ‘नौकर की कमीज’ नाम का उपन्यास भी शामिल है। इस पर फिल्म निर्देशक मणि कौल ने फिल्म बनाई। कविता पर भी विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी लेखनी चलाई। उनका कविता संग्रह सब कुछ होना बचा रहेगा (1992), खासा पसंद किया जाता है।