डॉ. शिवप्रसाद सिंह (Dr. Shivprasad Singh) हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। शिवप्रसाद सिंह ने एक विद्वान साहित्यकार होने के साथ साथ, जिनकी बौद्धिकता, तार्किकता और विलक्षण प्रतिभा सम्पन्नता ने प्रारम्भ से ही हिन्दी साहित्य को आन्दोलित किया। डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने हिन्दी की उपन्यास, कहानी, निबंध और आलोचना जैसी लगभग सभी गद्य विधाओं में रचनाएँ कीं।
डॉ. शिवप्रसाद सिंह जीवनी – Dr. Shivprasad Singh Biography
नाम | शिवप्रसाद सिंह |
जन्म | 19 अगस्त, 1928 |
जन्म स्थान | जलालपुर गांव, बनारस, उत्तर प्रदेश |
पिता | चंद्रिका प्रसाद सिंह |
शिक्षा | एमए, पीएचडी (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) |
पेशा | साहित्यकार, अध्यापक |
महत्त्वपूर्ण रचनाएं | ‘नीला चाँद’, ‘कर्मनाशा की हार’, इत्यादि |
पुरस्कार | व्यास सम्मान (1992), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1990) |
मृत्यु | 28 सितंबर, 2008 |
प्रारंभिक जीवन – Early Life
जमींदार परिवार में जन्मे शिवप्रसाद सिंह के विकास में उनकी दादी मां, पिता और माँ का विशेष योगदान रहा, इस बात की चर्चा वे प्रायः करते थे। दादी माँ की अक्षुण्ण स्मृति अंत तक उन्हें रही और यह उसी का प्रभाव था कि उनकी पहली कहानी भी ‘दादी मां’ थी, जिससे हिन्दी कहानी को नया आयाम मिला। ‘दादी मां’ से नई कहानी का प्रवर्तन स्वीकार किया गया और यही नहीं, यही वह कहानी थी जिसे पहली आंचलिक कहानी होने का गौरव भी प्राप्त हुआ।
आंचलिक कहानी लिखने के लिए जाने जाते हैं शिवप्रसाद सिंह – Shivprasad Singh is known for writing regional stories.
शिवप्रसाद सिंह उस समय से आंचलिक कहानी लिख रहे थे जब कथाकार एवं उपन्यास सम्राट प्रेमचंद एवं आंचलिक उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणू आंचलिकता से सम्बंधित रचनाएं नहीं लिख रहे थे। डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने अपनी कहानियों में आंचलिकता के जो प्रयोग किए वह प्रेमचंद और रेणु से पृथक् थे। एक प्रकार से दोनों के मध्य का मार्ग था और यही कारण था कि उनकी कहानियां पाठकों को अधिक आकर्षित कर सकी थीं। इसे विडंबना कहा जा सकता है कि जिसकी रचनाओं को साहित्य की नई धारा के प्रवर्तन का श्रेय मिला हो, उसने किसी भी आंदोलन से अपने को नहीं जोड़ा।
शिक्षा – Education
1949 में उदय प्रताप कॉलेज से इंटरमीडिएट कर शिवप्रसाद जी ने 1951 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. और 1953 में हिन्दी में प्रथम श्रेणी में प्रथम एम.ए. किया था। स्वर्ण पदक विजेता डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने एम.ए. में ‘कीर्तिलता और अवहट्ठ भाषा’ पर जो लघु शोध प्रबंध प्रस्तुत किया। उसकी प्रशंसा राहुल सांकृत्यायन और डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने की थी। हालांकि वे द्विवेदी जी के प्रारंभ से ही प्रिय शिष्यों में थे, किन्तु उसके पश्चात् द्विवेदी जी का विशेष प्यार उन्हें मिलने लगा। द्विवेदी जी के निर्देशन में उन्होंने ‘सूर पूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्य’ विषय पर शोध संपन्न किया, जो अपने प्रकार का उत्कृष्ट और मौलिक कार्य था।
मुख्य कृतियाँ – Main works
उपन्यास
- अलग-अलग वैतरणी
- गली आगे मुड़ती है
- नीला चाँद
- शैलूष
- हनोज दिल्ली दूर अस्त
- औरत
- वैश्वानर
कहानी संग्रह
- आर पार की माला
- कर्मनाशा की हार
- शाखा मृग
- इन्हें भी इंतजार है
- मुर्दा सराय
- राग गूजरी
- भेदिए
निबंध संग्रह
- शिखरों के सेतु
- कस्तूरी मृग
- चतुर्दिक
रिपोतार्ज
- अंतरिक्ष के मेहमान
नाटक
- घाटियाँ गूंजती हैं
आलोचना
- विद्यापति
- आधुनिक परिवेश और नवलेखन
- आधुनिक परिवेश और अस्तित्ववाद
जीवनी
- उत्तरयोगी श्री अरविंद
संपादन
- शांतिनिकेतन से शिवालिक तक
पुरस्कार – Award
- साहित्य अकादमी पुरस्कार – 1990
निधन – Death
28 सितंबर, 2008 को सुबह चार बजे डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने अंतिम सांस ली और इस दुनिया को अलविदा कहा।
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